कश्मीर के लिए

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग २०

pg12-Gurujiसरदार पटेल ने गुरुजी पर जताया विश्‍वास सही साबित हुआ। विलीनीकरण के कागज़ात हाथ आते ही, सरदार पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर में भेजा। उसकी तैयारी सरदार पटेल ने पहले से ही कर रखी थी। उस समय भारत के पास केवल डाकोटा प्रवासी विमान ही थे। इस प्रवासी विमान की सीटें हटाकर उसमें लष्करी सामग्री एवं सैनिकों को भरकर ये विमान कश्मीर में भेजे गये। लेकिन जहाँ पर पाक़िस्तानी सेना घुसी थी, वहाँ पर हवाई पट्टी ही नहीं थी। लेकिन सन्देसा मिलते ही यह हवाई पट्टी रातोंरात बनायी गयी। क्या आपको मालूम है कि यह काम किसने किया था?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्री. बलराज मधोक के मार्गदर्शन में स्वयंसेवकों ने इस हवाई पट्टी का निर्माण किया। इस काम में युवकों से लेकर बूढ़े लोगों ने भी हिस्सा लिया था। इसलिए डाकोटा विमान यहाँ पर उतर सका। दूसरी ओर, श्रीनगर शहर पर हुए आक्रमण की वजह से बिजली की आपूर्ति खंडित हो चुकी थी। संघ के डेढ़सौ स्वयंसेवकों ने हाथ में बन्दूक लेकर पाकिस्तानी आक्रमणकारियों का तीन दिन तक मुक़ाबला किया और श्रीनगर को बचाया। वह कोई प्रशिक्षित सेना नहीं थी। लेकिन मातृभूमि के लिए कुछ भी करने के लिए स्वयंसेवक तैयार थे। इस युद्ध में कई स्वयंसेवकों ने अपना बलिदान दिया, लेकिन देश की भूमि पर दुश्मन को कब्ज़ा नहीं करने दिया।

डाकोटा विमान कश्मीर में उतरते ही मेजर सोमनाथ शर्मा की अगुआई में भारतीय सेना ने, संख्या में अपने से बहुत ज़्यादा रहनेवाले पाकिस्तानी आक्रमणकारी हमलावरों का सामना किया। भारतीय सेना अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ रही थी; वहीं, पाकिस्तानी आक्रामक यहाँ पर लूटमार एवं अत्याचार करने के उद्देश्य से आये थे। ज़ाहिर है, भारतीय सेना के पराक्रम के सामने पाकिस्तानी आक्रामकों की एक नहीं चली। अल्प-अवधि में ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान की जमकर पिटाई की। पराभूत हुई पाकिस्तान की सेना दूम दबाकर भाग गयी। उनका पीछा करते हुए भारतीय सेना कारगिल तक पहुँची।

दूसरी ओर, कश्मीर की 14 हज़ार फ़ीट ऊँची पहाडी पर जनरल थिमैय्या ने भारतीय टँक्स चढ़ाये थे। ऐसा पराक्रम इससे पहले किसी ने भी नहीं कर दिखाया था। बँटवारे के कारण हाथ से चले गये भूभाग को अधिक से अधिक प्रमाण में वापस प्राप्त करने का यह स्वर्णिम अवसर सामने से चलकर आया है, ऐसा सरदार पटेल सोच रहे थे। सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने भी सरदार पटेल के साथ हुई चर्चा में यही राय प्रस्तुत की थी। पाकिस्तान के कब्ज़े में गये पंजाब में जहाँ गेहू की बड़ी फसल  उगती है, उस भूभाग को अपने कब्ज़े में कर लें, ऐसे सरदार पटेल के सेना को आदेश थे। लाहोर, जिस शहर का मूल नाम ‘लवपूर’ था, प्रभु श्रीरामचंद्रजी के सुपुत्र लव का यहाँ पर शासन था। अब जबकि बात निकली ही है, इसलिए कहता हूँ, आज जिसे हम हिंदुकुश पर्वतश्रेणि के नाम से जानते हैं, उस क्षेत्र को यह नाम प्रभु श्रीरामचंद्रजी के दूसरे सुपुत्र कुश के नाम से ही मिला था। ज़ाहिर है, यह सारा क्षेत्र भारतवर्ष का ही हिस्सा था।

