‘भारत-जापान के बीच के परमाणु समझौते के प्रावधानों की चिंता नहीं’ : सरकारी सूत्रों ने दिलाया यक़ीन

नई दिल्ली: भारत के साथ नागरी परमाणु समझौता करते हुए जापान ने अपनी नीति में ऐतिहासिक बदलाव किये हैं| ‘परमाणु हमला सहन करनेवाला दुनिया का एकमात्र देश’ ऐसी पहचान रहनेवाले जापान ने भारत के साथ परमाणु समझौता करने के लिए अपनी परमाणुनीति में किया हुआ परिवर्तन, यह आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर का चर्चा का विषय बन गया होकर, जापान और भारत का प्रतिस्पर्धी माना जानेवाला चीन जैसा देश इसपर उंगली रख रहा है| उसी समय, ‘भारत ने यदि परमाणु परीक्षण किया, तो दोनों देशों में संपन्न हुआ यह परमाणु समझौता रद हो जायेगा’ यह इस समझौते में रहनेवाला कलम भारत के लिए बंधनकारक नहीं है, ऐसा दावा भारत सरकार के सूत्रो द्वारा किया जा रहा है|

परमाणुभारत ने अपनी परमाणु नीति बहुत ही एहतियात बरतते हुए बनायी है| ‘परमाणु प्रसार पाबंदी’ विधेयक पर दस्तखत न करते हुए अमरीका, फ्रान्स, कॅनडा और ऑस्ट्रेलिया इन देशों के साथ भारत ने नागरी परमाणु समझौता किया है| इसके पीछे भारत की ज़िम्मेदाराना परमाणु नीति है, ऐसा कहा जाता है| भारत के पास परमाणु क्षमता होने के बावजूद भी भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा, यह नीति भारत ने अपनायी है| पाकिस्तान जैसे गैरज़िम्मेदार और परमाणु हमले की धमकियाँ देनेवाले पड़ोसी देश की ख़तरनाक परमाणु नीति की पृष्ठभूमि पर, संयमित भारतीय नीति अधिक स्पष्ट रूप से दुनिया के सामने आती रही| इसी कारण, भारत ने हालाँकि हवाई, ज़मीन और सामुद्री मार्ग से परमाणु हमला करने की क्षमता प्राप्त की, फिर भी दुनिया के ज़िम्मेदार देश उसकी ओर ‘खतरे’ के रूप में नहीं देखते हैं| उसी समय, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया की परमाणु गतिविधियों को लेकर आंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंताएँ बढ रही हैं|

इसी कारण, जापान जैसे देश ने अपनी पारंपरिक परमाणु नीति बदलते हुए भारत के साथ नागरी परमाणु समझौता किया है| लेकिन ‘भारत ने यदि परमाणु परीक्षण किया, तो यह समझौता रद हो जायेगा’ यह इस समझौते में रहनेवाला कलम सबका ध्यान खींच रहा है| ‘लेकिन इससे डरने का कोई कारण नहीं है| आज तक भारत ने अन्य देशों के साथ किये परमाणु समझौतों में भी इस प्रकार के प्रावधान किये गये थे’ इसपर सरकारी सूत्रों ने ध्यान केंद्रित किया| वहीं, कुछ ही दिन पहले भारत के विदेशसचिव एस. जयशंकर ने, भारत ने जापान के साथ किया यह परमाणु समझौता, अमरीका के साथ किये समझौते से कुछ अलग नहीं है, इसका यक़ीन दिलाया था| लेकिन भारत और जापान के बीच जब यह परमाणु समझौता संपन्न होते समय ही, रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर ने, ‘पहले परमाणु हमले’ का विकल्प भारत ने छोड़ नहीं देना चाहिए, यह विवादग्रस्त बयान किया था| लेकिन यह अपनी निजी राय है, यह बयान रक्षामंत्री ने किया था| इससे खलबली मची थी|

इस पृष्ठभूमि पर, भारत की ‘नो फर्स्ट युज’ इस परमाणु नीति पर चर्चा शुरू हुई है, यह सामने आ रहा है| सन १९९८ में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण लिया था| इसके बाद भारत ने परमाणु परीक्षणों पर पाबंदी लगायी है| इस कारण, नया परमाणु परीक्षण करके, अन्य देशों के साथ किये हुए परमाणु समझौतें ख़ारिज़ हो जाने का खतरा मोल लेने के लिए भारत तैयार नहीं है, यह इससे पहले भी स्पष्ट हुआ था| साथ ही, परमाणु प्रतिहमले की क्षमता प्राप्त किये हुए भारत को अपनी, परमाणुस्त्र का पहले हमला न करने की नीति में बदलाव लाने की जरूरत नहीं है| फिर भी, जरूरत पड़ी, तो भारत अपनी इस नीति में बदलाव ला सकता है, ऐसे संकेत रक्षामंत्री से बयान से मिल रहे हैं| उसी समय, भारत के साथ परमाणु समझौता करते वक्त जापान द्वारा भारत के रक्षामंत्री के बयानों को नजरअंदाज किया जाना, यह बात दोनो देशों के बीच आपस में रहनेवाले भरोसे को स्पष्ट करनेवाली साबित होती है|

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