अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग २९

pg12_gurujiआज देश के सबसे बड़े छात्र संगठन के रूप में ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ जानी जाती है। संघ के साथ ताल्लुक़ न होनेवाले भी कई लोग ऐसे हैं, जो ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के सदस्य हैं। इस छात्र संगठन का अध्ययन करने हेतु विदेश से कई संशोधनकर्ता भारत आते हैं। ‘विद्यार्थी परिषद’ के लिए काम करनेवाले कई लोग आज देश की राजनीति में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

जनसामान्यों के बीच विचरण करते हुए, गुरुजी शान्ति से इस देश में घटित घटनाएँ, गतिविधियाँ इनका निरीक्षण कर रहे थे। इस चिंतन में से उन्हें कुछ बातें महसूस हुई थीं। संघ के ज्येष्ठ स्वयंसेवकों की ‘चिंतन बैठक’ में गुरुजी ने अपने विचार प्रस्तुत किये। ‘‘बचपन में माँ-बाप ही बच्चे के गुरु होते हैं। उनपर मूलभूत संस्कार करने की ज़िम्मेदारी मातापिता की ही होती है। शालेय शिक्षा पूर्ण कर छात्र जब अगली पढ़ाई के लिए जाता है, वह दौर जीवन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण दौर रहता है। क्योंकि इस दौर में छात्रों का व्यक्तित्व सुघटित होने की प्रक्रिया शुरू होती है। अगले जीवन की दिशा इसी दौर में निश्‍चित होती है। इसीलिए छात्रावस्था का यह समय सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। ऐसे समय में छात्र पर उचित संस्कार करना, उनके विचारों को दिशा प्रदान करना अत्यावश्यक साबित होता है। देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य का एहसास करा देने का काम भी इसी दौर में किया जाना चाहिए। इसी कारण संघ को शिक्षाक्षेत्र में प्रवेश करना चाहिए’’ ऐसा श्रीगुरुजी ने कहा।

संघ पर पाबंदी लगायी गयी होते समय, ‘आगे क्या करना है’ इस बात का विचार ज्येष्ठ स्वयंसेवक करने लगे थे। बंदी के विरोध में स्वयंसेवक आंदोलन करने लगे। लेकिन यह पाबंदी और कितने समय तक रहेगी, इसके बारे में कुछ भी कह पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था। ऐसे हालात में, संघ के लिए अलग व्यासपीठ का निर्माण करना आवश्यक था। इस बात पर ग़ौर करके प्रा. बलराज मधोक ने सन १९४८  में ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ की स्थापना की थी। पाक़िस्तान के द्वारा कश्मीर पर आक्रमण किये जाने के बाद, बलराज मधोकजी ने, भारतीय लष्कर यहाँ आने तक किये हुए कार्य की जानकारी हमने पिछले भाग में ली ही है। भारतीय लष्कर कश्मीर में आने के बाद प्रा. मधोक दिल्ली लौट आये। उसके बाद उन्होंने ‘भाई महावीर’ की सहायता से ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ की स्थापना की।
भाई महावीर यानी प्रो. ‘भाई परमानंद’ के सुपुत्र। भाई परमानंदजी लाहोर के डी. ए. व्ही. कॉलेज में प्राध्यापक थे और भगतसिंग, सुखदेव ये क्रांतिकारी उनके ही छात्र थे। उन्हें क्रांतिकारी बनानेवाले थे – भाई परमानंदजी। भाई परमानंदजी का अधिकांश जीवन अंदमान के कारावास में व्यतीत हुआ। भाई परमानंदजी जब स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ अंदमान के कारागृह में थे, उस दौरान उनकी पत्नी बीमार हो गयी। इस परिवार के पास पैसे नहीं थे, इस कारण उस माता को दवाइयाँ नहीं मिल सकीं और उसीमें उनका देहान्त हो गया। देश को आज़ादी मिली इस कारण हम खुशी मनाते हैं, लेकिन उसी समय, देश के लिए ऐसा त्याग करनेवाले परिवारों की स्मृति हमें हमारे मन में ताज़ा रखनी चाहिए।

