परमहंस-१४२

रविवार, १५ अगस्त १८८६….श्रावण अमावस का दिन! रामकृष्णजी ने कुछ दिन पूर्व जोगिन से कहकर कॅलेंडर मँगवाया था और उसमें से, अगले कुछ दिनों के लिए हररोज़ की भारतीय तिथियाँ एक एक करके श्रावण अमावस तक ही पूछीं थीं और फिर रूकने के लिए कहा था।

वह’ श्रावण अमावस का दिन आया था।

सुबह से ही रामकृष्णजी के गले में असहनीय वेदनाएँ हो रही थीं। वे बहुत ही बेचैन होकर करवटें बदल रहे थे। शाम तक तो साँस लेने में भी उन्हें तकलीफ़ होने लगी और उनकी नाड़ी (पल्स) भी अनियमित प्रतीत होने लगी। तब मौ़के की नज़ाकत को पहचानकर उनके सभी शिष्यों को बुलाया गया।

अब उनके कमरे में उनके सभी नित्यशिष्यगण जमा हुए थे। कठिन प्रसंग पहचानकर वे चूपचूपकर रो रहे थे। दो शिष्य उन्हें पंखे से हवा कर रहे थे।

रामकृष्ण परमहंस, इतिहास, अतुलनिय भारत, आध्यात्मिक, भारत, रामकृष्णसूर्यास्त के बाद, उन्हें भूख लगी है ऐसा उन्होंने कहा। गत कुछ दिनों से उन्हें द्रवरूप खाना ही दिया जा रहा था, ताकि वे उसे निगल सकें। वैसा ही उन्हें इस समय भी दिया गया। लेकिन निगलते समय वेदनाएँ हो रहीं होने के कारण वे कुछ चम्मच ही खा निगल सके। बाकी का खाना नीचे ही गिर रहा था। उनका मुँह पोछकर उन्हें पलंग पर तकियों के सहारे लेटाया गया। कुछ शिष्य उन्हें पंखे से हवा करने लगे।

थोड़ी ही देर में रामकृष्ण समाधिअवस्था में चले गये। शरीर बिलकुल पत्थर की तरह कड़क प्रतीत हो रहा था। नाडी नहीं मिल रही थी, साँसें भी प्रतीत नहीं हो रही थीं। शिष्यों को यह हमेशा की भावसमाधि नहीं लग रही थी। उन्हें मन ही मन कुछ शक़ प्रतीत होने लगा और उनमें से एकदो तो रोने लगे।

लेकिन मध्यरात्रि के बाद धीरे धीरे रामकृष्णजी पुनः जागृतावस्था में आने के लक्षण ज़ाहिर करने लगे। थोड़ी ही देर में पूर्णतः जागृत होकर, उन्हें बहुत भूख लगी है, ऐसा उन्होंने कहा। इस समय उन्हें लपसी दी गयी। लेकिन इस बार उन्हें निगलते समय कुछ भी दिक्कत नहीं हो रही थी। उन्होंने धीरे धीरे कप भरकर लपसी आसानी से ख़त्म कर दी। काफ़ी दिनों के बाद उन्होंने, बिना किसी दिक्कत के, एकसमय में इतना खाना ग्रहण किया था। अब मुझे अच्छा लग रहा है ऐसा उन्होंने कहा। शिष्यों का भी तनाव कम हुआ।

शिष्यों ने उन्हें ठीक से पलंग पर लेटाया। सोते समय उन्होंने तीन बार बड़ी आवाज़ में अपनी प्राणप्रिय देवीमाता को ‘काली….काली….काली’ ऐसे स्पष्ट उच्चारण करते हुए पुकारा।

उसके बाद वे गहरी नींद सोये हैं, ऐसा देखकर कुछ लोग उनके पास वहीं पर रूक गये, तो बाक़ी के लोग अपने अपने काम में लग गये।

लेकिन रात को १ बजकर २ मिनट पर उनके गले से एक क्षीण आवाज़ निकली और उनका सिर एक बाजू में झुक गया। एक चेतना सरसराते हुए उनके सारे शरीर में संचार करती हुई चली गयी। उनके पूरे बदन पर रोमांच खड़े हुए थे और उनकी आँखें उनके नासिकाग्र को देखते हुए स्थिर हुईं थीं। उनके चेहरे पर दिव्य स्मित झलक रहा था।

शिष्यों को यह हमेशा की ही समाधिअवस्था प्रतीत हुई। लेकिन सुबह हुई, तब भी रामकृष्ण जागृत नहीं हो रहे थे। फिर भी शिष्यों के मन में थोड़ीबहुत उम्मीद थी ही, क्योंकि वे यद्यपि हलचल नहीं कर रहे थे, फिर भी उनका शरीर एकदम थंड़ा नहीं पड़ा था।

लेकिन दोपहर को डॉ. सरकार आने के बाद उन्होंने रामकृष्णजी की सभी तरह से जाँच की और जिसका शिष्यों को डर लग रहा था, वह अघटित घटना घोषित की….

….रामकृष्णजी समाधिअवस्था को प्राप्त हुए थे….

….लेकिन यह हमेशा की भावसमाधि नहीं थी….

….इस बार वे समाधिअवस्था को प्राप्त हुए थे, वह फिर कभी भी भौतिक विश्‍व में न लौटने के लिए….

….रामकृष्ण परमहंस यह भौतिक जग छोड़कर महासमाधि में विलीन हो चुके थे….!

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