श्वसनसंस्था भाग – ४३

‘न्यूयॉर्क-मुंबई नॉनस्टॉप विमान सेवा शुरु।’ ‘लम्बी दूरी की विमान यात्रा नॉनस्टॉप पद्धति से शुरु करने की योजना बनायी जा रही है। भविष्य में सभी लम्बी दूरी वाले विमानप्रवास इसी पद्धति से शुरू होंगे।’ ‘लम्बी दूरी की नॉनस्टॉप विमान सेवा शुरू होने के बाद से गत बीस दिनों में यात्रा के दौरान छ: यात्रियों की मौत।’ – २१ नवम्बर २००६ को एक समाचारपत्र में छपी खबर।

इस प्रकार का समाचार आपने भी पढ़ा होगा। लोग विमान-यात्रा करेंगे। विमान चलानेवाली कंपनियां लम्बी दूरी की सेवायें शुरू ही रखनेवाली हैं। यानी यात्रियों को विमान में अपनी सीट पर १२ से १५ घंटो तक बैठे ही रहना पड़ेगा। क्या मैं ऐसी यात्रा कर सकूँगा? मेरे शरीर पर इसके कौन-कौन से दुष्परिणाम होंगे? उन्हें टालने के लिए हमें कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए  इन सभी बातों का विचार मुझे ही करना चाहिए। इसीलिए विमान-यात्रा के दौरान होनेवाले दुष्परिणामों की जानकारी मुझे होनी ही चाहिए। आज हम यही जानकारी प्राप्त करनेवाले हैं।

विमान-यात्र के दौरान सेंट्रिफ्यूगल फोर्सेस ज्यादा घातक साबित होती हैं। इसके दो प्रकार होते हैं, यह हमने पिछले लेख में देखा है। ये दो फोर्सेस है – Positive G अथवा धन ‘जी’ और Negative G अथवा ऋण ‘जी’। अब हम इनकी सविस्तर जानकारी प्राप्त करेंगे।

धन ‘जी’ के शरीर पर होनेवाले परिणाम :
मुख्यत: इसका असर रक्ताभिसरण संस्था और अस्थिसंस्था दोनों पर होता है।

अ) रक्ताभिसरण संस्था पर होनेवाला परिणाम : हमारे शरीर में ‘रक्त’ एक ही पदार्थ ‘चल’ (mobile) है। फलस्वरूप रक्त शरीर में हमेशा रहनेवाली अपनी जगह छोड़कर दूसरी जगह जाता है या सेंट्रिफ्यूगल फोर्स के कारण खींचा जाता है। विमान यात्रा के दौरान +G फोर्स के कारण शरीर का रक्त पैरों की ओर खींचा जाता है। रक्ताभिसरण संस्था की जानकारी लेते समय हमने देखा था कि पैंरों की वेन्स्‌ में नॉर्मल हैड्रोस्टॅटिक दबाव 90 mm of Hg होता है। (जब मनुष्य खड़ा होता है) विमान की यात्रा के दौरान यदि यात्री पर +5G फोर्स कार्य कर रहा होगा तो विमान में खड़े हुए यात्री की वेन्स्‌ में 450 mm of Hg जितना प्रचंड दबाव निर्माण हो जाता है। सीट पर बैठे हुए व्यक्ति के पैरों की वेन्स्‌ में दबाव साधारणत: 3oo mm of Hg होता है।

शरीर के आधे निचले हिस्से की वेन्स् में जैसे-जैसे दबाव बढ़ता है, वैसे-वैसे इन वेन्स्‌ में रक्त जमा होने लगता है। कमर से नीचे की वेन्स्‌ डायलेट हो जाती है। जिससे ज्यादा रक्त जमा हो सकता है। कमर के ऊपरी हिस्से का रक्त भी कमर से नीचे के हिस्से में जमा हो जाता है। जितनी मात्रा में रक्त जमा हो जाता है, उतनी मात्रा में रक्त हृदय में वापस नहीं जाता, क्योंकि पैरों की वेन्स्‌ डायलेट हो जाती है। हृदय में आनेवाले रक्त की मात्रा कम हो जाने के कारण कार्डिआक आऊटपुट कम हो जाता है। शरीर के अन्य अवयवों को रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है।

