समय की करवट (भाग ३३) – ‘बर्लिन ब्लॉकेड’ : जर्मनी के बँटवारे की नांदी

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।
इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।

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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’

हेन्री किसिंजर

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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

द्वितीय महायुद्धपश्चात् ‘विजयी’ दोस्तराष्ट्रों ने ‘प्रशासन की सहूलियत के लिए’ बनाये ‘परास्त’ जर्मनी के ४ भागों में से पूर्व एवं पश्चिम जर्मनी का निर्माण हुआ। उसमें, ‘युद्ध के दौर में बेचिराग हुए जर्मनी का पुनरुत्थान कर उसे स्वयंपूर्ण बनाना’ यह भी एक उद्देश्य था। लेकिन इस मामले में सोव्हिएत रशिया ने अन्य तीनों के साथ सहयोग करने से इन्कार किया। युद्ध के दौरान जर्मनी ने सोव्हिएत रशिया पर प्रत्यक्ष आक्रमण किया होने के कारण सोव्हिएत रशिया जर्मनी पर गुस्सा तो हुआ ही था; साथ ही, इस बात की कहीं भविष्य में पुनरावृत्ति तो नहीं होगी, यह डर भी था। इस कारण सोव्हिएत रशिया ने जर्मनी के, अपने अधिकार में रहनेवाले भाग को सुव्यवस्थित रूप में कमज़ोर बनाने की शुरुआत की थी। वहाँ के कारखाने, कच्चा माल तथा अन्य संसाधनों को वहाँ से स्थानांतरित करके सोव्हिएत रशिया में ले जाने की शुरुआत की थी। संक्षेप में, भविष्य में जर्मनी से कोई ख़तरा न हों, इसलिए पूर्व जर्मनी को आर्थिक दृष्टि से दुर्बल ही रखकर, साथ ही वहाँ पर कम्युनिस्ट शासनपद्धति लाने की सुव्यवस्थित योजना तत्कालीन सोव्हिएत रशिया ने बनायी थी। इस बदले की भावना से, जर्मनी को हमेशा के लिए दुर्बल रखने की सोव्हिएत रशिया की योजना इतनी ‘व्यापक’ थी कि जर्मनी की ‘रैशमार्क’ इस मुद्रा का मूल्य गिराने के लिए सोव्हिएत रशिया ने उसे इतने बड़े पैमाने पर छाप दिया कि आख़िरकार लोगों को उसके बदले ‘सिगारेट’ जैसी चीज़ को ‘मुद्रा’ के तौर पर इस्तेमाल कर ‘बार्टर सिस्टम’ का मार्ग अपनाना पड़ा।

उसीके साथ, सोव्हिएत रशिया का तत्कालीन सर्वाधिकारी रहनेवाले स्टॅलिन ने अपनी पश्‍चिमी सीमा से सटकर होनेवाले – पोलंड,  हंगेरी एवं झेकोस्लोव्हाकिया इन सोव्हिएतपरस्त देशों में कम्युनिस्ट शासनप्रणाली को मज़बूत बनाकर अपने लिए मानो संरक्षक दीवार ही खड़ी की थी। युद्ध के कारण ब्रिटन, फ़्रान्स की स्थिति अब पहले जितनी मज़बूत नहीं रही थी। स्टॅलिन को तो बस एक अमरीका की ही चिन्ता सता रही थी। दो-चार सालों में सबकुछ आलबेल होने के बाद जब अमरीका वहाँ से निकल लेगी, तब दुर्बल ब्रिटन को वहाँ से हटाकर, जर्मनी के चारों भागों का एकत्रीकरण करके, उस एकत्रित जर्मनी में कम्युनिस्ट शासनप्रणाली लाने की स्टॅलिन की योजना थी।

जर्मनी के पश्चिमार्ध में होनेवाला प्रदेश यह पहले से औद्योगिक प्रदेश के रूप में जाना जाता था; वहीं, पूर्वार्ध का प्रदेश यह कृषिप्रधान भाग के रूप में जाना जाता था। सोव्हिएत रशिया ने पश्‍चिमी देशों के अधिकार में होनेवाले जर्मनी के भागों को, खुद के अधिकार में होनेवाले जर्मनी के भाग से की जानेवाली अनाज की पूर्ति बंद कर दी। उसके जवाब के रूप में पश्‍चिमी देशों ने पश्चिम भाग में से जो कारखानों के खुले पुर्जे सोव्हिएत रशिया भेजे जानेवाले थे, वह प्रक्रिया स्थगित की।

