रॉबर्ट पिअरी (१८५६-१९२०)

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एक अज्ञात भूखंड की खोज में भटकने वालों की नामावलि में रॉबर्ट एडवन पिअरी का कार्य काफी कीमती का माना जाता है स्वयं का आधे से अधिक जीवन एक सिरफिरे  की तरह सनक में ही रॉबर्ट पिअरी ने उत्तर ध्रुवीय प्रदेश में बिता दिया।

उत्तर ध्रुव में कदम रखनेवाले पहले मनुष्य के रूप में मान्यता प्राप्त रॉबर्ट पिअरी का जन्म ६  मई, १८५६  के दिन पेनिसिल्वेनिया में हुआ था। फौजी जीवन का आकर्षण रखनेवाले रॉबर्ट १८८१  में उपाधि (डिग्री) प्राप्त करने के पश्‍चात् अमेरिकी नौदल में लेफ्टनंट का पद प्राप्त किया। वे नौदल के अभियांत्रिकी विभाग में कार्यरत थे।

नौदल में कार्यरत रहते ही उन्हें भ्रमण करने की धुन सी लग गई थी। ऐसे में १८८५ में रॉबर्ट के हाथों ‘नॉर्डैनस्कोल्ड’ नामक लेखक द्वारा लिखी गई पुस्तक आ गई, जिस में उन्होंने अपने ग्रीनलँड सफ़र का अनुभव लिखा था। इस पुस्तक को पढ़कर रॉबर्ट के दिलो-दिमाग पर एक अजीब सी धुन सवार हो गई और इसी सनक में उन्होंने उत्तर ध्रुव का चिंतन शुरु कर दिया। साधारणत: १८९१  से १९०९ इस समय के अन्तर्गत उन्होंने उत्तर ध्रुवीय प्रदेश में आठ मुहिमों की रूपरेखा बनाई। इनमें बर्फीले  प्रदेश में कुत्तों की गाड़ी चलाना, इग्लु बाँधना, बालदार खाल के कपड़ों का उपयोग करना तथा बर्फीले  प्रदेश में स्वयं के बचाव के लिए आवश्यक लगने वाले यंत्रों का ज्ञान हासिल करना, यह सब आवश्यक कार्य कर लिया।

नौदल से प्राप्त अनुभव एवं ध्रुवीय प्रदेश के एस्किमों लोगों का ज्ञान इन दोनों बातों के आधार पर रॉबर्ट ने ध्रुवीय प्रदेश में अनेक दिलेरी के कार्य किए। उत्तर अमेरिका खंड का इससे पहले किसी ने भी न देखा हुआ किनारा उसने खोज लिया। टापुओं को नक्शाबद्ध करने में रॉबर्ट को सफलता प्राप्त हुई। १९०६ की एक ध्रुव मुहिम में उत्तर ध्रुव से केवल १७४  सागरी मील दूर रहने पर भी उन्हें किसी कारणवश अपने इस प्रयत्न को अधूरा छोड़ना पड़ा था। तब तक सतत निडरता पूर्वक मुहीम निकालने वाले रॉबर्ट की पहचान दुनिया भर में उत्तर ध्रुव के करीब पहुँचने वाले भ्रमणकर्ता के रूप में ही हो चुकी थी।

रॉबर्ट की निरंतर चलती रहनेवाली मुहिमों को एवं अज्ञात प्रदेश को ढूँढ़ने की तड़प को ध्यान में रखते हुए अमेरिका सरकार ने भी रॉबर्ट पिआरी की उत्तर ध्रुव के मुहिमों के लिए मदद करने का फैसला किया। सरकार से सहकार्य मिलने के कारण १९०९ में शुरु की गयी मुहिम में रॉबर्ट के साथ कॅप्टन बार्लेट था। इस मुहीन के लिए उसने अपने साथ ३३  कुत्तों को लिया था और ब़र्फ पर खिसककर चलनेवाली १९ गाड़ियाँ भी थीं। साथ ही २३ सहायक एवं मदद के लिए कुछ एस्किमो इनका भी समावेश था। ‘रूझवेल्ट’ जहाज़ के द्वारा इस मुहिम की शुरुआत हुई।

इससे पहले की असफल  होनेवाली मुहिमों के अनुभवों के कारण पिअरी ने इस बार व्यवस्थित रूप में नियोजन करने का निश्‍चय किया था। निकलने से पहले ही अपने साथ होने वाले सभी लोगों की उन्होंने टुकड़ी बना ली। एक टुकड़ी सर्वप्रथम आगे जाकर मार्ग निश्‍चित करेगी और फिर  पीछे से आने वाली टुकड़ियाँ मार्गक्रमण करते हुए बर्फ  में मार्ग का निर्माण करेंगी, इस प्रकार की योजना पिअरी ने नियोजित की थी। इसके साथ उन टुकड़ियों को कार्य करना सुविधाजनक हो इसके लिए पिअरी ने कुछ अंतरों पर पाड़ाव ड़ालने का भी तय किया था।

