राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – अपनी पहचान!

‘भारतवर्ष के प्रत्येक क्षेत्र में महापराक्रमी वीरों ने जन्म लिया, राष्ट्र की सेवा की और अपने राष्ट्र का गौरव बढाया। एक समय में हिंदुकुश पर्वतशृंखला पर लहराने वाला केसरिया ध्वज इस महान राष्ट्र में सर्वश्रेष्ठ सभ्यता होने का प्रमाण दे रहा था और सारे संसार को आवाहन कर रहा था। इसीलिये दुनियाभर से छात्र यहाँ पर अध्ययन करने के लिये आया करते थे। ये छात्र यहाँ की सभ्यता, संस्कृति देखकर दंग रह जाते थे।’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास को बताने से भी पहले, भारत जैसे प्राचीन सुसंस्कृत देश में संघ जैसे संगठन की आवश्यकता ही क्यों प्रतीत हुयी, यह समझ लेना आवश्यक है। इसके लिये भारत के वास्तविक इतिहास को जानना चाहिये। आज भी हिन्दुओं की बहुसंख्या रहनेवाले देश में ऐसे संगठन की आवश्यकता क्या है, इस प्रश्न का उत्तर भले ही विस्तारित हो सकता है, परंतु उसे समझ लेना आवश्यक है, ऐसा मुझे लगता है।
RSS - Rameshbhai Mehta

हमारे देश की प्राचीन परंपरा, संस्कृति, वैभवशाली जीवनपद्धति का परिचय सारी दुनिया को हैं। भारत ने अब तक विश्व को बहुत कुछ दिया है और अभी भी विश्व को बहुत कुछ देने की क्षमता भारत के पास है ही। इस देश में प्रभु राम का जन्म हुआ, भगवान कृष्ण ने भी यहीं जन्म लिया, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर ने भी इसी भूमि में जन्म लिया। चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य जैसे महान चिंतक और वीरों की इस भूमि पर अनेक विदेशी आक्रमण हुए। भारत ने इन आक्रमणों का मुँहतोड जवाब दिया। ये आक्रमण सिर्फ सैनिकीय ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी थे, परन्तु भारतीय इनपर भारी पड़ गये।

विश्व-विजय करने की इच्छा से निकले हुये अजेय योद्धा अलेक्झांडर को राजा पौरस के छोटे से गणराज्य ने परास्त कर दिया था। इतिहास की पुस्तकों में हम पढते हैं की ‘राजा पौरस पराजित हो गया और अलेक्झांडर उसके प्रखर स्वाभिमान को देखते हुए उसके साथ सम्मानपूर्वक पेश आया था।’ परन्तु यह विदेशी इतिहासकारों के द्वारा प्रस्तुत की गयी रचना है। यह गलत है, क्योंकि इस युद्ध में राजा पौरस की सेना के द्वारा किये गये प्रतिकार को देखकर अलेक्झांडर और उसकी सेना डर गयी थी। यदि एक छोटा सा गणराज्य इस प्रकार का प्रतिकार कर सकता है, तो फिर भारत के विशाल राज्यों को जीतना असंभव ही साबित होता है, यह अलेक्झांडर की समझ में आ गया। इसीलिये ‘उसके सैनिकों को मातृभूमि की याद आ रही है’ यह बहाना करके वह वापस लौट गया।

उसके बाद के समय में अलेक्झांडर के सेनापति सेल्युकस को सम्राट चंद्रगुप्त ने परास्त किया। इस पराजय के बाद सेल्युकस ने अपनी बेटी का विवाह सम्राट चंद्रगुप्त से कर दिया था। इसके बाद चाणक्य ने अपनी अगाध बुद्धिचतुरता का उपयोग करके सामर्थ्यशाली राष्ट्र का निर्माण किया।

इसके बाद काफी समय तक देश पर कोई विदेशी आक्रमण नहीं हुआ अथवा जिन आक्रमणकारियों ने ऐसी कोशिशें कीं, उन्हें भारतीयों ने सफल नही होने दिया। इस संदर्भ में शक, हुण, कुशाण आदि के आक्रमणों का प्रमाण दिया जा सकता है। इन आक्रमणकारियों को सिर्फ़ सैनिकीय प्रत्युत्तर ही नहीं मिला, बल्कि भारतीय संस्कृती ने भी इन्हें एक अलग ही सबक सिखाया। ये आक्रमणकारी, यहाँ की संस्कृति, जीवनशैली देखकर इतने प्रभावित हो गये कि उन्होंने भारत में ही रहने का निर्णय किया।

