श्वसनसंस्था भाग – ४७

समुद्र में पानी के नीचे काम करनेवालों को Sea Divers अथवा गोताखोर कहते हैं। इन्हें पानी के नीचे काम करते समय किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, इसकी जानकारी हम प्राप्त कर रहे हैं। पानी के नीचे श्वासोच्छवास करते समय अंदर ली गयी हवा का दबाव उच्च होता है। फलस्वरूप हवा की विभिन्न वायुओं का रक्त में पार्शल प्रेशर भी बढ़ जाता है। बढ़े हुए पार्शल प्रेशर के शरीर पर होनेवाले दुष्परिणामों की जानकारी हमने पिछले लेख में प्राप्त की। नत्रवायु के उच्च दाब का एक अलग दुष्परिणाम शरीर पर होता है, उसे Decompression Sickness कहते हैं। इस विकार में वास्तव में क्या होता है, यह अब हम देखेंगे।

रक्त और ऊतकों के नत्रवायु शरीर के किसी भी कार्य में उपयोग में नहीं लायी जाती। उसका चयापचय नहीं होता है। अन्य दोनों वायुओं का उपयोग विविध कार्यों के लिए किया जाता है। उच्च दबाव वाली अंदर ली गयी नत्रवायु रक्त और ऊतकों के अन्य द्रव में घुल जाती है। वहाँ पर उसके उसी तरह जमा होते रहने के कारण धीरे-धीरे उसकी मात्रा बढ़ती जाती है। रक्त एवं ऊतकों की नत्रवायु जमा करने की पूरी क्षमता उपयोग में लायी जाती है। इस वायु का चयापचय ना होने के कारण घुली हुई अवस्था में ही यह जमा रहती है। गोताखोर जब पानी से बाहर आता है तो उसके फेफड़ों में नत्रवायु का दाब कम हो जाता है। इस अवस्था में शरीर में जमा नत्रवायु साँस के माध्यम से बाहर निकाली जाती है।

समुद्रतल पर हमारे शरीर में कुल १ लीटर नत्रवायु घुली हुई अवस्था में होती है। इसमें आधी से अधिक नत्रवायु स्निग्ध पेशी में होती है और शरीर की अन्य पेशियों में होती है। अन्य किसी भी द्राव की तुलना में नत्रवायु स्निग्धांश में पाँच गुना ज्यादा घुलती है। इसी लिए शरीर में उपरोक्त असमतोल दिखायी देता है।

फेफड़ों की नत्रवायु और शरीर में घुली हुई नत्रवायु की मात्रा में समानता होने तक नत्रवायु शरीर के द्राव में घुलती रहती है। इस समानता को प्राप्त करने में कुछ घंटो का समय लग जाता है। इसी लिए कुछ मिनटों तक पानी में रहकर बाहर आये हुए व्यक्ति में नत्रवायु के दुष्परिणाम नहीं दिखायी देते। जब गोताखोर पानी के अंदर कई घंटे व्यतीत करते हैं तो उन्हें यह तकलीफ होती है। अब हम देखेंगे कि इस विकार में कौन-कौन से लक्षण दिखायी देते हैं और उनके पीछे के क्या कारण हैं।

Decompression Sickness :
जब कई घंटों तक पानी में रहकर गोताखोर पानी के बाहर आता है तो उसे इस बीमारी की तकलीफ होती है। शरीर के विविध द्रावों में घुली हुई नत्रवायु का पानी के बाहर आते ही, बुलबुलों में रूपांतर हो जाता है। नत्रवायु के अनेक बुलबुले पेशी के अंदर, पेशीबाह्य द्राव में और रक्त में तैयारी हो जाते हैं। विभिन्न आकारवाले ये बुलबुले, शरीर के महत्त्वपूर्ण कार्यों पर गंभीर स्वरूप के दुष्परिणाम करते हैं।

अब हम देखेंगे कि नत्रवायु के बुलबुले कैसे बनते हैं। जब गोताखोर पानी के अंदर होता है तब उसके शरीर के बाहर और शरीर के अंदर का दबाव समान और उच्च होता है। यह दाब एक ऍटमॉसफेरिक दाब से ज्यादा होता है। शरीर के बाहर उच्च दबाव के कारण शरीर की नत्रवायु हमेशा द्राव में घुली हुई अवस्था में होती है। यह है Compression effect अथवा उच्च दबाव का परिणाम। जब गोताखोर पानी के अंदर १०० फूट तक जाता है उसके शरीर में ४ लीटर नत्रवायु घुली हुई अवस्था में होती है। ३०० फूट पर यह मात्रा १० लीटर हो जाती है।

पानी के नीचे रहनेवाला व्यक्ति यदि अचानक पानी की सतह पर आ जाता है तब उस व्यक्ति के शरीर के बाहर का दबाव एकदम कम हो जाता है। यह दाब एक ऍटमॉसिफेरिक होता है। परन्तु शरीर के अंदर का दबाव अभी भी उच्च होता है। शरीर का बाहरी दबाव कम हो जाने से शरीर की नत्रवायु शरीर से बाहर निकलने का प्रयास करती हैं (Tries to escape) इस क्रिया के दौरान उसके बुलबुले बन जाते हैं। पेशी के अंदर बने बुलबुले पेशी के कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं। रक्त में बने हुए बुलबुले उनके आकार के अनुसार छोटी-बड़ी रक्तवाहनियों को बंद करते हैं।

इस बीमारी में जो लक्षण दिखायी देते हैं, वे वायु के बुलबुलों द्वारा जगह-जगह पर रक्तवाहनियों में रक्तप्रवाह के बंद होने के कारण निर्माण होते हैं। ८५ से ९० प्रतिशत लोगों में हाथ-पैरों की मांसपेशियों एवं जोड़ों में जबरदस्त दर्द होता है। ५ से १० प्रतिशत लोगों में मज्जासंस्था पर असर होता है। चक्कर आना, पक्षाघात होना, बेहोश होना इ. लक्षण ऐसे व्यक्ति में दिखायी देते हैं। ज्यादा तर रोगियों में पक्षाघात कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। २ प्रतिशत लोगों में फेफड़ों की रक्तवाहनियाँ वायु के बुलबुलों से भर जाती हैं। उन्हें साँस की तकलीफ होती है। फेफड़ों में सूजन आ जाती है। ऐसी अवस्था में कभी-कभी मौत हो जाने की भी संभावना होती है।

नत्रवायु के दुष्परिणामों को कम करने के लिए हेलिअम वायु का उपयोग करते हैं। पानी में ज्यादा समय तक काम करनेवाले व्यक्ति को प्राणवायु-नत्रवायु मिश्रण के बजाय प्राणवायु-हेलिअम के मिश्रण की आपूर्ति की जाती है। हेलिअम के तीन गुणधर्म उपयोगी होते हैं –

१) नायट्रोजन की तुलना में इसका नारकोटिक परिणाम सिर्फ २० प्रतिशत हैं।
२) नत्रवायु की तुलना में हेलिअम सिर्फ ५० प्रतिशत ही घुलती है। पानी से बाहर आने पर यह वायु नत्रवायु की अपेक्षा शीघ्रता से शरीर के बाहर निकलती है। फलस्वरूप इसके बुलबुले नहीं बनते।
३) नत्रवायु की तुलना में इसकी घनता कम होने के कारण श्वासोच्छवास करना आसान होता है।

Decompression की बीमारी ना हो, इसके लिए गोताखोर सावधानीपूर्वक बाहर आते हैं। इसके अलावा Pressure Tank जैसे उपकरणों का उपयोग भी किया जाता है।(क्रमश:)

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