+ 3.3 G का acceleratory force यदि शरीर पर कार्यरत हो तो क्या होता है, देखते हैं।

जैसे ही फोर्स कार्य करने लगता है वैसे ही पहले कुछ सेकेंड़ों में ही सिस्टोलिक और डायस्टोलिक दोनों रक्तचाप 22 mm of Hg से कम हो जाता है। अगले १० से १५ सेकेंड़ों में इसमें सुधार होता है। सिस्टोलिक रक्तचाप 50 mm Hg पर तथा डायस्टोलिक रक्तचाप 20 mm Hg पर स्थिर होता है। शरीर के बॅरोरिसेपटर्स के कारण ऐसा होता है। +4 Vo +6G के दरम्यान का फोर्स यदि विमान के वेग के फलस्वरूप शरीर पर कार्यरत होगा तो वो घातक साबित हो सकता है। इतने वेग की शक्ति के कारण सर्वप्रथम व्यक्ति की आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है। कुछ भी दिखायी नहीं देता है। रक्तचाप और कार्डिआक आऊटपुट के अचानक कम हो जाने से मस्तिष्क में होनेवाली रक्त की आपूर्ति लगभग शून्य हो जाती है। इसी लिए उपरोक्त लक्षण दिखायी देने लगते हैं। यदि सेंट्रिफ्युगल फोर्स का कार्य शुरू ही रहा तो व्यक्ति बेहोश हो जाता है और उसी अवस्था में मौत हो जाने की भी संभावना होती है।

अस्थिसंस्था पर परिणाम : अस्थियों में सेंट्रिफ्युगल फोर्स का ज़्यादा असर रीढ़ की हड्डी पर होता है। अत्यंत वेग के सेंट्रिफ्युगल फोर्सेस के कारण पलभर में ही रीढ़ की हड्डी टूट (Fracture) जाती है। इसके लिए इन फोर्सेस का 20 G के स्तर तक होना चाहिए।

ऋण ‘जी’ (Negative G) के शरीर पर परिणाम : ऋण ‘जी’ के परिणाम धन ‘जी’ की तरह अचानक और नाटकीय ढ़ंग से नहीं होते। इसके परिणाम शरीर पर स्थायी निशान छोड़ सकते हैं। यदि -4 G से -5 G के फोर्स से विमान ने पलटी मारी तो अंदर के व्यक्ति का सिर नीचे और पौर ऊपर होते हैं। ऐसी स्थिति में शरीर का रक्त ज्यादा मात्रा में मस्तिष्क में जमा होता है। इसे Hyperenmia अथवा बढ़ा हुआ रक्ताभिसरण कहते हैं। फलस्वरूप मनुष्य के व्यवहार में फर्क आ जाता है, मानसिकता बदल जाती है, मस्तिष्क में सूजन आती है। यदि -20 G का फोर्श कार्यरत हो जाए तो शरीर का रक्त सिर में जमा हो जाता है। मस्तिष्क का रक्तचाप 300 से 400 mm Hg तक बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए रक्तदाब के कारण सिर की और मस्तिष्क की छोटी रक्तवाहनियों के फट जाने का खतरा होता है। प्राय: मस्तिष्क की रक्तवाहनियाँ सुरक्षित रहती हैं, क्योंकि मस्तिष्क के चारों ओर रहनेवाला द्राव (Cerebrospinal Fluid) उसे सुरक्षा देता है। हमारी आँखें सिर की खोपड़ी के बाहर होती हैं। उन्हें यह संरक्षण नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में आँखों में ज्यादा मात्रा में रक्त जमा हो जाता है। ऐसा होने पर उस व्यक्ति की आँखों के सामने अंधेरा ना छा कर यानी black out ना होकर सभी जगह लाल रंग दिखायी देता है। इसे red-out कहते हैं।

विमान की गति और दिशा के कारण निर्माण होनेवाले सेंट्रिफ्युगल फोर्सेस से अपने शरीर का संरक्षण कैसे किया जाये, इसका शोध शास्त्रज्ञ कर रहे हैं। विमानयात्रा के दौरान प्रत्येक व्यक्ति एक छोटा सा काम कर सकता है। जिस क्षण सेंट्रिफ्युगल फोर्स काम करनेवाला हो उसी क्षण सभी को अपने पेट के स्नायुओं को कड़क करके अपनी सीट पर ही थोड़ा आगे की ओर झुक जाए। इसके कारण पेट के अंदर का दाब बढ़ जाता है और पेट की वेन्स्‌ में जमा हुआ रक्त हॄदय की ओर ढ़केला जाता है। इससे कार्डिआक आऊटपुट में वृद्धि होती है। वैज्ञानिकों ने अँटी-जी पोशाक बनायी है परन्तु वह भी ज्यादा उपयुक्त नहीं हैं। ऐसी परिस्थिति में यात्रियों को ही अपना खयाल रखना आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदयविकार, श्वसन के विकारवाले व्यक्तियों को अपने डॉक्टर की सलाह लेकर ही विमान यात्रा करनी चाहिए।(क्रमश:-)

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