रामेश्‍वर भाग-१

बचपन से ‘यात्रा’ यह शब्द सुनते ही याद आती है, ‘काशीरामेश्‍वर’ की यात्रा। हमारे भारत में कई तीर्थक्षेत्र हैं, जहाँ श्रद्धालु यात्रा करने जाते हैं। मग़र तब भी यात्रा कहते ही आज भी याद आती है, ‘काशीरामेश्‍वर’ यात्रा।

पुराने ज़माने में, जब आज की तरह यातायात के साधन उपलब्ध नहीं थे, तब भी पूरे भारत से लोग काशी जाते थे। वहाँ काशी विश्‍वेश्‍वरजी के साथ गंगाजीके भी दर्शन करते थे और वहाँ से गंगाजल लेकर धीरे धीरे चलकर रामेश्‍वर आते थे और गंगाजलसे रामेश्‍वर को अभिषेक करते थे। दर असल यह यात्रा करना काफ़ी मुश्कील था, मग़र तब भी भक्तिभाव के साथ पीढी दर पीढी श्रद्धालु यात्रा करते थे।

इस संदर्भ में संत एकनाथजी की एक कथा भी सुविख्यात है। काशी से काँवर में गंगाजल भरकर वे रामेश्‍वर जा रहे थे। लेकिन रास्ते में किसी रेगिस्तान में उन्हें प्यास के कारण तड़पता हुआ एक गधा दिखायी दिया। सभी प्राणियों के हृदय में ईश्‍वर को देखनेवाले एकनाथजी ने वह गंगाजल उस गधे को पिला दिया। सारांश, काशीरामेश्‍वर की यात्रा कई सदियों से श्रद्धालु कर रहे हैं।

अब यह हुआ इस यात्रा का एक विभाग। इसका दुसरा विभाग है, रामेश्‍वर से सागर का जल लेकर वह काशी जाकर विश्‍वेश्‍वरजी को अर्पण करना।

अब नमन में ज़्यादा वक़्त न बिताते हुए चलिए सीधे रामेश्‍वरही चलते हैं।

हमारे भारत में दूर दक्षिण में बसा है ‘रामेश्‍वर’। रामेश्‍वर यह तामिलनाडु राज्य का हिस्सा है और ‘रामनाथपुरम्’ जिले में बसा है।

दर असल रामेश्‍वर बसा है ‘पंबन’ या ‘पांबन’ नाम के एक द्वीप पर और प्रमुख भूमि से वहाँ जाने के लिए पंबन या पांबन नाम की खाड़ी को पार करना पड़ता है। लेकिन सोच में मत पड़ जाना, हमें खाड़ी पार करने के लिए बोट की ज़रुरत नहीं है, क्योंकि रामेश्‍वर आज प्रमुख भूमि के साथ सड़क और रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है।

तामिलनाडु के प्रमुख शहरों से यहाँ जाने के लिए रेलगाड़ियाँ उपलब्ध हैं। आप सड़क से भी यहाँ जा सकते हैं। रामेश्‍वर जाने के लिए सबसे क़रीबी शहर है, ‘मदुराई’।

देखिए, पुल पर से रेलगाड़ी दौड़ रही है। ऊपर खुला आसमान और नीचे दूर दूर तक फैली हुई गहरी खाड़ी। इस ख़ूबसूरत नज़ारे को देखते हुए हम बड़े आराम से रामेश्‍वर पहुँच जाते हैं।

वहाँ जाते ही जिस वक़्त हम सामने दूर दूर तक फैले हुए अथाह एवं विशाल सागर को देखते हैं, तब हमें इस बात का एहसास हो जाता है कि हम भारत के एक छोर पर आ गये हैं।

अब ‘रामेश्‍वर’ यह नाम सुनते ही आप यह समझ ही गये होंगे की इस स्थल का श्रीराम के साथ यक़ीनन ही कुछ न कुछ संबंध होगा।

यहीं पर श्रीरामद्वारा स्थापित किया गया सुविख्यात शिवलिंग है। श्रीराम के पदस्पर्शसे पावन हुए रामेश्‍वर में आप को जगह जगह श्रीरामभक्ती के चिन्ह दिखायी देंगे।

यहीं पर सागर में श्रीराम ने लंका जाने के लिए सेतु बनाया था, ऐसा कहते हैं। इसी सेतु पर से प्रभु श्रीरामचन्द्रजी रावण का वध करने के लिए लंका गये थे, क्योंकि रावण ने जानकीजी का अपहरण करके उन्हें बंदी बना कर रखा था। उस दुष्ट रावण का ख़ात्मा करके प्रभु श्रीरामचन्द्रजी जानकीजी के साथ पुनः यहीं पर आये थे और उन्होंने यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना की थी, ऐसा भी कहते हैं।

हालाँकि रामेश्‍वर यह बड़ा शहर तो नहीं है, लेकिन वह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र है। यहाँ का शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। साथ ही इसे चारों धामों में से एक धाम माना जाता है। इसे दक्षिण की काशी भी कहा जाता है।

रामेश्‍वर यह मन्दिरों एवं विभिन्न तीर्थों का शहर है। श्रीराम द्वारा जहाँ पर शिवलिंग की स्थापना की गयी, वह मन्दिर बहुत ही मशहूर है और वह उस प्रदेश की वास्तुकला का एक अनोखा आविष्कार भी माना जाता है। इस मन्दिर को ‘श्रीरामनाथस्वामी मन्दिर’ कहते हैं।

लगभग ६२ किलोमीटर्स के दायरे में फैले हुए भूभाग पर बसे इस तीर्थक्षेत्र का आकार शंख की तरह है।

हम जिस रेलमार्ग पर बने पुल पर से रामेश्‍वर में दाख़िल हुए, वह ब्रिज भी ख़ास ही है।

अब आप यह सोच रहे होंगे कि किसी खाड़ी पर बनाये गये पुल में ऐसी क्या ख़ासियत हो सकती है?

