समय की करवट (भाग ३७) – ‘बर्लिन वॉल’ : दीवार का ख़ौफ़

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।

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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’

हेन्री किसिंजर

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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

बर्लिन वॉल बँधकर तैयार हो गयी। किसी पुरखों के घर के बच्चें घर का बँटवारा करके, बीच दीवार खड़ी करके घर के दो हिस्सें करते हैं, वैसा बर्लिन शहर का बँटवारा इस बर्लिन वॉल से हुआ। इस वॉल के निर्माण से पूर्व जर्मनी का थोड़ाबहुत फ़ायदा हो भी गया। वहाँ के ज़ुल्मी कम्युनिस्ट शासन से ऊबकर वहाँ का युवावर्ग, ख़ासकर कुशल मनुष्यबल पश्चिम बर्लिन में जो पलायन कर रहा था, वह ज़बरन् ही सही, लेकिन पूरी तरह रुक गया। केवल पूर्व जर्मनी के नागरिकों के हित के लिए चलायी जानेवालीं, रियायती दरों में वस्तुओं की बिक्री आदि योजनाओं का नाजायज़ फ़ायदा उठाकर, वहाँ नौकरीधंधे के लिए हररोज़ आनेवाले पश्चिम बर्लिन के कई नागरिक शाम को घर जाते समय ये वस्तुएँ सस्ते में ख़रीदकर, उन्हें पश्चिम बर्लिन जाकर बेचकर मुना़फ़ा कमाते थे, वह कालाबाज़ार बन्द हो गया। लेकिन दरअसल कई दृष्टि से पूर्व जर्मनी का ही अधिक नुकसान हुआ।

सबसे अहम बात यह थी कि चर्चिल ने जिस – सोव्हिएतपरस्त देश (पूर्व युरोप) और पूँजीवादी तत्त्वों को अपनाये हुए पश्‍चिमी देश (पश्चिम युरोप) ऐसा युरोप का विभाजन करनेवाले अदृश्य ‘आयर्न कर्टन’ का ज़िक्र किया था, वह अब इस वॉल के रूप में खुलेआम दुनिया के सामने आया था।

दीवार
सन १९६३ में पूर्व बर्लिन के नागरिकों के साथ हमदर्दी जताने के लिए अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष केनेडी ने बर्लिन वॉल की भेंट की।

इस वॉल के निर्माण की दुनियाभर में तीव्र गूँजें उठीं। सोव्हिएत रशिया कितनी फ़ौलादी पकड़ से अपने अंकित देशों पर कम्युनिस्ट शासन थोंप देता है, इसकी भी दुनियाभर में आलोचना शुरू हुई। सन १९६३ में पूर्व बर्लिन के नागरिकों के साथ हमदर्दी जताने के लिए अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष केनेडी ने बर्लिन वॉल की भेंट की। लेकिन सहूलियत की राजनीति में, शाब्दिक निषेध से ज़्यादा तब उन्होंने कुछ ख़ास नहीं किया। भविष्य में यह वॉल यानी सोव्हिएत रशिया तथा अमरीका के बीच के ‘कोल्ड वॉर’ का जीताजागता प्रतीक ही मानी गयी। उस समय रीलीज़ हुईं, जर्मनी से या कोल्ड वॉर से संबंधित विषयों पर की कई फ़िल्मों में बर्लिन वॉल यक़ीनन दिखायी जाती ही थी।

इस वॉल के लगभग २८ साल के अस्तित्व में इस वॉल ने कई उतारचढ़ाव, कई संतप्त प्रदर्शन देखे; विरुद्ध भागों में फ़ँसे रिश्तेदारों के आक्रोश, इस वॉल के कारण बिछड़े प्रेमी जीवों का रुदन सुना। इस वॉल में भी इन २८ सालों में चार स्थित्यंतर हुए और उसे अधिक से अधिक अभेद्य बनाने की कोशिशें जारी रहीं। लेकिन समझौते के अनुसार दोस्तराष्ट्रों की सेना को पूर्व जर्मनी में से रास्ता देना अनिवार्य ही था और उसके लिए इस वॉल में ९ चेकपॉईन्ट्स रखे गये थे। उनमें से सबसे अधिक चर्चा में रहा, वह ‘चेकपॉईन्ट चार्ली’।