लाहोर, सिंध पर पुनः नियंत्रण प्राप्त करने के लिए भारतीय सेना आगे बढ़ रही थी। काश्मीर जीतने के उन्माद में पाकिस्तान ने भारत को यह अवसर दिया। हमारे पराक्रम के सामने भारतीय टिक नहीं सकेंगे, इस भ्रम में पाकिस्तानी थे। भारतीय सेना ने पाक़िस्तान को इस क़दर मार दी, जिससे कश्मीर तो दूर की बात है, पाकिस्तान भी बच पायेगा या नहीं, इसका विचार ये आक्रमणकारी करने लगे।

इस तरह का स्वर्णिम अवसर सामने रहते हुए घात हुआ। प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू कश्मीर की समस्या लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ में गए। राष्ट्रसंघ ने फ़ौरन  युद्धबंदी घोषित की। भारतीय सेना कारगिल की पहाड़ियों पर पहुँची थी और आगे बढ़ने ही वाली थी कि तभी उन्हें युद्धबंदी के आदेश मिले। दरअसल इस प्रश्‍न को लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ में जाने की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि इस युद्ध को भारत ने छेड़ा ही नहीं था, बल्कि पाक़िस्तान ने भारत की भूमि पर आक्रमण किया था। इसलिए भारत के लिए, संयुक्त राष्ट्रसंघ में जाने का और राष्ट्रसंघ के आदेश मानने का कोई कारण ही नहीं था। उस समय हुई इस ग़लती के भयावह परिणाम आज भी भारत को भुगतने पड़ रहे हैं।
देशहित के लिए कोई भी निर्णय लेने की भारतीय लष्कर की तैयारी थी। लेकिन ‘हमने युद्ध में जो कुछ भी जीत लिया, वह हमारे राजनीतिक नेतृत्व ने चर्चा में गँवा दिया’ ऐसा अफ़सोस एक लष्करी अधिकारी ने ज़ाहिर किया। ऐसे खेदजनक उद्गार पाकिस्तान के साथ के हर एक युद्ध के बाद हमें सुनने को मिले होंगे। हमारे लष्करी अधिकारियों का यह दुख उन्हीं की ज़बान से मैंने सुना है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में यह प्रश्‍न प्रस्तुत करने को सरदार पटेल का विरोध था। इस कारण, बँटवारे में हाथ से गया भूभाग फिर से प्राप्त करने का अवसर तो भारत ने गँवाया ही; साथ ही, अपने द्वारा आक्रमण किये  जाने पर भी भारत एक हद से ज़्यादा उसका जवाब नहीं देता, यह देखकर पाकिस्तान का हौसला बढ़ गया। यह देश तब से ही भारतविरोधी कारस्तान करता आया है। आज भी यह ख़त्म नहीं हुआ है। कश्मीर का युद्ध तो समाप्त हो गया, लेकिन कश्मीर का काफी सारा भूभाग पाक़िस्तान के पास ही रह गया। यह भूभाग अपने नियंत्रण में न रहने से देश का भारी मात्रा में नुकसान हुआ। आज भी इस कारण हमारी काफी हानि हो रही है।

एक बार कश्मीर प्रश्‍न का हल निकला कि  भारत और पाकिस्तान के संबंध सुधर जायेंगे, ऐसा दावा पाकिस्तान के द्वारा लगातार किया जाता है। हमारे यहाँ के कुछ ‘भोले-भाले’ लोग उसपर विश्‍वास रखते हैं। लेकिन उन्हें इतिहास का तो पता है ही नहीं, साथ ही, वर्तमान का भी ज्ञान नहीं, यही कहा जा सकता है। कश्मीर प्रश्‍न का हल निकला, तो भी पाकिस्तान भारतविरोधी कार्रवाइयाँ करने से बाज़ नहीं आयेगा, क्योंकि सारे भारत पर हु़कूमत करना यह पाक़िस्तान का ख्वाब है। जिस तरह कभी इस देश पर मुगलों का राज था, उसी तरह का शासन पुनः निर्माण करने का पाक़िस्तानी शासकों का लक्ष्य है। मैं यहाँ पर ‘पाक़िस्तान के शासक’ कह रहा हूँ। आम पाक़िस्तानी जनता के प्रति मेरे दिल में ज़रासा भी विद्वेष नहीं है। कई पाक़िस्तानी नागरिकों से मेरा परिचय है। उन्हें उनके देश का रवैया पसन्द नहीं है और कुछ लोगों को तो, पाक़िस्तान जाकर उन्होंने पागलपन की बात की, ऐसा ही लग रहा है। ख़ैर, वह अलग ही विषय है। इस लेखमाला की धारा में, मुझसे मिले कुछ पाक़िस्तानियों की कहानी मैं यक़ीनन ही बताऊँगा।