इस खाड़ी में से छोटी बडी बोटस् आती जाती रहती हैं। जब कोई बड़ी बोट यहाँ से गुज़रती है और उसकी ऊँचाई के कारण यदि वह इस पुल के नीचे से जा नहीं सकती, तब इस ब्रिज को ऊपर उठाया जाता है और उस बोट के लिए आगे बढने का रास्ता बनाया जाता है। है ना बिलकुल अनोखी बात!

भारत में इस तरह का खाड़ी पर बनाया गया यह पहला ब्रिज है और लंबाई की दृष्टि से भारत में यह दूसरे नंबर पर है। बान्दरा वरली सी लिंक के बाद इसका नंबर आता है।

उपलब्ध जानकारी से यह पता चलता है कि सन १९१४ से इस पर से रेल यातायात शुरू हो गयी। शुरुआती दौर में इसपर से सिर्फ़ मीटर गेज रेलगाड़ी ही दौड़ती थी, बाद में ब्रॉड गेज रेलगाड़ी भी दौड़ने लगी।

इस ब्रिज का निर्माण करते समय ही इसमें कुछ ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जिससे कि अधिक ऊँचाईवाली बोट यदि यहाँ आती है, तो इस ब्रिज को बीचों बीच खोल दिया जाता है। जब वह बोट आगे निकल जाती है, तब पुनः इसे जोड़ दिया जाता है। गत सदी से लेकर अबतक इसी कार्यप्रणालि से यह ब्रिज काम कर रहा है।

इस ब्रिज का निर्माण करना यह एक बड़ी चुनौती ही थी। इस विषय के विशेषज्ञों की राय में यहाँ के कुदरती हालातों को देखते हुए इस तरह के पुल का निर्माण करना यह अपने आप में एक चुनौती थी। खारी हवाएँ, सागर का जल इनके साथ साथ इस भूभाग में बहनेवाली तेज़ हवाएँ और चक्रवात (सायक्लोन) का भी सामना इस पुल के निर्माणकर्ताओं को करना पड़ा होगा।

इस पुल का नाम भी ‘पंबन या पांबन ब्रिज’ ही है।

यह पुल हमें ठेंठ ‘रामेश्‍वर’ले जाता है। रामेश्‍वर में चारों ओर आपको दिखायी देगा सागर का गहरा नीला जल। इस सागर की ख़ासियत यह बतायी जाती है कि यहाँ के सागरी जल में बड़ी ऊँची लहरें नहीं उठतीं । ज़्यादा से ज़्यादा ३ सेंटीमीटर्स की ऊँचाईवालीं लहरें उठती हैं और इसलिए यहाँ का सागर बड़ा शान्त दिखायी देता है।

यहाँ के सागर में ऊँचीं लहरें न उठने के संदर्भ में एक पौराणिक कथा भी बतायी जाती है। जब श्रीराम ने लंका जाने के लिए सेतुनिर्माण करने के लिए सागर से रास्ता देने के लिए कहा, तब सागर ने ‘मैं मेरी लहरों की ऊँचाई को कम करके आपके सेतु बनाने के काम में आपकी सहायता करूँगा’ यह आश्‍वासन दिया और तब से यहाँ की सागरीय लहरों की ऊँचाई कम हो गयी, जो आज तक वैसी ही है।

रामेश्‍वर के इतिहास को देखा जाये तो यहाँ पर किसी राजा के राज करने का या किसीके द्वारा आक्रमण किये जाने का उल्लेख नहीं मिलता।

रामायण काल में श्रीरामद्वारा यहाँ पर लिंग स्थापित किया गया, इस उल्लेख के बाद ठेंठ यहाँ के शिवालय के यानि कि उसी शिवलिंग के मन्दिर के निर्माण के बारे में कुछ थोड़ा बहुत इतिहास ज्ञात है। ‘श्रीरामनाथस्वामी मन्दिर’ का निर्माण विभिन्न राजाओं ने विभिन्न कालखंड में किया यह जानकारी तो मिलती है, लेकिन वे राजा यहाँ के शासक थे या नहीं इस बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती।

इस मन्दिर के निर्माण का इतिहास शुरू होता है, बारहवीं सदी में। इस मन्दिर की वास्तुरचना में विभिन्न कालखंडों में विभिन्न राजाओं द्वारा कुछ न कुछ योगदान दिया गया। लेकिन इन राजाओं के बारे में कुछ ख़ास जानकारी नहीं मिलती। मग़र तब भी एक बात तो साफ़ है कि इस विशाल मन्दिर का निर्माण कार्य सदियों से होता रहा है, तो यहाँ पर सदियों से आबादी तो अवश्य ही बस रही होगी।

दर असल रामेश्‍वर का अतीत और वर्तमान जुड़ा है, ‘श्रीरामनाथस्वामी मन्दिर’ से ही। लाजवाब, विशाल, अद्वितीय इस तरह के अनेकों विशेषण भी इस मन्दिर की सुन्दरता को बयान करने के लिए कम ही है। चलिए, तो फिर ज़्यादा देर न लगाते हुए सीधे मन्दिर की ओर ही प्रस्थान करते हैं।

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