सर्पविशेषज्ञ डॉ. रेमंड डिटमार्स (१८७६-१९४२) – भाग १

आज और क्या ले आये जेब में डालकर? रेमंड की दादी गुस्से से पूछती थीं और कुछ निकालकर दिखा देने पर और भी अधिक चीढ़ जाती थीं। मेंढ़क, साँप, टिड्डा, गिरगिर, कीड़े, पतंगे, तितलियों के समान सभी जीव उनके मित्र-सखा हुआ करते थे। नन्हें रेमंड का एक अजीबो-गरीब अनोखा ही शौक था, साँप पालने का शौक! ड़रते-घबराते ही क्यों न हो, पर यह शौक उन्हें था। माता-पिता ने उन्हें कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं दिया परन्तु उन्हें रोका भी नहीं। यही कारण है कि उनका बेटा रेमंड अर्थात् डॉ. रेमंड डिटमार्स एक साँप विशेषज्ञ बन गया।

रेमंड

रेमंड जब आठ वर्ष के थे, उसी समय डिटमर्स परिवार ने न्यूयॉर्क में अपना निवास स्थान बना लिया। रेमंड का वही पुराना शौक जहाँ वे जाते वहाँ चलता ही रहा। बाँबी ढूँढ़ना, कीटक पकड़ना, कोश की खोज, अन्य प्रकार के कीट-पतंगों की खोज आदि कर उन्हें लाकर अपने कमरे के एक कोने में रखने की व्यवस्था उन्होंने कर रखी थी। वैसे तो रेमंड दंगा-मस्ती करनेवालों में से नहीं थे। स्कूली जीवन में एकाग्रचित्त, बुद्धिमान, चतुर एवं कर्मशील थे। परन्तु मर्यादित शिक्षा ग्रहण करना उन्हें पसंद नहीं था। स्कूल की बड़ी छुट्टियों में डिटमर्स परिवार खाड़ी के करीब वाले गाँव में अपनी छुट्टियों का समय व्यतीत करने जाता था। वहाँ पर रेमंड ने तो बिलकुल साँप के जोड़े के साथ दोस्ती कर ली। एक ज़मीन पर के और एक पानी के साँप को अपने घर लाकर उन्हें पालतू बना लिया। अब इन्हीं जोड़े से संबंधित विषयों की पुस्तकों को पढ़ने में भी वे रुचि लेने लगे। जंगल, जंगली जानवर, तत्संबंधित संशोधन यह सब पढ़ते समय भी उन्हें अपने स्मरण की वही साँपों की प्रजाति दिखाई देती थी। अच्छे अच्छे साँप, उनकी निरंतर घूमते रहनेवाली जीभ उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती रहती थी।

फुरसद के समय में रेमंड अब ‘अमरीकन म्युझियम ऑफ नैचरल हिस्ट्री’ में जाने लगे। उनके इस दैनिक क्रम, पसंद-नापसंद को देखते हुए उनके अभिभावकों के समझ में यह बात आ गई कि अपना बेटा निसर्गप्रेमी है। आरंभ में रेमंड ने खाली खोखे, लकड़ी के फड़ले को घिसकर मुलायम बना दिया, खिसकने वाला काँच का दरवाजा बना दिया। नन्हें रेमंड ने कुछ बच्चों के साथ एक ‘हार्लेम झूलॉजिकल सोसायटी’ नामक अध्ययनमंडली की शुरुआत की। साँप कैसे केंचुली को बाहर गिराता है इसका प्रात्यक्षिक (प्रयोग) इन बच्चों ने घंटों बगैर किसी हलचल के चुपचाप बैठकर देखा।

सन १८८८-१८९० के दरमियान साँपों एवं अन्य प्राणि-जगत् की जानकारी काफ़ी मात्रा में उपलब्ध नहीं थी। किताबों में केवल शास्त्रीय जानकारी ही उपलब्ध थी। इसी लिए निरीक्षण एवं अनुभवों के आधार पर ही अक्ल एवं चालाकी से ही साँपों को अपने वश में कर लिया जाता था। जेब खर्च के लिए मिलनेवाले पैसों में से ही कुछ पैसे बचाकर वे साँप एवं उनके खाद्यपदार्थ खरीदकर लाते थें। तो कभी किसी उद्यान आदि के रखवालों से नज़र बचाकर छोटे-छोटे मेंढ़क आदि संभालकर ले आते थे। इतने परिश्रम करने के बावजूद भी कभी-कभी आस-पास के लोगाँ की शिकायत के कारण उन्हें अपने इन मित्रों को सरकारी क्षेत्र में दे देना पड़ता था।

