राष्ट्राय स्वाहा, राष्ट्राय इदं न मम।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ४४

 

श्रीगुरुजी के निर्वाण का वृत्त सर्वत्र फ़ैल  गया और  ६ जून को उनके अंतिम दर्शन करने नागपूर के ‘महाल’ कार्यालय में भारी मात्रा में भीड़ इकट्ठा हुई। गुरुजी से प्रेम करनेवालों पर तो माने दुख का पहाड़ ही टूट पड़ा था। अपने निर्वाण से पहले पूजनीय डॉक्टर हेडगेवार ने पत्र लिखकर, अपने पश्‍चात् श्रीगुरुजी को ‘सरसंघचालक’ पद की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। उसी तरह गुरुजी ने भी तीन पत्र लिखकर रखे थे। ज़ाहिर रूप में माईक पर से उन पत्रों का वाचन किया गया।

Gurujiगुरुजी का पहला पत्र महाराष्ट्र के प्रांत संघचालक बाबाराव भिडेजी ने पढ़कर सुनाया। इस पत्र में  गुरुजी ने, अपने पश्‍चात् ‘सरसंघचालक’ पद की ज़िम्मेदारी श्री. बाळासाहब देवरस को सौंपी थी। अगले दो पत्र स्वयं बाळासाहब देवरस ने पढ़कर सुनाये। दूसरे पत्र में गुरुजी ने अलग ही संकेत दिया था। संघ के संस्थापक और आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के अलावा अन्य किसी का भी स्मारक बनाना उचित नहीं, ऐसा गुरुजी ने इस पत्र में सूचित किया था। अर्थात् अपने पश्‍चात् अपना स्मारक न बनाया जाये, ऐसा गुरुजी का आग्रह था।

तीसरे पत्र में गुरुजी ने बहुत ही विनयपूर्ण भाव से एक विनति की थी। ‘मैने जाने-अनजाने में किसी को दुख दिया हो, तो मैं हाथ जोड़कर उनसे क्षमा माँग रहा हूँ’ ऐसा गुरुजी ने इस पत्र में कहा था। ये शब्द सुनते ही, हज़ारों की तादात में उपस्थित होनेवाले जनसमुदाय को आँसुओं को रोकना नामुमक़िन हो गया। पत्र का वाचन करनेवाले बाळासाहब देवरस का कंठ भी भारी हो गया। इस पत्र में गुरुजी ने संत तुकाराम के एक अभंग का उल्लेख किया था।

शेवटची विनवणी।

संतजनी परिसावी।

विसर तो न पडावा।

माझ्या देवा तुम्हासी॥

आता फार  काय बोलो कायी।

अवघे पायी विदित।

तुका म्हणे पडतो पाया।

करा छाया कृपेची॥

(सरलार्थ – सज्जनों! आप मेरी अंतिम विनति सुन लीजिए। हे जनतारूपी जनार्दन! आप मेरे तत्त्वों को मत भूलना। अब और आपसे क्या कहूँ? आपके चरणों में नतमस्तक हूँ। तुकाराम महाराज कह रहे हैं, मैं आप सबकी वंदना करता हूँ। आप अपनी कृपा का साया मुझपर बनाये रखना।)

गुरुजी के पार्थिव को चंदन की चिता पर रखकर मंत्राग्नि दिया गया। श्रीगुरुजी का पार्थिव पंचमहाभूतों में विलीन हो गया। उसके बाद भगवा ध्वज लहराकर संघ की शाखा का आयोजन किया गया। उस समय हज़ारों अवरुद्ध कंठों ने संघ की प्रार्थना की। ‘भारतमाता की जय’ का नारा देकर, दिल पर भारी बोझ लिये स्वयंसेवक और नागरिक अपने अपने घर गये।

‘सेवा है यज्ञकुंड, समिधा सम हम जलें’ यह श्रीगुरुजी का जीवनमंत्र था। ‘राष्ट्राय स्वाहा, राष्ट्राय इदं न मम्।’ यह गुरुजी के जीवन का सर्वोच्च ध्येय था।

अब रेशमबाग में दो चैतन्यदायी  महापुरुष थे। पूजनीय डॉक्टर हेडगेवार, अपने स्मृतिमंदिर में मूर्तिरूप में विराजमान हैं। दूसरे महापुरुष श्रीगुरुजी, समिधा की तरह अपने आपको समर्पित करनेवाले ‘दधीचि स्मृतिचिन्ह’ के रूप में यहाँ पर हैं। ‘मैंने किया हुआ गुरुजी का चयन सार्थ सिद्ध हुआ’ ऐसा भाव डॉक्टरसाहब के मुखमंडल पर है।