अपना त्याग और बड़प्पन के ढिंढ़ोरे पीटने के लिए परमानंद परिवार ने इस बात का कभी भी इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन ‘हमारे पूरे परिवार ने देश के लिए बहुत बड़ा त्याग किया’ ऐसा दावा करनेवाले, देश के एक नेता को प्रत्युत्तर देते समय भाई महावीर ने मजबूरन् अपनी माँ की मृत्यु की यह कहानी बतायी। ‘देश के लिए त्याग करते समय, उसके बदले में किसी भी प्रकार की सौदेबाज़ी नहीं करनी चाहिए’ यह भी भाई महावीर ने आगे कहा था। भाई महावीर को भी ‘प्रचारक’ के रूप में अपना सारा जीवन संघ को समर्पित करना था। लेकिन श्रीगुरुजी के आदेश के कारण उन्हें शादी करनी पड़ी। उनकी शादी में श्रीगुरुजी उपस्थित थे और विधि पूरे होने तक वे वहीं पर रुके रहे। ‘यदि मैं चला गया, तो भाई महावीर यहाँ से निकल जायेगा’ ऐसी चिन्ता गुरुजी को महसूस हो रही थी।

प्रा. बलराज मधोक और भाई महावीर ने संघ पर लगी पाबंदी के दौरान स्थापना की हुई ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ का  कार्य उस व़क्त कुछ ख़ास बढ़ा नहीं, क्योंकि सन १९४९ में संघ पर लगायी पाबंदी हटायी गई। संघ के द्वारा शिक्षाक्षेत्र में कार्य करने का निर्णय लिया जाने के बाद, सन १९५९ में परिषद का कार्य जोश के साथ शुरू हुआ। सन १९५९ में ही, मुंबई में यशवंतराव केळकर, आसाम और नागालँड के विद्यमान गव्हर्नर पद्मनाभ आचार्य,  मधू देवळेकर, डॉ. माधव परळकर, वेद नंदा, बाळ आपटे, मदनदास देवी और अरुण साठे तथा अन्य स्वयंसेवकों ने मिलकर परिषद का काम तेज़ी से शुरू किया। अरुण साठे आसाम में दस साल तक संघ के ‘प्रचारक’ के रूप में काम सँभाल रहे थे।

यशवंतराव केळकर ये एक छात्रप्रिय प्राध्यापक और छात्रों के अद्वितीय मार्गदर्शक थे। यशवंतराव संघ के स्वयंसेवक तो थे ही, मग़र वे ‘विद्यार्थी परिषद’ के लिए भी कार्य करें, ऐसा सुझाव संघ के ‘प्रचारक’ शिवराय तेलंग ने उन्हें दिया। यशवंतराव ने उसे मान लिया। यशवंतराव के सहभाग के कारण विद्यार्थी परिषद का कार्य तेज़ी से आगे बढ़ने लगा। यशवंतराव ने छात्रों के विकास एवं प्रगति हेतु विभिन्न योजनाएँ क्रियान्वित कीं। कॉलेज के छात्रों को मिलनेवालीं छुट्टियों का उपयोग बहुत ही प्रभावी ढंग से किया जा सकता है, इस बात पर यशवंतराव ने ग़ौर फ़रमाया – ‘छुट्टियों के महीनों में मिलनेवाले समय का विनियोग, अगले साल की फीज़ के पैसे अर्जित करने के लिए किया जा सकता है, जिससे कि छात्र नया काम, हुनर सीख सकते हैं। साथ ही, काम के अनुशासन की आदत पड़ जाती है, परिश्रम के संस्कार होते हैं। इससे छात्रावस्था की छुट्टियों का सदुपयोग होता है।’ यशवंतराव ने प्रस्तुत किये इन विचारों को उस समय छात्रों से बहुत बड़ा प्रतिसाद मिला।

पद्मनाभ आचार्य ईशान्य भारत के छात्रों को यहाँ के परिवारों में वास्तव्य करने के लिए ले आते थे। अब बात निकली ही है, इसलिए बता रहा हूँ। मेरे घर में अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और नागालँड की तीन लड़कियाँ आकर रही थीं। वे लड़कियाँ आज भी मुझे फोन करती हैं और ‘डॅडी, हमारी याद आती है कि नहीं?’ ऐसा हक़ से पूछती हैं। ये तीनों भी लड़कियाँ मेरे घर में मेरी बेटियों की तरह ही विचरण करती थीं। जब वे जाने निकलीं, तब मेरे लिए और मेरी पत्नी के लिए आँसुओं को रोक पाना मुश्किल हो गया था। इस प्रकार आपस में आत्मीयता बढ़ाने का बहुत बड़ा कार्य पद्मनाभजी ने किया। यहाँ के छात्रों को भी ईशान्य भारत के घरों में ले जाकर उन्होंने, भावबंधन के एक अलग ही सेतु का निर्माण किया।

देश के विभिन्न शहरों के कॉलेज और युनिव्हर्सिटीज् में ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ का विस्तार होने लगा। छात्रों को संघटित करने के साथ ही, छात्रों में सहयोग की भावना विकसित करने को विद्यार्थी परिषद अहमियत देती थी। महाविद्यालयों का वातावरण दूषित न हों, सकारात्मक वातावरण बना रहें, इसके लिए विद्यार्थी परिषद कार्य करने लगी।

