६६. ‘पील कमिशन’

जर्मनी से पॅलेस्टाईन लौटे ‘पाँचवीं आलिया’ के ज्यूधर्मीय जाफ़्फ़ा बंदरगाह में उतरने की प्रतीक्षा करते हुए

तक़रीबन इसवीसन १९३३ से १९४५ तक के दौर में जब जर्मनीस्थित ज्यूधर्मियों को नाझी अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा था, तब खुद पॅलेस्टाईन प्रान्त में भी कई गतिविधियाँ घटित हो रही थीं।

इनमें सन १९३०-३६ इस दौर में पॅलेस्टाईन में पाँचवी ‘आलिया’ हो चुकी थी और लगभग १ लाख ७० हज़ार ज्यूधर्मीय दुनियाभर से पॅलेस्टाईन लौटे थे और उनकी संख्या अब ३ लाख ८२ हज़ार तक जा पहुँची थी।

पॅलेस्टाईन के प्रभावी झायॉनिस्ट नेता ‘डेव्हिड बेन-गुरियन’ (आगे चलकर ये स्वतंत्र इस्रायल के पहले प्रधानमंत्री बने) ये सन १९३५ में ‘ज्युइश एजन्सी फॉर पॅलेस्टाईन’ इस पॅलेस्टाईनस्थित ज्यूधर्मियों की सर्वोच्च संस्था के अध्यक्ष बने थे, जिनका नेतृत्व ज्यूधर्मियों के लगभग सभी गुटों का मान्य था।

अरब-ज्यू दंगों के कारण ढूँढ़ने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पॅलेस्टाईन भेजे ‘पील कमिशन’ इस शाही खोज-समिति के अध्यक्ष लॉर्ड रॉबर्ट पील

इसवीसन १९३० के दशक के मध्य तक, पॅलेस्टाईन में बहुत ही झुलसे हुए अरब-ज्यू संघर्ष पर ब्रिटिशों ने हालाँकि जैसे तैसे क़ाबू पा लिया था, मग़र कुल मिलाकर वह विस्फोटक परिस्थिति सँभालना उनके लिए नाक में दम कर रहा था।

इसका समाधान ढूँढ़ने हेतु नवम्बर १९३६ में, अरब विद्रोह का पहला पड़ाव ठण्ड़ा पड़ जाने के बाद, ब्रिटीश सरकार ने ब्रिटीश राजनयिक लॉर्ड रॉबर्ट पील की अगुआई में एक शाही ख़ोज समिति (‘रॉयल इन्क्वायरी कमिशन’) का गठन कर, उसका प्रतिनिधिमंडल पॅलेस्टाईन भेजा (‘पील कमिशन’)। यह कमिशन, चरमसीमा तक पहुँचे इस संघर्ष की तहकिक़ात कर खोज-अहवाल सादर करनेवाले थे।

पॅलेस्टाईन दाखिल हो जाते ही पील ने सभी संबंधितों की गवाहियाँ दर्ज़ करना आरंभ किया। ज्यूधर्मियों की तरफ़ से अन्यों के साथ साथ डेव्हिड बेन-गुरियन और कैम वाईझमन (ये आगे चलकर स्वतंत्र इस्रायल के पहले राष्ट्राध्यक्ष बने) इन प्रमुख नेताओं की गवाहियाँ दर्ज़ की गयीं; वहीं, अरबों की तरफ़ से जेरुसलेम के तत्कालीन ग्रँड मुफ़्ती अमीन अल-हुसैनी की गवाही दर्ज़ की गयी।

इन गवाहियों में से दोनों पक्षों की भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से उजागर हो रहीं थीं।

पॅलेस्टाईनस्थित अरबों का ‘ज्यू-राष्ट्र’ इस संकल्पना को ही विरोध था। उन्हें पूरा का पूरा पॅलेस्टाईन प्रदेश ही बतौर ‘अरबों का स्वतंत्र राष्ट्र’ चाहिए था, जिसमें वे ज्यूधर्मियों को नाममात्र भी नहीं चाहते थे। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वह बात यानी ब्रिटिशों के द्वारा अरबों का आश्‍वासन देकर मुँह के बल गिराया जाना साबित होगा, ऐसी अरबों की भूमिका थी।

आगे चलकर स्वतंत्र इस्रायल के क्रमानुसार पहले राष्ट्राध्यक्ष और पहले प्रधानमन्त्री बने प्रो. कैम वाईझमन और डेव्हिड बेन गुरियन

वहीं, ज्यूधर्मियों के लिए पॅलेस्टाईन यह – ‘इस्रायली लोगों का जन्म जिस प्रदेश में हुआ’ वह प्रदेश था और वह उन्हें बतौर ‘ज्यू-राष्ट्र’ ही चाहिए था। लेकिन यदि अरब उसमें भाईचारे से रहें तो उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं था।

अरब-ज्यू दंगों के कारण ढूँढ़ने के लिए आये इस ‘पील कमिशन’ ने अपने रिपोर्ट में –

अरबों की स्वतंत्र होने की इच्छा और प्रस्तावित ‘ज्युईश नॅशनल होम’ को होनेवाला उनका कड़ा विरोध तथा दुनियाभर से पॅलेस्टाईन में होनेवाले ज्यूधर्मियों के स्थानान्तरण के कारण उस विरोध में हो रही वृद्धि; ये इन दंगों के पीछे के प्रमुख कारण बताये थे।

