नेताजी-१११

त्रिपुरी अधिवेशन की स्वागत समिति ने अधिकृत रूप से किये हुए ऐसे ‘स्वागत’ की अपेक्षा अनधिकृत, यानि जनसागर ने किया हुआ स्वागत तो काफ़ी उत्साहपूर्ण था। अधिवेशन के लिए दो लाख से भी ज़्यादा लोग इकट्ठा हुए थे। डॉक्टर तथा परिवारजनों द्वारा सुभाषबाबू की तबियत के बारे में साफ़ साफ़ चेतावनी दी जानेपर सुभाषबाबू ने पहला दिन जैसे तैसे शिविर में ही लेटकर व्यतीत किया। अतः पहले दिन मंच पर अध्यक्षस्थान मौलाना आज़ाद ने विभूषित किया।

सुभाषबाबू का अध्यक्षीय भाषण शरदबाबू ने पढ़कर सुनाया।

गाँधीजी ने उसी दिन अपना अनशन तोड़ दिया था। अपने भाषण की शुरुआत में ही सुभाषबाबू ने, गाँधीजी द्वारा अनशन को समाप्त करने पर सन्तोष ज़ाहिर करके, उनके लिए लंबी आयु की कामना की थी और उनका मार्गदर्शन देश को और सालोंसाल मिलता रहें, ऐसी प्रार्थना भगवान के चरणों में की थी।

स्वागत

उसके बाद, सर्वप्रथम अध्यक्षीय चुनाव जिन हालातों में सम्पन्न हुए, उनमें से महत्त्वपूर्ण मुद्दों का अंशतः ज़िक्र कर उन्होंने म्युनिक समझौते के कारण उद्भवित आन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति का जायज़ा लेते हुए निम्नलिखित आशय का भाषण किया –

‘पिछले साल हम सब हरिपुरा में इकट्ठे हुए थे। उसके बाद गत एक साल में बहुत कुछ घटित हुआ है और जागतिक मंच पर भी का़ङ्गी सारी उथलपुथल होने की संभावना स्पष्ट रूप से दिखायी दे रही है। उसमें से सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है, सितंबर में हुआ म्युनिक समझौता। यह समझौता करके, हमेशा जनतन्त्र की डींगें हाँकनेवाले ब्रिटन तथा फ्रान्स ने, वे हमेशा ही जिसे ‘फॅसिस्ट’ कहकर टोकते थे उस इटली के साथ मिलीभगत कर, हिटलर की जर्मनी के सामने घुटनें टेक दिये हैं। जर्मनी में फ़िलहाल चल रहे घटनाक्रम से ब्रिटन भयभीत हो गया है, यही इससे साफ़ ज़ाहिर होता है। दरअसल युरोप की राजनीति में से रशिया का प्रभाव कम करने के संकुचित एवं स्वार्थी हेतु से ही ब्रिटन तथा फ्रान्स ने यह चाल चली है, लेकिन इस एक कदम का आन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति पर दूर दूर तक असर होनेवाला है। इस एक चाल के कारण रशिया का प्रभाव भले ही कम हो जाये, लेकिन इस समझौते के कारण जर्मनी की ताकत बहुत ही बढ़ जायेगी, जिससे कि वह ब्रिटन तथा फ्रान्स को चैन की साँस नहीं लेने देगा। उसी के साथ एशिया में घटित हो रहीं कई घटनाओं से भी ब्रिटन डाँवाडोल हो रहा है और इस बात का फ़ायदा हमें उठाना चाहिए, ऐसी मेरी स्पष्ट राय है। अन्यथा जिस क्षण ब्रिटन के सिर पर से यह संकट टल गया, उसी क्षण से वह पुनः भारत के गले में ग़ुलामी की ज़ंजीर और ज़ोर से कसने में नहीं हिचकिचायेगा। इसलिए हमें चाहिए कि अँग्रेज़ सरकार को अंतिम चेतावनी दे ही दें। यदि उस अवधि में भी अँग्रेज़ सरकार ने कुछ ठोंस कदम नहीं उठाये, तो मजबूरन हमें जंग छेड़नी पड़ेगी। सत्याग्रह तथा सविनय कायदेभंग के जनआन्दोलन को और तेज़ करना होगा। फ़िलहाल आठ प्रान्तों में काँग्रेस की ही सरकारें होने के कारण एवं रियासती प्रान्तों की प्रजा का भी जनआन्दोलन को समर्थन होने के कारण ऐसा विराट आन्दोलन छेड़ने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। आज भले ही काँग्रेस में गुटबाज़ी चलती हुई दिखायी दे रही हो, लेकिन एक बार यदि ऐसा जनआन्दोलन छिड़ जाता है, तो सारे गुट एक होकर जनआन्दोलन में हिस्सा लेंगे, इस बात पर मुझे कतई सन्देह नहीं है। आइए, हम सब निराशा का त्याग कर इस काम में जुट जायें।’

