देश-विदेश

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५७

विराट हिन्दु सम्मेलन सफल रूप में संपन्न हुआ। इससे संघ का प्रभाव और क्षमता फिर एक बार सबकी नज़र में आ गयी। इंदिराजी ने स्वयं होकर बाळासाहब का शुक्रिया अदा किया था। इस सम्मेलन के बाद संघ ने पुनः अपने कार्य की ओर ध्यान केंद्रित किया। विराट हिन्दु सम्मेलन में सहभागी हुए दुनियाभर के हिन्दु समुदाय का संघ के साथ संपर्क हुआ। उनमें से कई लोग पहले से संघ से संबंधित नहीं थे। उनसे प्राप्त हुई जानकारी के कारण कई बातें उजागर हुईं।

sakshibhaav-balasaheb-deoras- हिन्दु समुदाय

हिन्दु समुदाय दुनियाभर में बिखेरा है। अपनी उद्यमशीलता के कारण इस समुदाय ने वैभव प्राप्त किया है। उसी समय, वे जहाँ जहाँ वास्तव्य करते हैं, उन देशों को भी इस समुदाय ने अपनी उद्यमशीलता का लाभ प्राप्त कराया है। यह समुदाय अपनी मातृभूमि को सभी भी नहीं भूलता। देश को यदि किसी आपत्ति का सामना करना पड़ता है, तो सहायता के लिए यही समुदाय सबसे पहले आगे आता है। लेकिन इस समुदाय पर यदि कोई संकट आया, तो उनके लिए कोई भी खड़ा नहीं रहता।

जिन विकसित देशों में हिन्दु समुदाय ने संपन्नता प्राप्त की है, उन देशों में उनकी प्रशंसा तथा उनका मानसम्मान किया जाता है। लेकिन पिछड़े देशों में संपन्न हिन्दुओं की ओर विद्वेष की भावना से देखा जा रहा था। उनकी संपत्ति छीन लेने की साज़िशें रची जा रही थीं। उस दौरान अफ्रीकी देशों में हिन्दु समुदाय के विरोध में ऐसी ही विद्वेषभावना भर आयी थी। इस कारण अफ्रीकी और कॅरेबियन द्वीपदेशों के हिन्दु समुदाय में असुरक्षितता की भावना निर्माण हुई थी

अफ्रीकी देशों के कुछ स्थानीय आक्रामक गुटों की, हिन्दु उद्योजक तथा व्यापारियों की संपत्ति पर नज़र थी। हिन्दुओं ने हमारा शोषण कर यह संपत्ति कमायी है, ऐसा विद्वेषी अपप्रचार इन हिंसक गुटों ने शुरू किया था। लेकिन वास्तव में हालात बिलकुल विपरित ही थे।

हिन्दु समुदाय ने, वे जहाँ वास्तव्य कर रहे थे उन अफ्रीकी देशों के उत्कर्ष के लिए काफ़ी बड़ा योगदान दिया था। साथ ही, वहाँ के समाज की भी समय समय पर सहायता की थी। इन देशों में रोज़गार बढ़ाने के लिए हिन्दु उद्योजक तथा व्यापारियों ने बहुत बड़े प्रयास किये। शिक्षा क्षेत्र में, वैद्यकीय क्षेत्र में अफ्रीकी देशों में स्थित हिन्दुओं ने बड़ा कार्य किया है। लेकिन विद्वेषी प्रचार करनेवाले हिंसक गुटों ने इसकी ओर समाज का ध्यान जाने ही नहीं दिया।

अफ्रीकी तथा कुछ मात्रा में कॅरेबियन द्वीपदेशों में हिन्दुओं के ख़िलाफ़ शुरू हुई इस मुहिम के कारण हिन्दु समुदाय का नुकसान हुआ। लेकिन इससे यहाँ का हिन्दु समाज संगठन का महत्त्व जान गया। इससे पहले के दौर में हिन्दु कौन्सिल ऑफ केनिया, युगांडा, टांझानिया, झिंबाब्वे, झांबिया इन देशों में, संघ के प्रयासों के कारण हिन्दु सुसंघटित बन ही चुके थे। लेकिन अब संकट आने पर ये संगठन अधिक ध्यानपूर्वक हिन्दु समुदाय के हित के लिए कार्य करने लगे। इसी दौरान ‘हिन्दु कौन्सिल ऑफ अफ्रीका’ की स्थापना हुई थी।