इससे पहले की मुहिमों का अनुभव उनके पास होने के कारण पिअरी ने अपना सफर  उचित मौसम में शुरू किया था। साथ में होनेवाले लोग कुछ नये होने के कारन पिअरी ने कहीं कोई गुमराह न हो जाये, कोई रास्ता में भटक न जाये, साथ ही लोगों को आवश्यकतानुसार विश्राम भी मिल सके इस उद्देश्य से साधारणत: हर बार ६० मील के अंतर को पार करने पर आराम मिल सके ऐसा इंतज़ाम भी पिअरी ने कर रखा था। सभी पूर्व तैयारियाँ हो जाने पर अंत में ६ जुलाई १९०८  के दिन अमरिका के न्यूयॉर्क बंदरगाह से पिअरी ने उत्तरध्रुव के लिए अपनी महत्त्वाकांक्षी मुहीम शुरु की।

पड़ाव पर पड़ाव पार करते हुए ५ सितंबर के दिन रॉबर्ट पिअरी और उनकी टुकड़ी कॅम्प शेरीडॉन इस आखरी सागरी पड़ाव तक आ पहुँची। इसके पश्‍चात् होनेवाला सारा प्रवास बर्फीले  रास्ते पर का था। रूझवेल्ट जहाज केप शेरीडॉन में सुरक्षित रूप में खड़ा करके पिअरी ने रास्ते का प्रवास आरंभ किया। बर्फ  के रास्ते पर से कुछ मीलों तक का प्रवास करते हुए पिअरी एवं उनकी टुकड़ी ने सभी सामान के साथ फरवरी १९०९ में केप कोलंबिया नामक नियोजित पड़ाव तक का अपना सफर  पूरा किया। इस पड़ाव के पश्‍चात् का प्रवास यह ‘अज्ञात प्रदेश का प्रवास’ था। इसी कारण कुछ गिने-चुने सहकारियों के संग १ मार्च से रॉबर्ट पिअरी ने अपना ध्येय पूरा करने की दृष्टि से प्रवास शुरु कर दिया।

कुत्तों की गाड़ियों पर लगभग महीने भर प्रवास करने पर ५ अप्रैल के दिन पिअरी और उनके सहकारी ८९ अंश अक्षांश रेखांश सीमा के करीब जा पहुँचे। अंतत: ६ अप्रैल के दिन संध्या समय पिअरी एवं उनकी टुकड़ी ने अपना प्रवास रोक दिया। प्रवास रोकने के पश्‍चात् पिअरी ने अपने पास होनेवाले साधनों की सहायता से निरीक्षण करना आरंभ किया और जोर से चीख उठे ‘आखिरकार हम जीत ही गए, हमारी जीत हुई, हमने उत्तरध्रुव को ढूँढ़ ही लिया।’

पिअरी एवं उनके सहकारियों ने अपने उस स्थान पर पहुँच जाने की निशानी के रूप में बर्फ  का एक छोटा सा टील खड़ा करके उस पर अमेरिका का ध्वज फहरा  दिया। इसके साथ ही उस पर एक छोटी सी चिठ्ठी भी दर्ज कर दी यह लिखकर की ‘मैंने अपने सहकारियों सहित उत्तर ध्रुव की खोज कर ली है।’ केप कोलंबिया इस आखरी पड़ाव से लगभग ३७ दिनों में ही पिअरी एवं उनके सहकर्मियों ने उत्तर ध्रुव पर पहुँचना संभव कर दिखलाया था।

मन में एक जिद्द, योग्य नियोजन, अथक परिश्रम एवं सहनशीलता और इसके साथ ही असफलता से हार न मानने की वृत्ति इन गुणों के कारण ही उत्तर ध्रुव तक पहुँच पाना रॉबर्ट पिअरी के लिए संभव हो पाया। अपने द्वारा की गई इस कार्यकारिता की एवं ध्रुव के करीबी जनजीवन की जानकारी पूरी दुनिया तक पहुँच सके इस हेतु से पुन: लौटकर आने पर रॉबर्ट पिअरी ने इस कहानी को ‘द नॉर्थ पोल’ इस नाम से शब्दबद्ध करके रख दिया।

आज के इस द्रुतगति से दौड़ते हुए युग में एक खंड से दूसरे स्थान पर सहज ही हवाई जहाज़ के द्वारा जाने की सुविधा उपलब्ध है। इतना ही नहीं पृथ्वी से दूर अंतराल में पर्यटन करने का अवसर भी लोगों को मिल सके इसके लिए खोजकर्ताओं ने अपना-अपना संशोधन कार्य आरंभ कर दिया है। ऐसे कालखंड के दौरान पृथ्वी के ऊपर ही होनेवाले एक अज्ञात प्रदेश की पहचान करवानेवाले रॉबर्ट पिअरी  का जीवन निश्‍चित ही हमारे लिए प्रेरणादायी साबित होगा इसमें कोई संदेह नहीं है।

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