‘ब्रेक्झिट’ का अनुबंध नहीं हुआ तो स्कॉटलैंड ब्रिटन से अलग हो सकता है – यूरोपियन कौंसिल के भूतपूर्व प्रमुख की चेतावनी

ब्रुसेल्स/लंडन – ‘ब्रेक्झिट के मुद्दे पर अनुबंध न होना यह सिर्फ ब्रिटन और यूरोपीय महासंघ के लिए समस्या साबित होगी, इस भ्रम में नहीं रहा जा सकता है। यह मुद्दा ब्रिटन के अस्तित्व का सवाल हो सकता है। ब्रेक्झिट के मुद्दे पर महासंघ के साथ अनुबंध नहीं हुआ तो ब्रिटन के कुछ इलाकों में इसका असर दिखाई दे सकता है और कुछ इलाकों से चिंताजनक प्रतिक्रिया भी आ सकती है, इसका एहसास ब्रिटन को होना चाहिए। स्कॉटलैंड के विषय में परिणाम अधिक तीव्र हो सकते हैं’, इन शब्दों में ब्रेक्झिट पर अनुबंध न होना स्कॉटलैंड की आजादी को बला देने वाला साबित होगा, ऐसी चेतावनी महासंघ के भूतपूर्व प्रमुख ने दी है।

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ब्रिटन में पिछले कुछ महीनों में ब्रेक्झिट को लेकर जोरदार राजनीतिक संघर्ष शुरू हुआ है। ब्रिटन की संसद में ब्रेक्झिट के विधेयक को अनुमति मिलने के बाद भी यूरोपीय महासंघ के अनुबंध में निश्चित रूपसे कौनसे मुद्दे होने चाहिएं, इसको लेकर राजनीतिक सर्कल में दरार पड़ी है। महांसघ के साथ सारे संबंध तोड़ दी जाएं, और ‘हार्ड ऑर नो ब्रेक्झिट’ का विकल्प स्वीकारा जाए, इसके लिए सत्ताधारी पार्टी के चुनिन्दा मंत्री और खासदारों ने आग्रही भूमिका ली है। इस मुद्दे को लेकर सत्ताधारी पार्टी के कुछ मंत्रियों ने इस्तीफा भी दिया है।

उसी समय सत्ताधारी पार्टी के ही कुछ सदस्यों ने ‘सॉफ्ट ब्रेक्झिट’ का विकल्प आगे करके महासंघ के साथ पूरे संबंध तोड़ दिए तो बड़ा नुकसान होने का डर है, ऐसी भूमिका रखी है। ब्रिटन के कुछ संसद सदस्य, विरोधी पार्टी के नेता, उद्योजक, भूतपूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेअर इनके समूह ने ब्रेक्झिट के मुद्दे पर वापस एक बार सर्वमत लेने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव को पिछले महीने भर में ब्रिटिश जनता से भी समर्थन मिल रहा है, यह जानकारी मिल रही है।

प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने इसका विरोध किया है और ब्रेक्झिट का अनुबंध नहीं हुआ तो दुनिया खत्म नहीं होने वाली है, इन शब्दों में विरोधकों को सुनाया है और दूसरे सर्वमत की संभावना को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है। ब्रेक्झिट के मुद्दे को लेकर ब्रिटन के राजनीतिक विश्व में चल रही गतिविधियों की पृष्ठभूमि पर यूरोपीय महासंघ ने चिंता व्यक्त की है और जल्द से जल्द ठोस निर्णय लेने की चेतावनी दी है। इस पृष्ठभूमि पर यूरोपियन कौंसिल के भूतपूर्व प्रमुख ‘हर्मन वैन रॉम्पु’ का वक्तव्य ध्यान आकर्षित करता है।

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ब्रिटन के जो समूह अथवा व्यक्ति अनुबन्ध नहीं चाहिए ऐसा चिल्ला रहे हैं, वह अति राष्ट्रवाद की भूमिका है, जो वर्तमान में टिकने वाली नहीं है, ऐसा दावा रॉम्पु ने किया है। ‘कुछ समय बाद ऐसी परिस्थिति निर्माण होगी की यूरोपीय महासंघ के २७ सदस्य देश अधिक एक होंगे और ब्रिटन अर्थात यूनाइटेड किंगडम एकसंघ नहीं रहेगा’, इन शब्दों में रॉम्पु ने ब्रिटन का विघटन हो सकता है, इस बात की तरफ ध्यान आकर्षित किया।

स्कॉटलैंड की प्रमुख निकोला स्टर्जन ने भी ‘नो डील ब्रेक्झिट’ विरोध में भूमिका ली है और स्कॉटलैंड को उचित न्याय मिलना चाहिए, ऐसा कहा है। ‘ब्रिटन सरकार ने ही ब्रेक्झिट का अनुबंध न होने की भाषा करना यह उनकी सबसे गंभीर असफलता है। ब्रेक्झिट का अनुबंध न होना यह कभी भी भरपाई न होने वाली बुरी आपत्ति साबित होगी’, ऐसी स्टर्जन ने चेतावनी दी है।

सन २०१४ में ब्रिटन में स्कॉटलैंड के मुद्दे पर सर्वमत हुआ था। उसमें ५५ प्रतिशत नागरिकों ने स्वतंत्र स्कॉटलैंड को नकारा था। उसके बाद सन २०१६ में ब्रेक्झिट के मुद्दे पर हुए सर्वमत में ब्रिटन के ५१ प्रतिशत नागरिकों ने यूरोपीय महासंघ को नकारा था। इस सर्वमत में, स्कॉटलैंड के ६२ प्रतिशत मतदाताओं ने यूरोपीय महासंघ के पक्ष में मतदान किया था। उसके बाद स्कॉटलैंड सरकार ने यूरोपीय महासंघ में समावेश के लिए स्वतंत्र मुहीम भी शुरू की थी।

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