समय की करवट (भाग ७८) – व्हिएतनाम : अमरीका का हस्तक्षेप

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-३८

अकाल के कारण और फ्रेंच एवं जापानियों ने बाक़ायदा की हुई व्हिएतनाम की लूट के कारण व्हिएतनामी जनता में असंतोष की हवाएँ बहने लगी थीं। उसे मार्ग दिखाया ‘हो चि मिन्ह’ ने। उसने जनता को टॅक्स न भरने का और सरकारी गोदाम लूटने का मशवरा दिया।

आगे चलकर सन १९४५ में जापान महायुद्ध हार जाने के बाद उन्होंने व्हिएतनाम पर का अपना कब्ज़ा छोड़ दिया। यह सत्ता हस्तांतरण सुचारू रूप से हों, इसलिए चिनी सेनाएँ उत्तर व्हिएतनाम में तैनात रहें, ऐसा महायुद्ध पश्‍चात की दोस्त राष्ट्रों की परिषद में तय किया गया और उसके अनुसार चँग-कै-शेक पुरस्कृत चिनी सेनाओं ने दक्षिण व्हिएतनाम पर कब्ज़ा कर लिया।

जापानी व्हिएतनाम से चले तो गये, मग़र जाते समय विजयी दोस्तराष्ट्रों का सिरदर्द बढ़ें इसलिए, जापानियों के द्वारा ही नियुक्त किये गये नामधारी राजा की सत्ता का त़ख्ता पलट देने के लिए उन्होंने ‘हो चि मिन्ह’ को उक़साया और उन्हें शस्त्रास्त्रों की भी आपूर्ति की। साथ ही, महीने भर के लिए फ्रेंच सैनिकों को कैद करके रखा।

फ्रेंच भी नहीं हैं, जापानी भी चले गये और दुर्बल शासक इसका फ़ायदा यदि ‘हो चि मिन्ह’ ने न लिया होता, तो ही ताज्जुब की बात होती! उन्होंने अगस्त में नामधारी राजा की सत्ता का त़ख्ता पलट देकर (व्हिएतनाम के इतिहास का ‘अगस्त रिव्होल्युशन’) सितम्बर १९४५ में व्हिएतनाम को ‘डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ व्हिएतनाम’ ऐसा घोषित किया और खुद उसका अध्यक्ष बन गया।

लेकिन महायुद्ध में जापान परास्त हो जाने के बाद, विजयी दोस्त राष्ट्रों के गुट में होनेवाले फ्रान्स की नज़रें पुनः व्हिएतनाम की ओर मुड़ीं थीं और अपने इस पुराने उपनिवेश को पुनः अपने कब्ज़े में करने की वह कोशिशें कर रहा था। इस उपनिवेश पर पुनः फ्रान्स कब्ज़ा करने पर अमरीका को वैसे कोई ऐतराज़ नहीं था; लेकिन युद्ध के पश्‍चात् युरोप के हालात पूर्ववत् होने के लिए जो प्रयास चल रहे थे, उनमें फ्रान्स का सहयोग आवश्यक होने के कारण अमरीका ने फ्रान्स की इस माँग के सामने सिर झुकाया।

लेकिन अब हो-चि-मिन्ह की फ़ौजों ने व्हिएतनाम के अधिकांश भाग पर, ख़ासकर उत्तरी भाग पर कब्ज़ा कर, हनोई को अपने ‘डेमोक्रॅटिक रिपब्लिक ऑफ व्हिएतनाम’ की राजधानी के तौर पर घोषित किया था।

सन १९४५ के नवम्बर में फ्रेंच सेना ने व्हिएतनाम पर धावा बोल दिया और सन १९४६ के आरंभ से उन्होंने हो-चि-मिन्ह की ‘व्हिएत-मिन्ह’ सेना के साथ युद्ध शुरू किया। ‘व्हिएत-मिन्ह’ के पास संसाधन पर्याप्त मात्रा में न होने के कारण वे परास्त होकर हनोई पर फ्रेंचों ने कब्ज़ा कर लिया। हो-चि-मिन्ह और उनके सहकर्मियों ने जंगलों में पनाह ली और गुरिला तकनीक़ (‘गुरिला वॉरफेअर’) से फ्रेंचों को सताना शुरू किया।
सन १९४९ में माओ ने चँग-कै-शेक की फ़ौजों पर विजय हासिल कर चिनी राज्यक्रांति करायी और लोगों की सरकार स्थापन की।

उसके बाद उन्होंने और सोव्हिएत रशिया ने कम्युनिस्ट विचारधारा होनेवाले मिन्ह को शस्त्रास्त्र, सैनिकी प्रशिक्षण आदि सहायता शुरू की। अब इस बदलाव के बाद, पहले जिन्हें महज़ सैनिक़ी खुराफ़ातें कहा जा सकता था, वे अब युद्ध में परिवर्तित हुई थीं। अब ‘व्हिएत-मिन्ह’ के साथ लड़ते हुए फ्रेंचों की नाक में दम आने लगा था।