आज हम में से कोई ‘शक’ हो सकता है, ‘हूण’ हो सकता है अथवा ‘कुशाण’ भी हो सकता है। परंतु वर्तमान समय में यह पहचान समाप्त हो चुकी है, हम सब भारतीय ही बन चुके हैं। परन्तु जब आक्रमण सफल हो जाते हैं, उस समय देश की क्या दुर्गति होती है, यह सिंध प्रांत पर हुए पहले विदेशी आक्रमण से जाना जा सकता है। राजा दाहीर पर मोहम्मद बिन कासिम ने हमला किया और चरमसीमा का शौर्य दिखाने के बावजूद भी राजा दाहीर इस युद्ध मे मारा गया। उसके बाद उसके राज्य को भयानक परिस्थिति का सामना करना पडा। भीषण लूटमार का सामना तों करना ही पड़ा, परंतु राजा दाहीर की दोनों राजकन्याओं को, लूट का हिस्सा मानकर तुर्कस्तान ले जाया गया।

अपना सर्वस्व खो चुकी राजा दाहीर की रानी न्याय की गुहार लगाती हुई सिंध प्रांत से मेवाड तक आ पहुँची। यहाँ पर उन्होंने बाप्पा रावळ के बारे में सुना। यह महाप्रतापी योद्धा संन्यासी वृत्ति धारण करके बैठा है, इस बात का पता चलने के बाद उसने बाप्पा रावळ

से अपनी व्यथा सुनायी। यह सुनने के बाद उस महायोद्धा ने अपनी तपश्‍चर्या छोडकर हाथ में शस्त्र उठा लिया। विदेशी आक्रमण के प्रतिकार के लिये समाज को संगठित होने का आवाहन किया, उन्होंने स्वयं इस संगठित समाज का नेतृत्व किया।

इसके बाद का इतिहास आज हममें से काफी लोगों को पता नहीं होगा। इसका कारण यह है कि यह इतिहास आम तौर पर बताया ही नहीं जाता। बाप्पा रावळ ने विदेशी आक्रमणकारियों को ऐसा सबक सिखाया कि उसके बाद तीन सौ सालों तक विदेशी आक्रमणकारियों की भारत आने की हिम्मत ही नहीं हुयी। उनकी कई पीढियों के लिये बाप्पा रावळ द्वारा सिखाया सबक पर्याप्त साबित हुआ। क्योंकि उन्होंने ठेंठ तुर्कस्थान तक इन आक्रमणकारियों का पीछा किया था। यह इतिहास हर एक भारतीय को पता होना ही चाहिये।

ऐसे बाप्पा रावळ जैसे महावीर हमारे यहाँ हुए। महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, महाराणा राजसिंग! कितने नाम लें! शिवाजी महाराज का संपूर्ण जीवन हमारी अनेक पीढियों को प्रेरणा देता रहेगा। प्रत्येक युद्ध में विजयश्री प्राप्त करने वाले वीर बाजीराव पेशवे! भारतवर्ष के प्रत्येक क्षेत्र में महापराक्रमी वीरों ने जन्म लिया, राष्ट्र की सेवा की और अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाया। एक समय में हिंदुकुश पर्वतराज पर लहराने वाला केसरिया ध्वज ‘इस महान राष्ट्र में सर्वश्रेष्ठ सभ्यता है’ इस बात का प्रमाण दे रहा था और संपूर्ण विश्व को आवाहन कर रहा था। इसीलिये संसार के कोने-कोने से छात्र अध्ययन के लिये यहाँ आया करते थे। ये छात्र यहाँ की सभ्यता, संस्कृति देखकर दंग रह जाते थे।

RSS - Indian Warriors

यदि विश्व के इतिहास पर नजर ड़ालें, तो हमें क्या दिखायी देता है? साम्राज्य का प्रचंड विस्तार करनेवाले विशाल राष्ट्रों ने अलग-अलग समय-अवधि में अपना विकास तो कर लिया; लेकिन ऐसे राष्ट्र जब आगे चलकर युद्ध में परास्त हो गये, आक्रमणकारियों को जब इन राष्ट्रों पर विजय हासिल हुई, तब चंद कुछ वर्षों में ही इन राष्ट्रों की पहचान मिट गयी। आज हमें उन ताकतवर राष्ट्रों की जानकारी बस इतिहास से मिलती है। परंतु भारत के साथ ऐसा नही हुआ। भारत पर अनेकों आक्रमण हुए। आक्रमणकारियों के भीषण आघातों को सहकर भी भारतीय संस्कृति ने अपनी पहचान क़ायम रखी। यह साधारण बात नही हैं, यह हमें ध्यान में रखना चाहिए। इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात को जितना महत्त्व देना चाहिए, उतना हम नहीं देते हैं। अपनी सांस्कृतिक धरोहर एवं क्षमता को हमें अच्छी तरह समझ लेना चाहिये।

समय के प्रवाह में नामशेष हो चुके साम्राज्यों के इतिहास को देखते हुए, भारत ने अपनी पहचान कायम रखी है, इस बात का आश्‍चर्य सभी को अवश्य हो सकता है। भारत की इस सांस्कृतिक शाश्वतता का संसार में जवाब नहीं है। परन्तु समय के प्रवाह में भारत के सामने नयीं नयीं चुनौतियाँ आती ही रहीं….

(क्रमश:)

– रमेशभाई मेहता

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