नेताजी-१५३

सुभाषबाबू को ले जानेवाली गाड़ी तेज़ी से दौड़ रही थी। अब हिन्दुकुश पर्वतपंक्तियाँ शुरू हो चुकी थीं। बीच में ही आड़े-टेढ़े मोड़ों सा रास्ता, बीच में ही मीलों दूर तक फ़ैले हुए पठारों में से गुज़रनेवाला सरहरा रास्ता ऐसे मार्ग से गाड़ी रशिया की सीमा की ओर दौड़ रही थी। सदियों से अफ़ग़ानिस्तान यह पूर्वीय एवं पश्चिमीय सभ्यताओं को जोड़नेवाली कड़ी के रूप में जाना जाता था। सुभाषबाबू अब पूर्वीय देशों से पश्चिमीय देशों में कार्य करने जा रहे थे। कुछ ही दिन पूर्व पेशावर से काबूल पहुँचते हुए उन्होंने किया हुआ – नाममात्र भी सुख का साया न रहनेवाला कठिन दौड़धूप भरा प्रवास और अभी का, आलीशान गाड़ी में से हो रहा सुखदायी प्रवास इनमें ज़मीन और आसमान का फ़ासला था।

सैंकड़ों मीलों की दूरी तय करने के बाद अफ़ग़ानिस्तान-रशिया सीमा पर स्थित पाता किसार गाँव में गाड़ी ने प्रवेश किया और थोड़ी ही देर में आख़िर रशिया की सरहद दिखायी दी। अमू दरिया (ऑक्सस) नदी पर स्थित ‘उस’ ब्रिज को देखते हुए सुभाषबाबू खुशी से फ़ूले नहीं समा रहे थे।

गाड़ी ने ब्रिज को पार किया।

सुभाषबाबू के कदम रशिया में पड़ चुके थे।

जिसके लिए इतने दर दर ठोकरें खाते हुए, जान की बाज़ी लगाकर इतने पापड़ बेले थे, उस ध्येय के प्राथमिक पड़ाव तक वे पहुँच गये थे।

२० तारीख़। दो दिनों के प्रवास के बाद सुभाषबाबू अब सोविएत रशिया के समरकन्द प्रान्त में प्रवेश कर चुके थे। अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से क़रीबन २५० किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ यह शहर समुद्री सतह से ७०० मीटर की ऊँचाई पर होने के कारण वहाँ की आबोहवा सुखदायक ठण्डी थी। ईसापूर्व ४थीं सदी से लेकर इतिहास के पन्नों पर उल्लेख रहनेवाला यह शहर मध्य आशिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक माना जाता था। प्राचीन समय से युरोपीय देशों का चीन के साथ सिल्क का व्यापार जिस मार्ग से होता था, उस ‘सिल्क रूट’ पर यह शहर रहने के कारण इस शहर की बरक़त दिनबदिन बढ़ती ही गयी। उसीके साथ सुक्कामेवा, चावल, चमड़े की वस्तुएँ इनकी भी निर्यात इस शहर से होती हुई रहने के कारण आर्थिक समृद्धि हर जगह से प्रतीत हो रही थी।

गाड़ी में से इस ऐतिहासिक शहर का मुआयना करते हुए सुभाषबाबू के मन में, पढ़ा हुआ इतिहास जगने लगा था। इस शहर पर समय समय पर अलेक्झांडर (सिकन्दर-ईसापूर्व चौथीं सदी), चेंगीज खान, तैमूरलंग जैसे कई आक्रमकों ने राज किया था। इतनी प्रदीर्घ कालावधि में इस शहर ने कई उतार-चढ़ाव देखे थे। इसवी चौथीं सदी में चेंगीज़ख़ान ने पूरी तरह लूटकर ध्वस्त किया हुआ यह शहर इसवी चौदहवीं सदी में तैमूरलंग के शासन में पुनः वैभव की ऊँचाइयों को छूने लगा। लेकिन उसके बाद इसवी १७वीं और १८वीं सदी में पर्शियन आक्रमक टोलियों ने समय समय पर किये हुए आक्रमणों के कारण यह शहर पुनः विपन्नावस्था में गया था। टोळ्यांनी वेळोवेळी लुटीसाठी केलेल्या स्वार्‍यांनी ते पुन्हा विपन्नावस्थेत गेलं. आधुनिक समय में १९वीं सदी में सोविएत रशिया ने इस शहर पर कब्ज़ा कर लेने के बाद आधुनिक ढ़ंग से ही इस शहर का विकास हुआ था। इन सब बातों को याद करते समय पुनः एक बार मनुष्य के भीतर रहनेवाली सत्तापिपासू प्रवृत्ति को याद करके सुभाषबाबू ज़रा से खिन्न हो गये, क्योंकि ब्रिटिशों की इस सत्तापिपासू प्रवृत्ति के कारण ही उनकी मातृभूमि अभी तक विदेशियों की ग़ुलामी में थी।

