परमहंस-४२

कालीमाता के पहले दर्शन के बाद रामकृष्णजी हालाँकि आध्यात्मिक ऊँचाई की एक एक पायदान चढ़ते हुए नये मुक़ाम हासिल कर रहे थे, मग़र फिर भी इस धुन में वे अपनी तबियत को अनदेखा कर ही रहे थे। राणी राशमणि, मथुरबाबू तथा हृदय इन रामकृष्णजी के तीनों सुहृदों का दिल इस बात से पल पल टूट रहा था।
इतने में ही रामकृष्णजी की जन्मदात्री माता – चंद्रादेवी का पत्र दक्षिणेश्‍वर पहुँच गया।

रामकृष्णजी के बारे में, उनकी विचित्र प्रतीत होनेवाली उपासनापद्धति के बारे में और आचरण के बारे में उल्टीसीधी बातें उस तक पहुँच चुकीं होने के कारण चिन्ताग्रस्त होकर उसने यह पत्र लिखा था और गदाधर अपने घर – माँ की आँखों के सामने होगा, तो वह ठीक से ‘सुधर जायेगा’, यह सीधीसादी आशा मन में होने के कारण उसने, रामकृष्णजी को पुनः घर वापस भेजने की विनती इस पत्र के द्वारा की थी।

राशमणि एवं मथुरबाबू को यह, रामकृष्णजी की बिगड़ी हुई तबियत को पहले जैसी बनाने के लिए अच्छा विकल्प है, ऐसा लगा और उन्होंने, स्वयं को हालाँकि रामकृष्णजी का वियोग सहना पड़नेवाला था, मग़र फिर भी व्यापक हित को मद्देनज़र रखते हुए दिल पर पत्थर रखकर, रामकृष्णजी को कुछ दिनों के लिए पुनः कामारपुकूर भेजने का फैसला किया।

दक्षिणेश्‍वरनिरन्तर कालीमाता के ही विचारों में डूबे रामकृष्णजी हालाँकि, माता का वियोग हो जायेगा इस कारण से दक्षिणेश्‍वर से जाने के लिए पहले तैयार नहीं थे; मग़र फिर गत कई वर्षों से उनकी जन्मदात्री माता उनसे न मिली होने के कारण, उसकी हुई हालत भी वे जानते थे। इसलिए उन्होंने आख़िरकार कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन कामारपुकूर जाने के लिए ‘हाँ’ कर दी।

इतने सालों बाद अपने लाड़ले गदाई को पुनः घर आया देखकर माँ के मन का बाँध टूट गया; लेकिन गदाई की शारीरिक अवस्था देखकर उसके दिल पर मानो पहाड़ ही टूट पड़ा था। कृश हो चुकी कदकाठी, हमेशा दूर कहीं देख रहीं आँखें, बैठे हुए गाल, अस्तव्यस्त बढ़ चुकी दाढ़ी, बालों की ओर ध्यान न दिया होने के कारण वे भी अनियंत्रित बढ़े होकर उनमें तैयार हुईं जटाएँ….

….कामारपुकूर से कोलकाता गया हुआ उसका गदाई ऐसा यक़ीनन ही नहीं था!

माँ का दिल बैठ गया। उसने अपनी संतान को पुनः ‘इन्सान जैसा बनाने की’ ठान ली। सबसे पहले उसके बाल कटवाकर, दाढ़ी बनवा ली। उसे घर का खाना शुरू किया। रामकृष्णजी को स्वयं को हालाँकि इन सब बातों में यत्किंचित भी रुचि नहीं थी, मग़र फिर भी अपनी माँ के दिल का खयाल कर वे ये सारी बातें चुपचाप करा ले रहे थे।

माँ के प्रयासों का उचित असर हो ही गया….गदाई की तबियत सुधरने लगी, अंगकांति में बदलाव आ गया। अब कहीं जाकर माँ का मन शान्त हो रहा था।

इतने सालों के बाद उसे देखने पर उमड़ आया शुरुआती भावनावेग कम हो जाने के बाद चंद्रादेवी ने ज़रा ठंड़े दिमाग से रामकृष्णजी का निरीक्षण करना शुरू किया; तब उसकी समय में आ गया कि केवल शारीरिकदृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानसिकदृष्टि से भी गदाई में बहुत बदलाव हुए हैं।

वह अधिकांश समय दूर कहीं टकटकी लगाकर बैठता है….उसके मन में निरन्तर कुछ तो विचार चलते हैं….उसमें पहले हमेशा नज़र आनेवाली ज़िंदादिली अब मानो कहीं खो गयी है….उसे अब किसी भी भौतिक बात में कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं रही है।

ऐसी कई बातें उसकी समझ में आने लगीं। जैसे जैसे दिन गुजर रहे थे, वैसे वैसे उसकी चिन्ताएँ अधिक ही बढ़ने लगीं।

गदाई अब अपने पुराने प्रिय साथियों को भी भूल चुका है। गदाई के आने के बाद वे उसे मिलने आये ही थे….कई बार आते हैं। लेकिन पहले उनके समूह की मानो चेतना ही रहनेवाला गदाई अब उनमें पहले जैसा घुलमिल नहीं जाता।

ऐसी कई बातें केवल उसकी ही नहीं, बल्कि उन सबकी भी; इतना ही नहीं, बल्कि गदाई के आने के बाद उससे मिलने आये रिश्तेदारों की भी समझ में आयी थीं।

उसकी चिन्ता चरमसीमा तक पहुँची, जब उसे किसी-किसी से यह खबर मिली कि गदाई हररोज़ उठकर गाँव के बाहर रहनेवाले श्मशान में जाकर घण्टों तक बैठ जाता है, अकेला ही कुछ बड़बड़ाता रहता है, वहाँ पर कैसी कैसी उपासनाएँ करता है।

कहीं गदाई पर किसी भूतप्रेत का साया तो नहीं पड़ गया है, इस विचार से उसके पैरोंतले से मानो ज़मीन ही

खिसक गयी। उसने मांत्रिक-तांत्रिकों को भी बुलाकर देखा, लेकिन कुछ भी फायदा नहीं हुआ।

उतने में उनसे मिलने उनके घर आये एक परिचित ने एक ‘उपाय’ सुझाया….

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