कोरोना के टीके के संदर्भ में संकुचित राष्ट्रवाद को स्थान नहीं हो सकता – भारत के वित्त मंत्री की विकसित देशों को चेतावनी

नई दिल्ली – दुनिया के सामने कोरोना का भयंकर संकट खड़ा है, ऐसे में टीकों के संदर्भ में राष्ट्रवाद को स्थान नहीं दिया जा सकता। ऐसे दौर में बुद्धिसंपदा कानून पर उंगली रखकर, टीकों का तंत्रज्ञान और इसके लिए लगनेवाले रॉ मटेरियल की सप्लाई को रोका नहीं जा सकता। विकसित देशों को इस संदर्भ में उदार नीति अपनानी ही पड़ेगी, ऐसा भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने जताया है। अमरीका ने अपनी फार्मा क्षेत्र की कंपनियों के फायदे को मद्देनजर रखकर, भारत को टीकों के निर्माण के लिए लगनेवाले रॉ मटेरियल की सप्लाई रोकी थी। साथ ही, बुद्धि संपदा कानून को मद्देनजर रखकर अमरीका इन टीकों के निर्माण की प्रक्रिया खुली ना करें, ऐसी माँग अमरीका के अमीर उद्यमी कर रहे हैं। उस पृष्ठभूमि पर, भारत की वित्त मंत्री ने यह आवाहन किया है।

covid-vaccinesएशियन डेव्हलपमेंट बँक के कार्यक्रम में केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारामन बात कर रहीं थीं। कोरोना के संकट ने हाहाकार मचाया है, ऐसे में ‘ट्रेड-रिलेटेड आस्पेटक्स् ऑफ इंटेलेक्च्युअल प्रॉपर्टी राईटस्’ (टीआरआयपीएस) का हवाला देकर अमरीका के उद्योग क्षेत्र द्वारा यह माँग की जा रही है कि अन्य देशों को टीकों का तंत्रज्ञान प्रदान ना करें। साथ ही, अमरीका में तैयार हुए टीकों की अगर दुनियाभर में बिक्री करनी है, तो अन्य देशों को इस टीकों के लिए लगनेवाले रॉ मैटेरियल की सप्लाई ना करें, ऐसा भी अमरिकी उद्यमियों का कहना है। कोरोना की महामारी में लाखों लोगों की जानें जा रहीं हैं, ऐसे में अमरीका का उद्योगक्षेत्र इसका मानवतावादी दृष्टिकोण से विचार करने के लिए तैयार न होकर, इसकी ओर वे व्यापारी अवसर के रूप में देख रहे हैं। इस प्रवृत्ति की कड़ी आलोचना शुरु हुई है। उसी समय, भारत जैसे देश इसका एहसास करा दे रहे हैं कि अमरीका का फार्मा क्षेत्र भी बड़े पैमाने पर भारत से निर्यात होनेवाले रॉ मटेरियल पर निर्भर है।

इस पृष्ठभूमि पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने, संकट की घड़ी में कोरोना के टीकों के संदर्भ में संकुचित राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को स्थान नहीं हो सकता, ऐसा विकसित देशों को जताया है। टीआरआयपीएस अर्थात् बुद्धिसंपदा कानून पर, कम से कम कोरोना के टीके के संदर्भ में पुनर्विचार करके विकसित देशों को इस बारे में उदार नीति अपनाना ही होगी। एक तरफ हम हमेशा यह माँग करते रहते हैं कि देश अपने मार्केट्स खुले करें, व्यापार और रॉ मटेरियल का आदान-प्रदान अधिक खुले तौर पर हों। इस बारे में फैसला करना आज के दौर में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोरोना प्रतिबंधक टीकों के निर्माण में मुश्किलें पैदा हो रही हैं। इस कारण इस संदर्भ की समस्याएँ दूर होकर अगर टीकों के निर्माण की प्रक्रिया गतिमान हुई, तो उसके जैसी दूसरी संतोषजनक बात नहीं होगी, ऐसा सीतारामन ने स्पष्ट किया।

टीआरआयपीएस अथवा बुद्धिसंपदा कानून के अनुसार, संशोधन से हासिल किया तंत्रज्ञान और उत्पादन इसकी नकल दूसरे देश नहीं कर सकते। वैसा करना जागतिक व्यापार परिषद के सदस्यों के लिए अवैध करार दिया गया है। लेकिन कोरोना के संकट को मद्देनजर रखकर, इस बारे में नियम शिथिल करना अत्यावश्यक होने का दावा भारत तथा अन्य विकासशील देश कर रहे हैं। लेकिन वैसे तो जागतिकीकरण की प्रक्रिया का गुणगान गानेवाले विकसित देश, कोरोना के टीके के संदर्भ में जागतिकीकरण की संकल्पना को बाजू में रख रहे होने की बात सामने आई थी। यह दोगलापन है, यही भारत की वित्त मंत्री सीतारामन अलग शब्दों में बता रही हैं। मानवीय संकट खड़ा है, ऐसे में जागतिकीकरण का पुरस्कार करनेवाले देशों द्वारा ही, कोरोना प्रतिबंधक टीकों के संदर्भ में संकुचित राष्ट्रवाद का पुरस्कार करनेवालीं नीतियाँ अपनाई जा रही है। यह बात इन देशों का पर्दाफाश करनेवाली साबित होती है। इसके विरोध में भारत ने उठाई आवाज इसी कारण अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।

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