इस वॉल को अभेद्य बनाने के साथ ही, जो कोई भागने की कोशिश करते दिखायी देगा, उसे बिना किसी दया के और बिना किसी पूर्वसूचना के गोली से उड़ा देने के आदेश भी वहाँ पहरे पर तैनात जर्मन सैनिकों को दिये गये थे। इस वॉल के निर्माण के कारण पूर्व बर्लिन के नागरिक पश्चिम जर्मनी में भाग जाने के वाक़ये पूरी तरह बन्द नहीं हुए। पश्‍चिमी देशों की सहायता लेकर अपना ही सगा भाई पश्चिम जर्मनी औद्योगिक क्षेत्र में घुड़दौड़ कर रहा है (इतनी तेज़ रफ़्तार से कि दूसरे विश्‍वयुद्धपश्‍चात् पश्चिम जर्मनी अल्प-अवधि में ही औद्योगिक प्रगती की जो उड़ान भरी, उसे पश्‍चिमी देशों ने ‘इकॉनॉमिक मिरॅकल’ – ‘आर्थिक चमत्कार’ कहकर सराहा), वहाँ के अपने ही बांधव शॉपिंग मॉल्स, डिस्कोथेक ऐसी ऐश कर रहे हैं और हम यहाँ पर इस तरह का नर्क़प्रद जीवन जी रहे हैं; इस विचार से पूर्व बर्लिन के नागरिक इतने बेचैन हुए थे कि ‘इतनी अभेद्य सुरक्षा को छेदकर भाग जाने के प्रयास में अपनी जान भी जा सकती है’ यह ज्ञात होने पर भी, अपनी जान पर खेलकर भाग जाने की कोशिश करनेवाले लोगों की संख्या कुछ कम नहीं थी।

इन २८ सालों में लगभग ५ हज़ार लोग इस वॉल की सुरक्षा को किसी न किसी तरी़के से छेदकर पश्चिम बर्लिन जाने में क़ामयाब हुए, लेकिन ऐसे प्रयास करने की धुन में लगभग सौ-दो सौ लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। अत्यधिक निर्दयतापूर्वक उनपर गोलियाँ चलायीं गयीं।

दीवार
पीटर फ़ेचर

उनमें से सबसे विख्यात तथा ज्वलंत उदाहरण सन १९६२ का १८ वर्षीय पीटर फ़ेचर इस युवा का है। उसने अपने एक दोस्त हेल्मट के साथ पश्चिम बर्लिन में पलायन करने की योजना बनायी। ‘निर्धारित किये दिन से एक दिन पहले ‘नो-मॅन्स लँड’ के पास की एक सुतारकाम करनेवाली दूकान में छिपे बैठेंगे, वहाँ के गार्ड्स का निरीक्षण करेंगे और मौक़ा मिलते ही ‘नो-मॅन्स लँड’ के बीच से दौड़ लगाकर बर्लिन वॉल के काँटें लगाये बाड़ पर चढ़कर उस तऱफ़ कूदेंगे’ ऐसी योजना उन्होंने बनायी थी। तय कियेनुसार उन्होंने कृतियोजना की शुरुआत की। लगभग सबकुछ सुचारू रूप से हो गया। ‘नो-मॅन्स लँड’ को भी उन्होंने पार किया। पहले हेल्मट ने वॉल पर चढ़कर उस तऱफ़ छलाँग लगायी भी। लेकिन जब पीटर वॉल पर चढ़ रहा था, तभी सुरक्षारक्षक ने उसे देखा और उसने ऑर्डर के अनुसार पीटर पर गोलियाँ बरसायीं। उनमें से एक गोली पीटर की कमर में घुस गयी और वह उस तऱङ्ग जाने के बजाय पुनः पीछे पूर्व बर्लिन भाग में ही गिर गया। लेकिन ख़ून बह रहा होने के बावजूद भी और पीटर वेदना से तड़प रहा होने के बावजूद भी उसे किसी भी प्रकार की वैद्यकीय सहायता नहीं दी गयी। पूर्व जर्मन सुरक्षारक्षक ठंड़ी नज़र से उसका तड़पना देखते हुए खड़े थे। इस वॉल के विरोध में पश्चिम बर्लिन के वॉल से सटे भाग में हमेशा ही निदर्शन, घोषणा आदि वाक़ये होते रहते थे। इस कारण वहाँ पर थोड़ेबहुत लोग तो हमेशा ही उपस्थित रहते थे। वैसे वे उस दिन भी थे। पश्चिम बर्लिन के कई नागरिक, संवाददाता साँस रोककर यह हैरातंगेज़ घटना देख रहे थे। लेकिन ‘शेम शेम….मर्डरर्स’ ऐसे नारे लगाने के अलावा उनके हाथ में कुछ भी नहीं था।