स्वागत

शरदबाबू द्वारा भाषण ख़त्म कर देने पर तालियों की कड़कड़ाहट तथा सुभाषबाबू की जयकार के नारें रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अपने शिविर में रुग्णशय्या पर लेटे हुए सुभाषबाबू को दूर से यह सब सुनायी दे रहा था और ऐसे मौ़के पर मैं वहाँ पर उपस्थित नहीं हूँ, इस खेद के साथ उनकी आँखों में पुनः पुनः आँसू आ रहे थे।

दूसरा दिन खुले अधिवेशन का था। उस दिन विभिन्न प्रस्तावों को पारित करने के लिए रखा जानेवाला था। राष्ट्रीय माँग का प्रस्ताव भी आज ही प्रस्तुत किया जानेवाला था। इसलिए पहले दिन थोड़ा सब्र से काम लेने के बाद अब दूसरे दिन सुभाषबाबू किसी की एक नहीं सुननेवाले थे। मुझे यहाँ से सीधे अधिवेशनस्थल पर ले जाया जाये, ऐसी ज़िद ही उन्होंने पकड़ ली। आयोजकों की एक ही भागादौड़ी शुरू हो गयी। अध्यक्ष महोदय कुर्सी पर बैठ सकनेवाले नहीं थे, इसलिए उनके लिए मंच पर ही रुग्णशय्या का प्रबन्ध किया गया। सिर की ओर एक के ऊपर एक तकियें रखकर सिर को ऊँचा रखा गया था, जिससे कि वे सारे कामकाज़ को देख सकें और उपस्थित सभी उन्हें आसानी से देख सकें।
जब सुभाषबाबू को स्ट्रेचर पर से व्यासपीठ की ओर लाया गया, तब उपस्थितों का कलेजा काँप उठा। उन्हें जब व्यासपीठ पर रखी गयी रुग्णशय्या पर रखा जा रहा था, तब अधिवेशनमंडप में सन्नाटा छा गया था। उन्होंने ब्लँकेट ओढ़ लिया था। पास ही बैठे डॉ. सुनील सिर पर बरफ़ रखते जा रहे थे। भतीजी इला उन्हें निरन्तर पंखा कर रही थी।

इतना कड़ा संघर्ष कर अध्यक्षीय चुनाव जीत चुके अध्यक्ष, रुग्णशय्या पर होने के कारण अध्यक्षीय कुर्सी पर बैठ नहीं सकते थे, अतः अध्यक्षीय स्थान पर विराजमान थे, मौलाना आज़ाद!

सुभाषबाबू के जयकार की घोषणाएँ जारी ही थीं; वहीं, सुभाषबाबू को इस हालत में देखने पर भी उनके विरोधकों की, वे सचमुच में बीमार हैं या नाटक कर रहे हैं ऐसी आशंका व्यक्त करनेवाली नारेबाज़ी भी चालू थी। सुभाषबाबू के मन में इस सारे वाक़ये के बारे में घृणा ही पैदा हो गयी।

थीड़ी ही देर में कामकाज़ की शुरुआत हो गयी। सर्वप्रथम सम्पूर्ण स्वतन्त्रता की राष्ट्रीय माँग करनेवाला मुख्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। लेकिन उसमें निश्चित अवधी के बारे में या आन्दोलन छेड़ने का बारे में एक ल़फ़्ज भी नहीं था। सुभाषविरोधकों ने मौका देखकर वार किया था। इस दग़ाबाज़ी से सुभाषबाबू निराश हो गये। लेकिन उसके बारे में कोई चर्चा करने की ताकत ही उनके शरीर में नहीं थी।

उसके बाद सुभाषविरोधकों ने ‘उस’ प्रस्ताव को प्रस्तुत किया – ‘पंत रिझोल्युशन’!

Leave a Reply

Your email address will not be published.