सुभाषबाबू को ले आयी गाड़ी यहीं से वापस जानेवाली थी और समरकंद से आगे मॉस्को तक रेलगाड़ी का स़फ़र था। दो दिन के इस प्रवास के बाद सुभाषबाबू मॉस्को पहुँचे। पिछली बार जब वे युरोप आये थे, तब युरोप के बहुतांश राष्ट्रों में जाकर वहाँ के राष्ट्रप्रमुखों को मिलने का अवसर सुभाषबाबू को मिला था, मग़र रशिया के फ़ौलादी दरवाज़ें खुले नहीं थे। अब सुभाषबाबू ने सिर उठाकर मॉस्को में प्रवेश किया था। इस मॉस्को-भेंट में हालाँकि उनकी मुलाक़ात किसी सर्वोच्च रशियन नेता के साथ होनेवाली नहीं थी, मग़र इस बात को एक क़िस्म की जीत मानना अप्रस्तुत नहीं होता।

उस समय मॉस्को में एक प्रकार की अजीबोंग़रीब शान्ति फ़ैली थी। फ़िलहाल तो रशिया का प्रत्यक्ष युद्ध में प्रवेश नहीं हुआ था, मग़र फ़िर भी उस समय तक आधे से ज़्यादा युरोप को निगल चुका होनेवाले हिटलर के साथ अनाक्रमण का क़रार किया हुआ होने के बावजूद भी रशिया को हिटलर पर अंशमात्र भी भरोसा नहीं था।

(यह अनाक्रमण का करार भी – ‘आन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आज का समीकरण कल क़ायम रहेगा ही, यह कहा नहीं जा सकता’ इस वाक्य का जीताजागता सबूत था। इस क़रार के अस्तित्व में आने से पहले, हिटलर के युरोप में बढ़ते हुए वर्चस्व को मात देने हेतु रशिया प्रथमतः ब्रिटन, फ़्रान्स, पोलंड और रोमानिया के साथ एक मित्रता-क़रार पर चर्चा कर रहा था। लेकिन उसमें समाईक (एकत्रित) सुरक्षा की आड़ में, भौगोलिक स्थान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहनेवाले पोलंड तथा रोमानिया इन राष्ट्रों में से सोव्हिएत सेना को ‘ट्रान्झीट राईट्स’ दिये जायें, इस सोविएत रशिया द्वारा की गयी माँग को इन देशों ने ठुकरा दिया और फ़िर रशिया ने अचानक इन देशों के साथ हो रही चर्चा को समाप्त कर फ़ौरन हिटलर के साथ अनाक्रमण का क़रार किया था। वैसे उस अनाक्रमण क़रार के कारण हिटलर के पक्ष में रहनेवाले रशिया ने भी, हिटलर द्वारा पोलंड पर आक्रमण कर आधे पोलंड को निगला जाने के बाद, बचेकुचे आधे पोलंड को निगलकर बहती गंगा में हाथ धो ही लिये थे।) लेकिन अब उसी हिटलर द्वारा रशिया पर आक्रमण करने की योजना बनायी जाने की ख़बर ब्रिटीश गुप्तचरों द्वारा प्राप्त हो जाने के बाद रशिया अस्वस्थ हो चुका था और यही अस्वस्थ शान्ति मॉस्को में जगहजगह पर प्रतीत हो रही थी।

मॉस्को स्टेशन पर सुभाषबाबू का स्वागत मॉस्को स्थित जर्मन एम्बसी के प्रतिनिधि ने किया। दो-चार दिनों में ही मॉस्को से बर्लिन जानेवाले ख़ास हवाई जहाज़ का प्रबन्ध किया जानेवाला था। तब तक वहीं के एक होटल में उनके ठहरने का इन्तज़ाम जर्मन एम्बसी ने किया था।

जब क़ाबूल में सुभाषबाबू रशिया जानेवाली गाड़ी में बैठ गये, यहाँ पर भगतराम ने कोलकाता जाने के लिए प्रस्थान किया। लेकिन उससे पहले, योजना के अनुसार सुभाषबाबू रशिया के लिए रवाना हो जाने की ख़बर उत्तमचन्द को देना वह नहीं चूका।

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