साथ ही, आसपास के – इराक, ट्रान्सजॉर्डन, इजिप्त, सिरिया, लेबॅनॉन आदि अरब देशों को तब तक ब्रिटिशों से स्वतन्त्रता मिली देख पॅलेस्टाईनस्थित अरबों की बढ़ीं हुईं उम्मीदें, बढ़ती संख्या में पॅलेस्टाईन आ रहे ज्यूधर्मियों द्वारा बढ़ती मात्रा में ख़रीदीं जा रहीं ज़मीनें, इस स्थानान्तरण को रोकने के लिए ब्रिटिशों की ओर से की जानेवाली आनाकानी; साथ ही, ‘ब्रिटीश पॅलेस्टाईन मँडेट’ में किये गये कुछ उल्लेखों के बारे में, उनमें स्पष्टता न होने के कारण आयी अनिश्‍चितता और उस कारण अरब और ज्यूधर्मीय दोनों के भी मन में ब्रिटिशों के प्रति बढ़ती हुई अविश्‍वास की भावना ये घटक भी इन दंगों को भड़काने के लिए सहायकारी साबित हुए होने का उल्लेख किया गया था।

‘पील कमिशन’ सदस्य खोज-समिति के कार्यालय के बाहर

लेकिन उसीके साथ – ‘ये ज्यूधर्मीय बाहर से आकर हमारीं अच्छीं ऊपजाऊ ज़मीनें निगल रहे हैं’ यह अरबों का युक्तिवाद कमिशन ने मान्य नहीं किया। ज्यूधर्मीय पॅलेस्टाईन में आना शुरू होने से पहले वहाँ की लगभग सारी ही ज़मीन अनुपजाऊ मानी गयी होने के कारण बंजर ही थी और यहाँ के अरब अन्य मार्गों से अपना पेट पालते थे। पॅलेस्टाईन में स्थलांतरित होने के बाद ज्यूधर्मियों ने उन बंजर ज़मीनों को अरबों से ख़रीद लिया और उसके बाद उन ज़मीनों पर विभिन्न प्रयोग कर, उन्हें ऊपजाऊ बनाकर उनमें खेती करना आरंभ किया था। अतः ‘ज्यूधर्मीय हमारी अच्छीख़ासीं ऊपजाऊँ ज़मीनें निगल रहे हैं’ इस अरबों को दावे में कोई तथ्य नहीं था।

साथ ही, इस कमिशन के रिपोर्ट में ऐसा भी नमूद किया गया था कि ‘ ‘लीग ऑफ नेशन्स’ ने मंज़ुरी दिया हुआ मँडेट (‘ब्रिटीश मँडेट’) स्पष्ट रूप से नाक़ाम हो चुका है। सन १९२० के दशक की शुरुआत में अस्तित्व में आये इस मँडेट के कर्ताओं को, भविष्य में (अगले दशक में) आमूलाग्र बदलनेवाली इस परिस्थिति का – पॅलेस्टाईन में चरमसीमा तक पहुँचा अरब-ज्यू तनाव, जर्मनीस्थित ज्यूधर्मियों पर का नाझी संकट और उस कारण स्थलांतरितों की बढ़ती संख्या, अमेरीका ने ज्यूधर्मियों पर कसे प्रवेशनिर्बंध इन जैसी बातों का हल्के से हल्का अँदाज़ा तक होना संभव नहीं था। अतः उस समय मानकर चलीं हुईं कईं बातें अब कालबाह्य हो चुकीं होकर, अब पॅलेस्टाईन प्रान्त का विभाजन किये बिना और कोई चारा ही नहीं है।’

‘पील कमिशन’ ने प्रस्तावित किये पॅलेस्टाईन के विभाजन का नक़्शा

लेकिन पील कमिशन ने प्रस्तावित किये पॅलेस्टाईन के विभाजन में – ‘ज्यूधर्मियों को केवल एक-पंचमांश (२०%), तो अरबों को चार-पंचमांश (८०%)’ ऐसा ज़मीन-विभाजन बताया गया था।

अरब तो ज्यूधर्मियों को कुछ भी देना नहीं चाहते थे, अतः – ‘पूरे के पूरे पॅलेस्टाईन प्रान्त को ही बतौर ‘अरबी राष्ट्र’ घोषित करें, उससे कम कुछ भी स्वीकारार्ह नहीं है’ ऐसी अड़ियल भूमिका अपनाते हुए अरबों ने ब्रिटिशों का इस पॅलेस्टाईन-विभाजन के प्रस्ताव को तत्त्वतः ही ख़ारिज कर दिया;

वहीं, तत्कालीन ज्यूधर्मीय नेताओं ने दूरंदेशी अपनाकर – ‘पहले जो मिल रहा है, उसे तो हाथ में लेते हैं और फिर अधिक के लिए प्रयास करते हैं’ इस व्यवहार्य सोच में से – ‘विभाजन यदि उचिततापूर्वक हुआ, तो हम यक़ीनन ही उसपर सोचेंगे’ ऐसी भूमिका अपनायी। इतना ही नहीं, बल्कि उसीके साथ – ‘क्या पॅलेस्टाईन प्रान्त अखंडित नहीं रह सकता?’ इसपर सभी संभावनाओं पर विचार करने के लिए, अरबों का भी सहभाग होनेवाली ऐसी एक चर्चापरिषद बुलाने की सूचना की।

लेकिन ब्रिटिशों द्वारा सुझाया गया उपरोक्त ‘एक पंचमांश-चार पंचमांश’ विभाजन पूर्ण रूप से अस्वीकारार्ह होने के कारण ज्यूधर्मियों ने उसे नकार दिया।

इस प्रकार, इस कमिशन के रिपोर्ट द्वारा पहले ही – ‘पॅलेस्टाईन प्रान्त का विभाजन करने के उपाय का’ ज़िक्र किया गया था!(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

Leave a Reply

Your email address will not be published.