रेमंड की जानकारी के अनुसार विषैले साँपों के दंश से होनेवाले बुरे परिणाम को टालते हुए वे अत्यन्त दक्षतापूर्वक अपनी इस सर्पमित्रता का संबंध बनाये रखते थे। ‘पाश्‍चर संस्था’ में प्रतिविष से संबंधित संशोधन चल ही रहा था। अनेक कीटकों, तितलियों आदि के समान वे विभिन्न प्रकार के नमूनों को पुठ्ठों पर सुई-धागा के साथ टिचकर फोटोफ्रेम में जतन करके भी रखते थे। उनका यह कार्यकलाप लोगों के लिए सिरदर्द होता था, परन्तु एक दिन एक कीटक विशेषज्ञ डॉ. बुटेन म्युलर ने यह सब कुछ देखा और फौरन ही रेमंड को चिड़ियाघर में नौकरी का सुअवसर प्राप्त हुआ। सर्प से संबंधित जानकारी, शहरी जीवन एवं विस्तारीकरण के सर्पों के जीवन पर होनेवाले परिणाम, सर्पों की उपयुक्तता इन जैसे विविध विषयों पर रेमंड के लेख, व्याख्यान आदि होने लगे।

एक बार न्यूयॉर्क के ‘सेंट्रल पार्क’ में अमरिकी अज़गर ‘बोआ’ को, दस फीट लंबाई वाले उस साँप को केंचुली गिराने में परेशानी हो रही थी। पचहत्तर पौंड वजन के इस अज़गर के जबड़े के पास रेमंड लगभग एक घंटे तक बगैर हिले-डुले वहीं बैठे रहे, आखिरकार उन्हें इस काम में सफलता प्राप्त हो ही गयी। निसर्ग के लिए की जानेवाली मेहनत फलदायी ही साबित होती है इस बात का अनुभव उन्होंने बारंबार किया था।

रेमंड के माता-पिता ने अपना पुराना घर रेमंड के इन प्राणिमित्रों के हवाले कर दिया। मेहमान बढ़ गए, उनका खानपान भी बढ़ गया। हर किसी की आदत, स्वभाव भिन्न था। कोई हठी तो कोई रूठनेवाला, किसी का खाद्य ठंडे खूनवाला प्राणि तो किसी को गरम खून के प्राणि की ज़रूरत होती थी। कोई स्वजातीय को ही खानेवाला तो कोई स्वयं शिकार करके खानेवाला। किसीको खरगोश तो किसी को और कुछ। बंद पिंजड़े में कोई भी खाना पसंद नहीं करता था, हर किसी का अपना तरीका, अपना अंदाज़।

साँप के विष मे विभिन्न प्रकार हैं। कुछ साँपों का विष मनुष्य के चेतनासंस्थान पर परिणामकारी होता है तो कुछ साँपों का विष मनुष्य के खून पर परिणामकारी होता है। घोणस (एक किस्म का ज़हरीला साँप) के विष का परिणाम भिन्न ही था, ऊरलेळर नामक जहरीले साँप का विष भिन्न था। १८८६ में दो शास्त्रज्ञों ने (डॉ. मिशल एवं उनके सहकारी) सर्पविष के दुष्परिणाम के बारे में एक संशोधन प्रसिद्ध किया। १८८७ में सर्पविष से ही सर्पविष के लिए लस तैयार करके उसका परिणामकारक परीक्षण किया गया। फ्रान्स के पाश्‍चर नामक संस्था में कोब्रा नाग के विष से लस तैयार की गई और यह प्रतिविष उपयुक्त साबित हुआ। दूसरी ओर रेमंड डिटमर्स की ओर से भी सर्पविष के प्रति उपायकारी कोशिश निरंतर चल ही रही थी। ‘न्युयॉर्क वर्ल्ड’ नामक इस वृत्तपत्रिका में रेमंड के इंटरव्ह्यू एवं चित्र सनसनाती खबरों के साथ छापे गए थे। साँपों के घेरे में बैठकर रेमंड ने यह इंटरव्ह्यू दिया था। ‘मास्टर ऑफ स्नेक्स’ ‘प्राध्यापक क्युरेटर’, ‘प्रिन्स ऑफ स्नेक्स’ इस प्रकार का सम्मान रेमंड को प्राप्त हुआ। इस इंटरव्ह्यू की खबर को पढ़कर फिलाडेल्फिया शहर से डॉ. मिशल रेमंड से मिलने आये थे। ‘न्यूयॉर्क टाईम्स’ संवाददाता के रूप में मिलनेवाले काम से रेमंड के जीवन में काफी बदलाव आया।

न्यूयॉर्क शहर के ब्रॉक्स उपनगर में एक काफी बड़ा प्राणी संग्रहलय के निर्मिति का काम चल रहा था। इसका लेख रेमंड ने लिखा और इसी चिड़ियाघर के सर्पविभाग के सर्प उद्यान के प्रमुख पद की ज़िम्मेदारी रेमंड पर सौंपी गई। पसंदीदा व्यक्ति, शौक, माता-पिता को प्राप्त होनेवाला समाधान, भरपूर मानधन तथा इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण था उन्हें प्राप्त होनेवाली विशेषज्ञ की उपाधि। उस वक्त रेमंड की उम्र केवल तेईस वर्ष की ही थी। इतनी कम उम्र में ही प्राप्त होनेवाला यह मान-सम्मान आदि यह सब एक खुशकिस्मती ही थी।

रेमंड के जीवन के और भी अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य हम देखेंगे, अगले लेख में।

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