समूचे जर्मनी को अपने नियंत्रण में लाने की कल्पना सोव्हिएत रशिया पर इतनी हावी हो गयी थी कि उसने सन १९४८-४९ में, बर्लिन के तीनों ओर पूर्व जर्मनी का प्रदेश होने का फ़ायदा उठाते हुए, पश्चिम जर्मनी के अधिकार में बर्लिन का जितना हिस्सा था, उससे पश्‍चिमी जगत् के साथ रेल्वे, सड़कें आदि के ज़रिये होनेवाली यातायात बंद कर दी, ताकि उन्हें केवल सोव्हिएत रशिया से ही अनाज-धान आदि की आपूर्ति हों और वे अपने आप ही सोव्हिएत रशिया के नियंत्रण में रहें। इसी घटना को इतिहास में ‘बर्लिन ब्लॉकेड’ कहा गया है। दरअसल भविष्य में ऐसा कुछ होगा, पूर्व जर्मनी से बर्लिन में आनेवालीं रेल्वेलाईन्स बंद की जायेंगी, इस बात की भनक तक किसी को भी न होने के कारण क़रारनामे में इसका उल्लेख नहीं था और इसी का फ़ायदा सोव्हिएत रशिया ने उठाया।

‘बर्लिन ब्लॉकेड’
बर्लिन ब्लॉकेड के दौरान पश्चिम बर्लिन के लोगों को हवाईमार्ग से अनाज आदि की आपूर्ति की जाती थी।

लेकिन इसपर पश्‍चिमी देशों ने निकाला हुआ हल कुछ ऐसा था – उन्होंने सीधे हवाई मार्ग से पश्चिम बर्लिन के लोगों को अनाज-धान की आपूर्ति करना शुरू किया। इस एक साल में दोस्त राष्ट्रों की लगभग २ लाख रिकार्ड़ उड़ानें इस काम के लिए भरी गयीं। उसपर सोव्हिएत ने यह चाल चली – उन्होंने ऐसी घोषणा की कि पश्चिम बर्लिन के जो नागरिक देशान्तर करके पूर्व बर्लिन में आयेंगे और रेशनकार्ड दर्ज़ करेंगे, उन्हें विनामूल्य अनाज की आपूर्ति की जायेगी। लेकिन इस सोव्हिएत ‘ऑफ़र’ को पश्चिम बर्लिन के नागरिकों ने ठुकरा दिया। इस ‘बर्लिन ब्लॉकेड’ का एक अनियोजित फ़ायदा यह हुआ कि जर्मनी और अमरीका-ब्रिटन-फ़्रान्स इन विश्‍वयुद्ध के शत्रुराष्ट्रों में होनेवाली शत्रुता की भावना कम होकर वे एकदूसरे के नज़दीक आने में मदद हुई।

इस प्रकार संपूर्ण बर्लिन को और कुछ समय बाद जर्मनी के चारों भागों को अपने अधिकार में लाने की सोव्हिएत रशिया की योजना उस समय तो नाक़ाम हुई थी।

सोव्हिएत रशिया की योजनाओं के बारे में जान जाने के बाद, उनका साथ छोड़कर अमरीका, ब्रिटन एवं फ़्रान्स ने अपने अपने अधिकार में होनेवाले जर्मनी के ३ भागों का एकत्रीकरण करके पश्चिम जर्मनी का निर्माण किया और अमरीका के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष ट्रुमन के कार्यकाल में शुरू हुए (शुरू शुरू में ग्रीस एवं तुर्की के लिए होनेवाला और फिर बाद में धीरे धीरे ‘सोव्हिएत’ प्रभाव में न रहनेवाले अन्य देशों को लिए विस्तारित किया हुए) ‘मार्शल प्लॅन’ को पश्चिम जर्मनी के लिए भी कार्यान्वित किया गया। लेकिन उसके पीछे केवल ‘युद्ध ख़त्म हुआ, शत्रुता ख़त्म हुई’ ऐसा सरल हिसाब नहीं था, बल्कि आर्थिक स्थिति ख़राब रहनेवाले देश में जैसे निरंतर असंतोष का माहौल रहता है, वैसा माहौल जर्मनी में निर्माण होकर पुनः किसी हिटलर का निर्माण न होने पाये, यह हेतु भी था। दोस्त राष्ट्रों के अंतःस्थ हेतु चाहे जो भी हों, मग़र पश्चिम जर्मनी ने इस नये अवसर का इस्तेमाल कर अपनी औद्योगिक प्रगति शुरू की।

पूर्व एवं पश्चिम जर्मनी ऐसे दो देशों का निर्माण करने की प्रक्रिया के तहत बर्लिन शहर के भी दो भाग किये गये। यह बर्लिन शहर दरअसल पूर्व जर्मनी के बिलकुल अन्दरूनी भाग में १०० कि.मी. पर बसा था (उसकी सीमा के तीन ओर से पूर्व जर्मनी का प्रदेश था; वहीं, एक ही ओर से पश्चिम जर्मनी को प्रवेश था)। फिर भी पुराने ज़माने से चलते आये उसके महत्त्व के कारण इस शहर के दो भाग किये गये।

पूर्व जर्मनी में सोव्हिएत रशिया के इशारे पर नाचनेवाली कम्युनिस्ट सरकार बिठायी गयी, जो सुनती थी केवल सोव्हिएत सरकार की ही!

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