‘राईट टू प्रायवसी’ मूलभूत अधिकार- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

नई दिल्ली: ‘राइट टू प्रायवसी’ अर्थात व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षित रखने का अधिकार, यह प्रत्येक नागरिक का मूलभूत अधिकार है’ यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को दिया। सरकार ने इस निर्णय का स्वागत किया है। साथ ही ‘राइट टू प्राइवेसी’ मूलभूत अधिकार होते हुए भी वह निरंकुश अधिकार नहीं, यह भी न्यायालय ने अपने निर्णय पत्र में कहने की बात केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने याद दिलाई है। केंद्र सरकार की यही भूमिका होने की बात रविशंकर प्रसाद ने कही है।

सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य करने के निर्णय के विरोध में न्यायालय के सामने याचिका आयी थी। इन याचिका में आधार कार्ड के घटनात्मक वैधता को आव्हान दिया था। आधार कार्ड की वजह से निजी जानकारी सार्वजनिक होने का खतरा है, एवं वह जानकारी उजागर करने से इस जानकारी का दुरुपयोग हो सकता है यह चिंता इस याचिका में व्यक्त की थी, यह मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के ३ सदस्य अदालत में उठा था। उस समय, ‘क्या राइट टू प्रायवसी यह मूलभूत अधिकार है?’ यह प्रश्न उपस्थित हुआ था। क्योंकि इसके पहले राइट टू प्रायवसी के संदर्भ में अनेक निर्णय हुए हैं।

सन १९५० और १९६० में दो अलग-अलग प्रकरणों में सर्वोच्च न्यायालय ने दिए निर्णय में ‘प्रायवसी’ यह मूलभूत अधिकार न होने की बात कही गयी थी। जिसके वजह से ‘राइट टू प्रायवसी’ यह मूलभूत अधिकार है या नहीं, यह ठहराने का निर्णय घटनापीठ लेगी एवं घटना पीठ स्थापित करने का निर्णय मुख्य न्यायाधीश लेंगे, ऐसा तीन सदस्य अदालत ने कहा था। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने आधार का निर्णय लेने के लिए जुलाई महीने में पांच सदस्य अदालत की स्थापना की। पर आधार कार्ड के बारे में निर्णय लेने के पूर्व ‘राइट टू प्रायवसी’ मूलभूत अधिकार है कि नहीं यह ठहराने के लिए ९ सदस्य घटनापीठ स्थापित किया था।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर की अध्यक्षता में इस घटनापीठ ने इस संदर्भ में पहले हुए निर्णय तथा याचिकाकर्ता एवं सरकारी पक्ष का बहस सुनने के बाद घटना के कलम २१ अनुसार ‘राइट टू प्रायवसी’ यह मूलभूत अधिकार होने की बात कही है। पर इसमें आधार कार्ड के बारे में कोई भी टिप्पणी नहीं की गयी। आधार कार्ड के लिए नागरिकों की जमा की गयी जानकारी ‘राइट टू प्रायवसी’ मैं बैठती है या नहीं यह निर्णय पांच सदस्य खंडपीठ अदालत लेंगे और जल्द ही उस पर निर्णय होने की आशंका जतायी है

भारत सरकार ने इस निर्णय का स्वागत करते ‘सरकार की भूमिका सर्वोच्च न्यायालय से अलग नहीं थी, यह स्पष्ट किया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने संसद में आधार विधेयक प्रस्तुत किया था, तब भी आधार से ‘राइट टू प्रायवसी’ को खतरा निर्माण नहीं होगा यह स्पष्ट किया था’ यह कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है। साथ ही सरकार से न्यायालय में पक्ष रखने वाले वकील ने भी यही बात स्पष्ट की थी। पर प्रायवसी का अधिकार यह मूलभूत होकर फिर भी उसका निरंकुश अधिकार में समावेश नहीं होता यह सरकार का कहना है। सर्वोच्च न्यायालय की अदालत में न्यायाधीश ने निर्णय पत्र में यह कहा है। यह अधिकार परिपूर्ण न होकर कुछ मामले में उस पर नियंत्रण हो सकता है, इस पर कायदा  मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ध्यान केंद्रित किया।

आधार कार्ड तकनीक एक चमत्कार है। अन्य देशोंने इसकी प्रशंसा की है। आधार कार्ड द्वारा पात्र नागरिकों तक योजनाओं के लाभ पहुंचाने में हम सफल हुए हैं। इसकी वजह से मध्यस्थि पर होने वाला खर्च करीब ५७ हजार करोड रुपए सरकार ने बचाए है। आधार कार्ड के लिए लिये ‘बायोमेट्रिक्स’ जानकारी की सुरक्षा के लिए सरकार ने सही कदम उठाए हैं। किसी को भी जानकारी उजागर करने का अधिकार नहीं, इसके लिए कठोर शिक्षा का प्रावधान है। साथ ही, इस जानकारी की सुरक्षा के लिए जो कदम सरकार ने उठाए हैं एवं उठा रहे हैं, उसकी पूर्व सुचना सर्वोच्च न्यायालय को दी गयी है, यह भी कानून मंत्री ने स्पष्ट किया है।

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