श्वसनसंस्था भाग – ३९

हमारी श्वसन क्रिया पर नियंत्रण कैसे होता है, हम इसकी जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। मस्तिष्क का श्वसनकेन्द्र, शरीर की धमनियों के केमोरिसेप्टर्स, स्नायुओं और जोड़ों के रिसेप्टर्स आदि सब मिलकर श्वसन क्रिया पर नियंत्रण रखते हैं। श्वसन क्रिया पर नियंत्रण रखनेवाले सभी घटकों का एकमात्र उद्देश्य होता है- रक्त में प्राणवायु, कर्बद्विप्रणिल वायु और हॅड्रोजन वायु की उचित मात्र बनाये रखना। उचित मात्रा का तात्पर्य है शरीर की सभी पेशियों को उनके कार्यों के लिए आवश्यक मात्रा। परिस्थिति के अनुसार यह घटक अपने कार्यों में बदलाव करते रहते हैं।

व्यायाम हो या पर्वतारोहण, श्वसनक्रिया को नियंत्रित करनेवाली पेशियाँ उचित समतोल बनाये रखती है। इसके लिये वे असाधारण परिस्थिति में क्या होता है, क्या घटित होता है, इसका ‘अभ्यास’ करती हैं। इस ‘अभ्यास’ से प्राप्त जानकारी का उपयोग करके अपने कार्यों की दिशा निर्धारित करते हैं। असाधारण स्थिति में क्या करना है, उसकी योजना बनाती हैं और असाधारण परिस्थिति की संभावना होते ही अपनी उचित कार्यवाही शुरू कर देते हैं। पर्वतारोहण के समय पर्वतारोही में होनेवाले acclimatization और व्यायाम की शुरुआत करते ही श्वसन में होनेवाले बदलावों का उदाहरण हमने देखा है। उपरोक्त यह सारी योजना यह मानवशरीर की यन्त्रणा का आपात्कालीन व्यवस्थापन ही है। जब हमारे शरीर की छोटी-छोटी पेशियाँ भी ‘आपात्कालीन व्यवस्थापन’ का ‘फंड़ा’ आत्मसात कर सकती है, तो फिर इसमें पीछे क्यों रह जाते हैं?

अबतक हमने श्वसन का नियंत्रण देखा, ये सब involuntary है अर्थात हमारे ‘स्व’ के नियंत्रण से बाहर की बात है। इसमें हम चाहकर भी बदलाव नहीं ला सकते, परन्तु कुछ हद तक श्वसन का नियंत्रण हमारे हाथों में होता है। इस नियंत्रण को voluntary नियंत्रण कहते हैं।

Voluntary का तात्पर्य है, पूरी तरह होश में रहते हुए स्वयं के द्वारा किया गया श्वसन में बदलाव। इसमें व्यक्ति या तो श्वास की गति ज्यादा तेज़ करता है या अतिमंद करता है। इनमें से किसी की भी उच्चतम सीमा तक जाना प्राणों के लिए घातक साबित हो सकता है। क्योंकि इस प्रकार के श्वसन में PCO२, PO२ और रक्त के PH में होनेवाले बदलाव शरीर के लिए घातक होते हैं। अपने आप अपनी श्वसन क्रिया में बदलाव करनेवाले व्यक्ति को यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है। इसका कष्ट उसके ही शरीर को होता है। बरतन में दिया रखकर उसके धुए में साँस छोड़कर जोरों से चक्कर लगाना आदि इसी प्रकार के उदाहरण हैं। साँस बरतन में छोड़कर चक्कर लगानेवाला व्यक्ति अपनी उच्छश्वास को बरतन में छोड़ता है और फिर साँस लेते समय वही हवा अंदर लेता है। बार-बार ऐसा करते रहने से बरतन में प्राणवायु की मात्रा कम-कम होती जाती है और कर्बद्विप्रणिलवायु की मात्रा बढ़ती जाती है। धीरे-धीरे ऐसा व्यक्ति श्वास के साथ ज्यादा मात्रा में कर्बद्विप्रणिल वायु अंदर लेता है, इसका परिणाम रक्त में वायु की मात्रा पर पड़ता है। रक्त में प्राणवायु की मात्रा घट जाती हैं और कर्बद्विप्रणिल वायु का प्रमाण बढ़ जाता है जो शरीर के लिए घातक होता है।

श्वसन मार्ग में ‘इरिटंट रिसेप्टर्स’ नामक रिसेप्टर्स होते हैं। जब ये रिसेप्टर्स कार्यरत होते हैं तो हमें झींके आती हैं अथवा खाँसी आने लगती है। दमा जैसी बीमारी में यही रिसेप्टर्स छोटी-मोटी ब्रोंकाय को सीमा से ज्यादा आकुंचित करते हैं।

मस्तिष्क की सूजन (Brain edemma), सुन्न करने के लिए (Anaesthesia) प्रयोग में लाने जानेवाली कुछ दवाइयाँ श्वसन केन्द्र के कार्य को धीमा कर देती हैं। श्वसन की बीमारियों में एक महत्त्वपूर्ण विकार है चाएन स्टोकस् (cheynestokes) श्वसन।

चाएन स्टोक्स श्वसन : शरीर की कुछ बीमारियों में ऐसे श्वसन का निर्माण होता है। इस प्रकार के श्वसन में सर्वप्रथम श्वसन का वेग बढ़ता जाता है और एक ही क्षण में यह वेग एकदम मंद हो जाता है अथवा कुछ क्षणों के लिए श्वास रुक ही जाती है। इसके बाद वो फिर धीरे-धीरे तीव्र होने लगती है। दो महत्त्वपूर्ण बीमारियों में ऐसा श्वसन होता है।

१) हृदय के बांयीं ओर के कार्य शिथिल हो जाने पर।
२) मस्तिष्क को जोरदार चोट लगने पर।

प्राणवायु और कर्बद्विप्रणिलवायु का असमतोल, इस प्रकार की श्वसन के लिए कारणीभूत होता है। किन्हीं भी कारणों से यदि किसी व्यक्ति की श्वास की गति तेज हो जाये तो उसके रक्त में कर्बद्विप्रणिलवायु कम और प्राणवायु बढ़ जाती हैं। PCO२ कम हो जाने के कारण श्वसन केन्द्र के कार्य धीमें हो जाते हैं और इसी लिए पहले तेज़ गति से चलनेवाला श्वसन, धीमा पड़ जाता है। श्वास धीमी होने पर रक्त की कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा बढ़ जाती हैं। यह वायु श्वसन केन्द्र को कार्यरत करता है और श्वास फिर तेज़ हो जाती है। इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है।

हार्ट फेल्युअर में जब हृदय के बायें बाजू का कार्य धीमा हो जाता है तब रक्त प्रवाह भी धीमा हो जाता है। रक्तप्रवाह के धीमे हो जाने के कारण रक्त की वायु भी मस्तिष्क तक धीमी गति से पहुँचती हैं। फलस्वरूप ऍबनॉर्मल श्वसन निर्माण होते हैं।

मस्तिष्क की चोट में (Brain Damage) में इस प्रकार का श्वसन शुरू होना यह मृत्यु के पहले का एक लक्षण है। आज हमने श्वसन की नॉर्मल और ऍबनॉर्मल स्थिति देखी। कल से हम देखेंगे कि श्वसन के कार्य कम हो जाने पर क्या होता है।(क्रमश:)

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