दीवार
पीटर फ़ेचर की जहाँ मृत्यु हुई, उस स्थान पर वॉल के पश्चिम बर्लिन के भाग में वॉल के नज़दीक निर्माण किया गया उसका स्मारक

पीटर की मृत्यु व्यर्थ नहीं गयी। उसकी मृत्यु के कारण पश्चिम बर्लिन में पूर्व जर्मन शासन के विरोध में जनमत भड़क गया और उत्स्फूर्त प्रदर्शन हुए। पीटर की मृत्यु से स्थानिक एवं जागतिक जनमत ख़ौल गया। उसपर गाने लिखे गये। उसकी मृत्यु की ओर – ‘स्वतंत्रता के लिए प्रयास करते हुए किया हुआ बलिदान’ इस दृष्टि से जर्मन युवा देखने लगे। कई साल बाद, उसी जगह पर उसके स्मारक का भी निर्माण किया गया।

इस घटना के बाद ही वॉल की सुरक्षा अभेद्य करने के प्रयास पूर्व जर्मन सरकार द्वारा युद्धस्तर पर शुरू किये गये। वॉल लाँघने के प्रयास अन्य तरीक़ों से भी हो रहे थे। उनमें सादी गाँठ बाँधी रस्सी वॉल पर अटक जायेगी इस प्रकार फेंककर उसपर चढ़कर वॉल लाँघने से लेकर वॉल में छेद बनाने के लिए कोई ट्रक या ट्रॅक्टर बहुत ही तेज़ गति से लाकर वॉल पर टकराने के वाक़ये भी हुए। इतना ही नहीं, बल्कि कई लोगों ने नज़दीक के घरों से सुरंग खोदकर, खोदते खोदते उन्हें ठेंठ वॉल के पार ले जाकर भी पश्चिम बर्लिन में प्रवेश किया था। कुछ लोगों ने गॅस पर चलनेवाले ग़र्म हवा के बहुत बड़े गुब्बारे बनाकर उस मार्ग से भी यह वॉल लाँघने की हिम्मत दिखायी।

इस प्रकार पूर्व जर्मनी के नागरिकों ने दीवार के ख़ौ़फ़ को अपनी अपनी क्षमता के अनुसार मात देने के प्रयास शुरू किये थे।

यह सब हम इतना डिटेल में देख रहे हैं, उसका एक कारण है। हमारी पीढ़ी स्वतंत्र भारत में जन्मी। इसलिए स्वतंत्रता के महत्त्व को तथा ग़ुलामी के ख़ौ़फ़ को अब तक हम समझ नहीं पा रहे हैं, आज़ादी के लिए हमारे पूर्वजों ने जो क़ीमत अदा की है, उसकी अहमियत हम नहीं जानते। स्वतंत्रता के माहौल का उपभोग लेते समय जब, उसके साथ आनेवालीं ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी निभाने में किसी देश के नागरिकों द्वारा टालमटोल की जाती है, तब वहाँ के समाज के कदम ग़ुलामी की दिशा में पड़ते हुए देर नहीं लगती। फिर समय की करवट दूसरी ओर बदलने में कहाँ का विलंब!

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