कश्मीर का युद्ध ख़त्म होने पर, पाक़िस्तान ने नया कारस्तान रचा। भारत का बँटवारा करके पाक़िस्तान की माँग करनेवाले कुछ लोग पाक़िस्तान में गये ही नहीं। वे यहीं पर रहे, ज़ाहिर है भारत के विरोध में कारस्तान करने के लिए। ऐसे अपने हस्तकों की मदद से पाक़िस्तान ने भयंकर षड्यन्त्र पर काम शुरू किया। ‘भारत की संसद पर हमला करके सारे राजनीतिक नेतृत्व को ही ख़त्म करना और यहाँ पर अराजकता फैलाना ऐसी उनकी योजना थी। अराजकता फ़ैल गयी कि भारत पर हमला करना, यह इस योजना का अगला पड़ाव था। उसके लिए यहाँ के पाक़िस्तानपरस्त लोग उन्हें मदद करनेवाले थे। इस षड्यन्त्र के बारे में संघ को पता चल गया। यह जानकारी देश के गृहमंत्री सरदार पटेल तक पहुँचायी गई।

हमेशा चौकन्ने रहनेवाले और देशहित के लिए हमेशा सतर्क रहनेवाले सरदार पटेल ने इस ख़बर को नज़रअन्दाज़ नहीं किया। उन्होंने इस षड्यन्त्र को ध्वस्त करने के लिए संघ की सहायता ली। उसके अनुसार दो स्वयंसेवक इस षड्यन्त्र को ध्वस्त करने के लिए, पाक़िस्तान द्वारा रचे गये षड्यन्त्र में ख़ुफ़िया नाम धारण कर शरीक़ हो गये। ‘हम पूरी तरह भारतविरोधी हैं’, यह बात इन स्वयंसेवकों ने उन पाक़िस्तानपरस्त लोगों के गले उतार दी। इस कारण इस षड्यन्त्र की सारी जानकारी संघ तक और संघ के माध्यम से देश के गृहमंत्री तक पहुँच रही थी।

सरदार पटेल की जितनी सराहना की जाये, उतनी कम है! इस असाधारण नेता ने पहले कार्रवाई न करते हुए, इन गुनाहगारों को सबूत के साथ पकड़ने का निर्णय लिया था। इसीलिए, जिस दिन संसद पर यह हमला किया जानेवाला था, उससे पहले के दिन जब ज़ोरशोर से तैयारियाँ की जा रही थीं, तब पुलीस ने उनके स्थान पर छापा मारा। एक ही समय, भारत के विरोध में साज़िश करनेवाले सभी लोग सबूत के साथ पकड़े गये। उनमें देश के लिए अपनी जान की बाज़ी लगानेवाले उन दो स्वयंसेवकों का भी समावेश था। यह षड्यन्त्र ध्वस्त हो जाने पर सरदार पटेल का संघ पर का विश्‍वास और भी दृढ़ हो गया। लेकिन स्वाभाविक तौर पर उस षड्यन्त्र की जानकारी बाहर नहीं दी गयी। उस समय वैसा करना उचित भी नहीं होता।

सन २००१ में भारतीय संसद पर पाकिस्तानपरस्त आतंकवादियों ने हमला किया था। उससे बहुत साल पहले वैसा ही षड्यन्त्र रचा गया था, इससे पाक़िस्तान की मानसिकता का और पाक़िस्तान से भारत को रहनेवाले ख़तरे का अन्दाज़ा हो सकता है। संघ पाक़िस्तान के निर्माण के विरोध में था, क्योंकि ‘पाक़िस्तान का निर्माण होने पर भारत में शान्ति स्थापित हो जायेगी’ यह सोच ही दरअसल गलतफहमी पर आधारित थी। भारतीय समाज को संगठित तथा सामर्थ्यशाली बनाना, यही शान्ति स्थापित करने का राजमार्ग है।

आज भारत तेज़ी से विकास कर रहा है। भारत का यान मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर चुका है। लेकिन उसी समय पाक़िस्तान भारत में प्रवेश करने का प्रयास कर रहा है। जम्मू-काश्मीर की नियंत्रणरेखा पर के पाक़िस्तान के कारनामे और क्या दर्शाते हैं?

(क्रमश:)

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