समय समय पर दुनियाभर के हिन्दुओं के सम्मेलनों का विश्‍व हिन्दु परिषद द्वारा आयोजन किया जा ही रहा था। विराट हिन्दु सम्मेलन के कारण दुनियाभर का हिन्दु समुदाय अधिक व्यापक प्रमाण में संघ के संपर्क में आया। इससे अफ्रीकी तथा कॅरेबियन द्वीपदेशों के हिन्दुओं की समस्याएँ ख़ासकर सामने आयीं। लक्ष्मणराव भिडे उस दौरान संघ का विदेश स्थित कार्य सँभाल रहे थे। लेकिन बाळासाहेब को, हिन्दु समुदाय पर आ रहे संकट के बारे में जानकारी प्राप्त होने पर उन्होंने भाऊराव देवरस, रज्जूभैय्या, शेषाद्रीजी इन्हें समय समय पर विदेश भेजकर विदेशस्थित हिन्दु समुदाय की परिस्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त की। अफ्रीकी देशों में स्थित, असुरक्षितता के भावना निर्माण हो चुके हिन्दु समुदाय का धीरज बँधाने का काम इसके ज़रिये शुरू हुआ।

‘संघ तुम्हारे साथ है। घबराओ मत’, ऐसा संदेश संघ की ओर से इस समुदाय को दिया जा रहा था। दरअसल यह कार्य भारत सरकार के करना चाहिए था। कोई भी देश, दुनियाभर में फैले अपने मूल निवासी रहनेवाले नागरिकों के हितसंबंधों की हिफ़ाज़त करता है। लेकिन भारत सरकार विदेशस्थ हिन्दु समुदाय की ओर बिलकुल ध्यान नहीं दे रही थी। दरअसल इस समुदाय का हमारे देश के विकास के लिए अधिक प्रभावी रूप में विनियोग किया जा सकता था। लेकिन भारत सरकार लम्बे समय तक इस बारे में उदासीनता दर्शा रही थी। अफ्रीकी और कॅरेबियन द्वीपदेशों में स्थित हिन्दु समुदाय असुरक्षित बना था, उसके पीछे भारत सरकार की अनास्था यह भी एक कारण था ही।

लेकिन संघ ने समुदाय की सुरक्षा और संपत्ति की रक्षा के लिए हर संभव बातें कीं। मुख्य रूप में, संघ ने दुनियाभर के हिन्दुओं में एकता की भावना जागृत की। जाति-पाति, पंथभेद सबकुछ बाजू में रखकर, एक ही हिन्दु धर्म के छत्र तले दुनियाभर के हिन्दुओं को एकसाथ लाने का बहुत बड़े लाभ विदेशस्थ हिन्दुओं को प्राप्त हुए। इस एकता के कारण उनका आत्मविश्‍वास बढ़ गया। दुनियाभर में कई जगहों पर विश्‍व हिन्दु परिषद की स्थापना हो चुकी थी। इस कारण हिन्दुओं के संगठन को बल की आपूर्ति होती रही। विदेशस्थ हिन्दुओं के हित की रक्षा के लिए बाळासाहेब बहुत ही चौकन्ने थे। इस कारण विश्‍व हिन्दु परिषद के कार्य का वे बारिक़ी से मुआयना करते थे।

आज के दौर में हालात बहुत ही बदल गये हैं। भारतीय प्रधानमंत्री का विदेश में शानदार स्वागत किया जाता है। यहाँ तक कि इस्लामी देशों में कार्यरत रहनेवाला हिन्दु हिंदू समुदाय भी आत्मविश्‍वास से प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में उपस्थित रहता है। विदेशस्थ भारतीयों के हित की रक्षा के लिए सरकार ने कदम उठाना शुरू किया है ही। इसीके साथ, विदेश में वास्तव्य करनेवाले ये लोग हमारे देश से जोड़े ही रहें, इसके भी प्रयास शुरू हो चुके हैं, यह लक्षणीय बाब साबित होती है। पहले की सरकारों ने यदि ऐसे प्रयास किये होते, तो देश को इसके बहुत बड़े लाभ हुए होते। हमारी मातृभूमि हमें भूली नहीं है, यह संदेश इससे दुनियाभर के हिन्दु समुदाय को मिलता। लेकिन वैसा नहीं हो सका। मग़र संघ ने प्रेमपूर्वक यह ज़िम्मेदारी निभायी।

बाळासाहेब कभी भी विदेश नहीं गये। लेकिन कोई दुनियाभर का प्रवास करके भी प्राप्त नहीं कर सकेगा, उतनी पूरी की पूरी जानकारी बाळासाहेब के पास रहती थी। देश की गतिविधियों पर भी बाळासाहेब नज़र रखते थे। पंजाब में शुरू हुए अलगाववादी कारनामों के कारण देश के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हुई। जिस सिख समुदाय की राष्ट्रभक्ति बेजोड़ मानी जाती है, ऐसे समुदाय को देश से अलग करने की साज़िश रची गयी। इसके पीछे विदेशी शक्तियाँ कार्यरत थीं। ऐसे समय विदेश में वास्तव्य करनेवाले सिख बांधवों के साथ संपर्क बढ़ाने की सूचना बाळासाहेब ने विदेश में कार्यरत रहनेवाले स्वयंसेवकों से की। सन १९८२-८३ के बीच अफ्रीका में ‘वर्ल्ड ऑर्गनायझेशन ऑफ हिन्दु सिख’ इस मंच की स्थापना की गयी। इससे दुनियाभर के सिख समुदाय को सकारात्मक संदेश मिला। कुछ मुठ्ठीभर राह-भटके लोगों के अपप्रचार का इससे परस्पर जवाब दिया गया।