अगले कुछ साल हालात धधकते ही रहे।

कम्युनिस्ट चीन हो-चि-मिन्ह की सहायता कर रहा है यह देखकर अमरीका ने, कम्युनिझम का विरोध करने की अपनी पॉलिसी के अनुसार स्वाभाविक रूप में फ्रेंचों को समर्थन दिया। लेकिन कुछ समय बाद अपनी ‘अमरिकीकरण’ की, यानी संक्षेप में दुनिया के किसी भी कोने में होनेवाली किसी भी समस्या को हल करने के लिए अमरिकी फ़ौजों को भेजना; इस नीति को बदलकर ‘युनायटेड अ‍ॅक्शन पॉलिसी’ यानी शुरुआती दौर में अमरिकी फ़ौजें भेजकर, फिर उन फ़ौजों के द्वारा स्थानीय फ़ौजों को प्रशिक्षण देकर धीरे धीरे अमरिकी सेना को वहाँ से हटाना, ऐसी नीति अपनायी थी। प्रत्यक्ष अमरिकी सैनिक़ी सहायता कम होने के कारण फ्रेंचों पर तनाव बढ़ता गया।

सन १९५४ तक इतनी दूरी पर इतनी क़ीमत अदा कर उपनिवेश को अपने कब्ज़े में रखने की फ्रेंचों की ताकत कम होती गयी और ‘व्हिएत-मिन्ह’ के फ़ौजों की भेदकता तो बढ़ती ही चली जा रही थी।

सन १९५४ में फ्रेंचों ने ‘व्हिएत-मिन्ह’ के साथ समझौता करने की तैयारी दर्शायी।

सन १९५४ में हुई ‘जिनिव्हा परिषद’ में इस समझौते पर चर्चा हुई और उसमें तय कियेनुसार व्हिएतनाम का ‘उत्तर’ और ‘दक्षिण’ व्हिएतनाम में अस्थायी रूप में विभाजन किया गया। अस्थायी रूप में इसलिए, कि वहाँ की जनता के मत पर ग़ौर करने के लिए आंतर्राष्ट्रीय देखरेख में सार्वमत (रेफरंडम) लेकर, यदि जनता विभाजन नहीं चाहती है तो उन दो भागों को पुनः एक करने का प्रावधान उसमें था।

उत्तर व्हिएतनाम को ‘व्हिएत-मिन्ह’ के कब्ज़े में दिया जाकर, दक्षिण व्हिएतनाम को दोस्त राष्ट्र सेना की समर्थन में फ्रेंचों के कब्ज़े में दिया गया। उत्तर व्हिएतनाम की राजधानी हनोई और दक्षिण व्हिएतनाम की राजधानी सायगांव निश्‍चित की गयी। फ्रेंचों ने उनके लिए परस्त होनेवाले ‘बाओ दाई’ को ही पुनः दक्षिण व्हिएतनाम का सम्राट बनाकर गद्दी पर बिठाया।

सन १९५५ में इस राजपाट का त़ख्ता पलट गया और राजा के प्रधानमन्त्री होनेवाला एन्गो दिन्ह दाएम दक्षिण व्हिएतनाम का राष्ट्राध्यक्ष बना। बाओ दाई यह केवल फ्रेंचों के इशारों पर नाचनेवाला दुर्बल नामधारी राजा होने के कारण, नये माहौल में कम्युनिझम का प्रभाव कम करने में उसका कुछ ख़ास उपयोग नहीं होगा ऐसा अमरीका को प्रतीत हुआ, इसलिए उन्होंने कट्टर कम्युनिझम-विरोधक माने जानेवाले दाएम को ही अध्यक्षपद पर बिठाया।

दाएम ने सत्ता की बागड़ोर सँभालते ही, दक्षिण व्हिएतनाम में ताकतवर माने जानेवाले कई छोटे-मोटे धार्मिक पंथों को ख़त्म कर दिया। ‘कम्युनिझम का धिक्कार’ इस नये से शुरू किये गये उपक्रम के तहत उसने केवल कम्युनिस्ट होने के शक़ पर कइयों को गिरफ़्तार किया, उन्हें जेल में डाल दिया या फिर मार दिया। अगस्त १९५६ में एक क़ानून बनाकर उसने कम्युनिझम का समर्थन करनेवाले किसी भी व्यक्ति को ‘मृत्युदंड की सज़ा’ घोषित की।

प्रचारतंत्र से उसके इस ‘कर्तृत्व का’ प्रसार कर उसे वहाँ लोकप्रिय बनाया गया। सन १९५५ में दक्षिण व्हिएतनाम में आयोजित किये गये रेफरंडम में उसे विजयी घोषित किया गया। सन १९५७ में उसने अमरीका का शासकीय दौरा किया, तब उसका शानदार स्वागत स्वयं अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष द्वारा किया गया और उसके सम्मान में ख़ास परेड का आयोजन किया गया। कम्युनिझम को विरोध करनेवाला कोई भी अमरीका में स्वागतार्ह ही था।

सार्वमत (रेफरंडम) के ज़रिये दाएम की सत्ता मज़बूत हुई होने के कारण, अब चुनावों के द्वारा दक्षिण व्हिएतनाम में सत्ता में आना अपने लिए संभव नहीं है, यह जान चुके ‘व्हिएत-मिन्ह’ ने, किसी भी क़ीमत पर दाएम की सरकार का त़ख्ता पलटने का तय करके; विभाजन से पहले दक्षिण व्हिएतनाम में कार्यरत रहनेवाले, लेकिन अब ठण्ड़े पड़ चुके अपने प्रतिनिधियों को पुनः सक्रिय बनाने की शुरुआत की। उसे भी पुनः माओ के चीन की और सोव्हिएत रशिया की भरपूर मदद मिली।

इसकी भनक लग जाने के कारण अब स्वाभाविक रूप में व्हिएतनाम में अमरिकी हस्तक्षेप बढ़नेवाला था….

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