आज़ादी के बाद काफ़ी अरसे तक ईशान्य भारतीय राज्यों की ओर हमारी केंद्र सरकार का दुर्लक्ष हो चुका था। इस कारण, विघटनवादियों का ज़ोर बढ़ता चला जा रहा था। ईशान्य भारतीय छात्रों में भी देश के प्रति असंतोष बढ़ता चला जा रहा था। विदेशी मिशनरी उन्हें और भी भड़का रहे थे। इस कारण यहाँ पर अशान्ति फैलती चली जा रही थी और देश का विकास रुक गया था। देश के लिए यह बात बहुत घातक साबित होने लगी। ऐसे हालातों में ‘उस क्षेत्र के छात्रों के बीच जाकर हमें सकारात्मक कार्य करना है’ ऐसा मार्गदर्शन पूजनीय गुरुजी ने किया। ‘ईशान्य भारतीय छात्र यदि हमारे पास न आयें, तो हमें उनके पास जाना होगा। क्योंकि वे भी ‘हमारे अपने’ ही हैं।’ गुरुजी के मार्गदर्शन के अनुसार विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता वहाँ जाकर काम करने लगे।

इनमें पद्मनाभ आचार्य, अरुण साठे, दिलीप परांजपे इन सबने ईशान्य भारतीय राज्यों में जाकर बहुत बड़ा कार्य किया। आगे चलकर ‘व्ही. सतीश’ के नाम से जाने जानेवाले सतीश वेलणकरजी ने इस सारे इला़के में ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के कार्य को बहुत ही बढ़ाया। ईशान्य भारत के आठ राज्यों में परिषद व्यापक कार्य कर रही है। फ़िलहाल इस इला़के में सुनील देवधर इस स्वयंसेवक ने ‘माय होम इंडिया’ नामक एक स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की है। इसके साथ ही, संघ से जुड़ी हुईं अन्य संस्थाओं के माध्यम से ईशान्य भारत के राज्यों के छात्रों को देश के विभिन्न शहरों में शिक्षा लेने के लिए सुविधाएँ उपलब्ध करा दी जाती हैं। इस कारण इन छात्रों में देश के प्रति रहनेवाली आत्मीयता और भी बढ़ गयी है।

एक बार मैं मेघालय गया था। वहाँ पर कुछ छात्राएँ साफ़ साफ़ मराठी में बातें कर रही थीं, वह सुनकर मैं दंग रह गया। सुनील देवधर ने मुझे उसकी पार्श्‍वभूमि बतायी। ये छात्राएँ पुणे में पढ़ती हैं। इस कारण वे इतनी अस्खलित मराठी में बात कर रही हैं। ऐसे विभिन्न मार्गों से ईशान्य भारत की जनता को उर्वरित देश के साथ जोड़ने का कार्य परिषद कर रही है। वर्तमान समय में, परिषद के युवा कार्यकर्ता आशिष भावे और उनके सहकर्मी ईशान्य भारत के युवा वर्ग में प्रभावी कार्य कर रहे हैं।

आज देश के सबसे बड़े छात्र संगठन के रूप में ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ जानी जाती है। संघ के साथ ताल्लुक़ न होनेवाले भी कई लोग ऐसे हैं, जो ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के सदस्य हैं। इस छात्र संगठन का अध्ययन करने हेतु विदेश से कई संशोधनकर्ता भारत आते हैं। ‘विद्यार्थी परिषद’ के लिए काम करनेवाले कई लोग आज देश की राजनीति में अहम भूमिका निभा रहे हैं। भारत के विद्यमान अर्थमंत्री अरुण जेटली, सड़कनिर्माण तथा परिवहनमंत्री नितिन गडकरी, लोकसभा की सभापति महोदया सुमित्रा महाजन, केंद्रीय दूरसंचार एवं संपर्कमंत्री रविशंकर प्रसाद, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंग चौहान, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, महाराष्ट्र के शिक्षामंत्री विनोद तावडे, ये सारे विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता थे। ऐसे और भी बहुत सारे नाम दिये जा सकते हैं।

‘छात्रावस्था में ही बच्चों को राष्ट्रभक्ति एवं समाजसेवा के संस्कार प्राप्त होने चाहिए’ ये गुरुजी के विचार कितने समर्पक थे, यह आज विद्यार्थी परिषद के कार्य को देखते हुए निरन्तर महसूस होते रहता है।

(क्रमश:)

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