विशेष रूप में देश के वनवासी क्षेत्र की ओर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत बाळासाहब को महसूस होने लगी। वनवासी क्षेत्र में संघ का कार्य शुरू हो चुका था। वनवासी क्षेत्र में बहुत बड़े कार्य की आवश्यकता है, यह बात डॉक्टर हेडगेवार की समझ में आयी थी। श्रीगुरुजी की प्रेरणा से वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना होकर उसका कार्य बढ़ते ही जा रहा था। मग़र फिर भी अपने बड़े देशभर में फैले हुए वनवासी क्षेत्र को मद्देनज़र रखते हुए, इस कार्य को और भी तेज़ी से आगे ले जाने की, उसकी व्यापकता को बढ़ाने की ज़रूरत महसूस होने लगी थी।वाढविण्याची निकड भासू लागली होती.

वनवासी क्षेत्र के कार्य की गति को बढ़ाने के लिए बाळासाहब ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रचारकों की नियुक्ति की। इससे यहाँ का कार्य बढ़ने लगा। विशेष रूप में वनवासी क्षेत्र में शिक्षा का प्रसार अधिक प्रमाण में हों, इसलिए यहाँ पर ‘एकल विद्यालयों’ की स्थापना की जाने लगी। ‘एकल विद्यालय’ यानी एक ही अध्यापक का स्कूल। जहाँ पर शिक्षा का बिलकुल भी प्रसार नहीं हुआ है, ऐसे पिछड़े इलाकों में चौथीं कक्षा तक इन एकल विद्यालयों में शिक्षा प्रदान की जाती है। इससे आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वाभाविक रूप में स्कूल में जाना पड़ता है। लेकिन वनवासी क्षेत्र में यह चौथीं कक्षा तक की, अर्थात बिलकुल प्राथमिक शिक्षा की आपूर्ति करने भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण साबित होता है। इन एकल विद्यालयों में केवल बच्चें ही नहीं आते, बल्कि बुज़ुर्ग भी आते हैं। यहाँ पर स्थानीय भाषा से लेकर मूलभूत गणना तक सिखाया जाता है। इससे, अब तक चालाक़ लोगों से ठगे जानेवाले वनवासी समुदाय का बहुत बड़ा नुकसान होने से टल गया।

वनवासी क्षेत्र में परधर्म के कुछ लोग कार्य करने का दिखावा कर रहे थे। लेकिन उस सेवाकार्य का हेतु ‘धर्मांतर’ यही था। वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा शुरू किये गये इस कार्य के कारण यह धर्मांतर बन्द हो गया। साथ ही, अब तक मूल समाजधारा से दूर रह चुका वनवासी समुदाय धीरे धीरे मुख्य धारा में आने लगा। वनवासी क्षेत्र में शुरू रहनेवाले सेवाकार्य में शहर के सेवाभावी लोग भी दिलचस्पी दिखाने लगे। मग़र फिर भी, हमारे देश के वनवासी क्षेत्र में अधिक बड़े कार्य की ज़रूरत होने की बात पर ग़ौर करके बाळासाहब ने एकल विद्यालयों का विस्तार हों, इसलिए ज्येष्ठ प्रचारक श्यामजी गुप्त को इस कार्य के लिए अपने आपको समर्पित करने की सूचना की। उनके कार्य का मुख्यालय रांची में हों, ऐसा भी बाळासाहब ने सूचित किया। क्योंकि इस क्षेत्र में कई वनवासी थो और यहीं पर विदेशी लोग धर्मांतर कराने में लगे थे।

एकल विद्यालयों के कारण वनवासी बांधवों में बहुत बड़े पैमाने पर जागृति निर्माण हो गयी। उनका शोषण बहुत ही कम हो गया। इनमें रहनेवाली उद्यमशीलता को प्रोत्साहन मिला। शिक्षा की मात्रा बढ़ गयी। सबसे अहम बात यह थी कि उनके अज्ञान का और भोलेपन का फ़ायदा उठाना चाहनेवाले खुदगरज़ लोगों की साज़िश क़ामयाब न हो सकी। वनवासी क्षेत्र में संघ ने शुरू किये कार्य का और एकल विद्यालयों का और भी विस्तार किया जा रहा है। यह कार्य अथक रूप में आगे ले जाया जा रहा है। सबसे अहम बात यह है कि इस कार्य के लिए दुनियाभर का हिन्दु समाज बड़े पैमाने पर योगदान दे रहा है।

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