‘सीपीईसी’ परियोजना को लेकर पाकिस्तान और चीन के बिच मतभेद बढ़ गए, ‘पीओके’ में स्थित बांध के लिए पाकिस्तान ने चीन की १४ अरब डॉलर्स की सहायता को नाकारा

इस्लामाबाद: चीन और पाकिस्तान के बिच के ‘इकोनोमिक कोरिडोर’ (सीपीईसी) को पहला झटका लगा है। दोनों देशों के बिच के इस बहुत ही महत्वाकांक्षी परियोजना में ‘डेमर-भाषा’ इस पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर में निर्माण किए जाने वाले बांध के लिए चीन लगभग १४ अरब डॉलर्स देने वाला था। लेकिन पाकिस्तान को इसे इन्कार करके सबको आश्चर्यचकित कर दिया है। ‘सीपीईसी’ परियोजना द्वारा चीन निवेश नहीं कर रहा है, बल्कि पाकिस्तान को प्रचंड ब्याज दर से कर्ज दे रहा है। इस कर्ज के बोझ तले पाकिस्तान कुचल जाएगा, ऐसे दावे ‘सीपीईसी’ का समर्थ करने वाली मीडिया भी कर रही है। इस पृष्ठभूमि पर पाकिस्तान ने चीन को इन्कार करना, महत्वपूर्ण साबित होता है।

‘सीपीईसी’, मतभेद, ‘पीओके’, चीन, पाकिस्तान, निर्णय, श्रीलंकापाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर में स्थित गिलगिट बाल्टिस्तान में सिन्धु नदी पर पाकिस्तान ‘डेमर-भाषा’ बांध का निर्माण कर रहा है। सन २०११ में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री युसूफ रझा गिलानी ने बांध की बुनियाद रखी थी। इसके लिए उस समय ५ अरब डॉलर्स खर्चा आने वाला था। लेकिन अब यह खर्चा बढ़ गया है। ‘वर्ल्ड बैंक’ और ‘एशियन डेवलपमेंट बैंक’ ने इस बांध के लिए कर्ज देने से साफ इन्कार किया है। यह बांध विवादित क्षेत्र में है और अगर कर्ज चाहिए तो पाकिस्तान भारत से अनापत्ति प्रमाणपत्र लाए, ऐसी शर्त दोनों संस्थाओं ने रखी थी। उसके बाद पाकिस्तान ने खुद के बलबूते पर यह बांध निर्माण करने की कोशिश शुरू की। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की स्थित ख़राब होने की वजह से यह परियोजना आगे नहीं जा सकी थी।

ऐसी परिस्थिति में चीन ने ‘सीपीईसी’ अंतर्गत १४ अरब डॉलर्स की कर्ज सहायता देकर इस परियोजना को पूरा करने के तैयारी दर्शाई थी। लेकिन पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव को इन्कार करके ‘डेमर-भाषा’ बांध ‘सीपीईसी’ से अलग रखने का निर्णय लिया है। चीन ने इस परियिजना को आर्थिक मदद देने के लिए रखी शर्तें मंजूर करने के लायक नहीं हैं और देश के हित के खिलाफ हैं, ऐसा पाकिस्तान के सरकारी सूत्रों ने कहा है। इस परियोजना के लिए चीन की ओर से आर्थिक मदद ली तो पाकिस्तान को दूसरी कोई परियोजना चीन की तरफ गिरवी रखनी पड़ने वाली थी। साथ ही कर्जे पर ब्याज और अन्य शुल्क भरना था।

चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत चीन ‘सीपीईसी’ परियोजना बना रहा है। इसके लिए चीन ने पाकिस्तान में कर्ज सहायता के रूप में करीब ५५ अरब डॉलर्स का निवेश किया है। इसके अंतर्गत चीन पाकिस्तान को २२ अरब डॉलर्स की १५ ऊर्जा परियोजनाएं बनाके दे रहा है। लेकिन वास्तव में चीन इस कर्ज के माध्यम से पाकिस्तान से भरपूर ब्याज वसूल कर रहा है। इस ब्याज को भरने के लिए पाकिस्तान की पहले से ही ख़राब अर्थव्यवस्था पर नया बोझ पड रहा है। चीन जिस गति से पाकिस्तान में निवेश कर रहा है उसे देखा जाए, तो जल्द ही अपना देश चीन की कॉलोनी बन जाएगा, ऐसा डर पाकिस्तान के कुछ विश्लेषक और अर्थशास्त्री व्यक्त कर रहे हैं।

चीन के कर्ज के पिंजरे में फंसकर श्रीलंका को अपना हंबंटोटा बंदरगाह ९९ साल के लिए चीन को सौंपना पड़ा है। उसके बाद पाकिस्तान की चिंता बढ़ गई है। इस पृष्ठभूमि पर पाकिस्तान ने ‘डेमर-भाषा’ बांध के लिए चीन की सहायता न लेने का फैसला किया है। पाकिस्तान अब इस बांध के लिए लगने वाला पैसा खुद ही जुटाने वाला है और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहीद खाकान अब्बासी ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी है।

दौरान, चीन के अभ्यासक ‘हू शिसेंग’ ने पाकिस्तान के इस निर्णय का दोनों देशों के संबंधों पर कोई परिणाम होने वाला नहीं है, ऐसा दावा किया है। दोनों देशों के संबंध अच्छे हैं, ऐसा आश्वासन ‘शिसेंग’ ने दिया है।

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