श्रीगुरुजी ने संघ को विश्‍वव्यापी बनाया। श्रीगुरुजी के निर्वाण के बाद कइयों ने श्रद्धासुमन अर्पित किये। ‘गुरुजी में अंशमात्र भी संकुचितता नहीं थी, वे हमेशा शुद्ध राष्ट्रीय विचारों से ही कार्य करते थे। इस्लाम और ख्रिश्‍चन धर्म के प्रति वे बड़ा आदरभाव रखते थे। भारत में कोई भी अकेला न पड़ जाये, इसके लिए गुरुजी प्रयासशील थे’ इन शब्दों में आचार्य विनोबाजी भावे ने गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित की थी। पुरी के जगत्गुरु शंकराचार्य श्री निरंजनतीर्थ ने ‘गुरुजी श्‍वेतवस्त्र पहने महान संत थे’ ऐसा कहा था। ‘गुरुजी संस्कृति के महामानव थे’ ऐसा जैन आचार्य मुनी सुशीलकुमारजी ने कहा। जैन संत आचार्य तुलसी ने ‘गुरुजी समालोचक तथा गुणग्राही थे’ ऐसा कहते हुए गुरुजी के प्रति सम्मान की भावना व्यक्त की थी।

संसद के सदन में तत्कालीन राष्ट्रपति व्ही. व्ही. गिरी, लोकसभा के सभापति गुरुदयाल सिंग धिलाँ इन्होंने भी गुरुजी के सद्गुणों का वर्णन किया। देश की प्रधानमंत्री इंदिराजी गांधी ने भी गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित की थी। ‘संसद के सदस्य न रहनेवाले प्रतिष्ठित व्यक्ति गुरु गोळवलकरजी ने आज हमसे विदा ली है।  प्रभावी व्यक्तित्त्व और अपने विचारों पर अभंग निष्ठा इनके कारण राष्ट्रजीवन में उनका स्थान महत्त्वपूर्ण था’, ऐसा इंदिराजी ने कहा। ‘गुरुजी ने देशभक्ति और समर्पण की भावना हज़ारों युवाओं में जगायी’ इन शब्दों में समाजवादी नेता समर गुहाजी ने गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित की। समाजवादी नेता एस.एम. जोशीजी ने ‘गुरुजी तपस्वी थे’ ऐसा कहा था। अकाली दल के नेता जत्थेदार श्री संतोषजी ने ‘गुरुजी महापुरुष थे और ऐसे व्यक्ति अमर होते हैं’ ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।

‘मैंने गुरुजी को कभी भी नहीं देखा। लेकिन उन्होंने हज़ारों लोगों में राष्ट्रभक्ति की चेतना जगायी, इसका मैंने अनुभव किया है’ ऐसा कहकर मार्क्सवादी पार्टी के तकी रेहमानजी ने गुरुजी के प्रति आदरभाव व्यक्त किया। काँग्रेस के नेता हाङ्गीजुद्दीन कुरेशीजी ने गुरुजी ने बहुत ही भावपूर्ण प्रतिक्रिया ज़ाहिर की। ‘गुरुजी महापुरुष थे। वे मुस्लीमविरोधी नहीं थे। ‘संघ मुस्लीमविरोधी है’ ऐसा हौआ खड़ा कर मुसलमानों को आज तक गुमराह किया गया है’ ऐसा हाफिजुद्दीन कुरेशीजी ने कहा था।

‘गुरुजी आध्यात्मिक विभूति थे। उन्होंने सच्ची राष्ट्रीयता की चेतना देकर हज़ारो नवयुवकों को जागृत किया’ ऐसा जयप्रकाश नारायणजी ने गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था।

राष्ट्र सेविका समिति की संचालिका श्रीमती मावशी (मौसी) केळकरजी, भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष लालकृष्ण अडवाणीजी और जनसंघ के नेता अटलबिहारी वाजपेयीजी ने भी गुरुजी के निधन पर शोक व्यक्त किया। संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक बाबूराव वैद्यजी ने गुरुजी के जीवन का बहुत ही समर्पक शब्दों में वर्णन किया है – ‘भगीरथ तपश्‍चर्या कर गंगा को वसुंधरा पर ले आया और भारतभूमि को ‘सुजलाम् सुफलाम’ बनाया। वैसे ही डॉक्टर हेडगेवारजी ने मोक्ष के मार्ग से जानेवाले गुरुजी के जीवनप्रवाह को, भारतीय जनता के कल्याण के लिए मोड़कर हिंदु समाज को संघटित और समर्थ बनाया।’

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