नेपाल की संसद ने विवादित नक्शे को दी मंज़ुरी

नई दिल्ली/काठमांडू – भारतीय क्षेत्र को अपने देश का हिस्सा दिखानेवाले विवादित नक्शे को कानूनन मंजूरी देनेवाला विधेयक नेपाल की संसद में पारित हुआ है। एक ओर, भारत के साथ बातचीत करने की कड़ी कोशिश नेपाल कर रहा है; वहीं, दूसरी ओर नेपाल की संसद ने यह विधेयक पारित किया है। यह नक्शा राजनीतिक होकर, नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली की कम्युनिस्ट सरकार चीन के इशारों पर नाच रही है, यह दावा भारतीय विश्‍लेषक कर रहे हैं। बुधवार के दिन नेपाल ने अपने इस नये नक्शे के बारे में ऐतिहासिक सबूत इकठ्ठा करने के लिए नौं लोगों की एक समिति गठित की थी। नेपाल के मंत्रिमंडल ने इस नक्शे को पहले ही मंज़ुरी दी है। फिर सबुतों के बिना नेपाल ने किस आधार पर इस नक्शे को मंज़ुरी दी, यह सवाल भी विश्‍लेषक कर रहे हैं।

Nepalलिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा समेत करीबन ३९५ किलोमीटर का भारतीय क्षेत्र नेपाल ने अपने नए नक्शे में शामिल किया है। इसके पीछे चीन का बहकावा होने की ओर विश्‍लेषक ग़ौर फ़रमा रहे हैं। भारत के सेनाप्रमुख जनरल मनोज नरवणे ने भी इस मसले पर बयान किया था और इससे नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार को बड़ी मिरची लगी थी। नेपाल में चीन समर्थक प्रधानमंत्री के.पी.ओली की सरकार, अपने राजनीतिक उद्देश्‍य को हासिल करने के लिए भारत के साथ सीमा विवाद नये से खड़ा कर रहा है, यह बात विश्‍लेषक कह रहे हैं।

शनिवार के दिन नेपाल की संसद में नये नक्शे के मामले में संविधान में सुधार करनेवाला विधेयक पेश किया गया। इस विधेयक को नेपाल की कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी समर्थन देकर संसद में यह विधेयक पारित करने की राह खुली की थी। इससे पहले, पिछले महीने में दोनों दलों ने नेपाल सरकार से थोड़ा समय देने की माँग की थी। कांग्रेस और समाजवादी दल के कुछ नेता इस नए नक्शे के विरोध में हैं। नेपाली जनता को भी भारत के साथ किसी भी प्रकार के अनावश्‍यक विवाद नहीं करने हैं, यह बात ये नेता कह रहे हैं। नेपाल की इन गतिविधियों पर भी विश्‍लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

नेपाल के मंत्रिमंडल ने इस विवादित नक्शे को पिछले महीने में मंज़ुरी दी थी। उस समय भारत और चीन के बीच लद्दाख में विवाद शुरू हुआ था। इस कारण यह नक्शा प्रसिद्ध करने के पीछे, नेपाल की चीनपरस्त सरकार के उद्देश्‍य पर अपने आप सवाल बना था। इसी दौरान बुधवार के दिन नेपाल ने इस नक्शे की पुष्टि करनेवाले सबूत इकठ्ठा करने के लिए एक समिती गठित की। नेपाल सरकार के हाथ में यदि पर्याप्त सबूत नहीं थे, तो यह नक्शा कैसे बनाया और नेपाल के मंत्रिमंडल ने इसे किस आधार पर मंज़ुरी दी, यह सवाल विश्‍लेषक कर हे हैं।

शुक्रवार के दिन बिहार में नेपाल की सीमा पर नेपाल पुलिस ने गोलीबारी की थी। इस हरकत में एक भारतीय किसान की मौत हुई और अन्य चार लोग घायल हुए थे। इन किसानों ने, नेपाल पुलिस भारतीय क्षेत्र से हमें ख़ींचकर नेपाल ले गए थे, यह दावा शनिवार के दिन किया। इसकी वज़ह से इस घटना को भी नेपाल के नये नक्शे से जोड़कर देखा जा रहा है।

इसी बीच उत्तराखंड़ की सरकार ने नेपाल से सटे पिथौरागड के कुछ गांवों को सैटेलाईट फोन देने का निर्णय किया है। पिथौरागड का कुछ हिस्सा भी नेपाल ने अपने नक्शे में दिखाया है। इस पृष्ठभूमि पर, इन गांवों को सैटेलाईट फोन दिए जा रहे हैं। सीमा क्षेत्र के इन गांवों के ४९ सरपंचों के हाथ में ये फोन दिए जाएँगे। अबतक दारमा, व्यास, चौदास घाटी समेत अन्य १८ गांवों के सरपंचों को पहले ही सैटेलाईट फोन दिए गए हैं।

यह दुर्गम क्षेत्र होने के कारण बीएसएनएल और अन्य कंपनियों के टॉवर इन गांवों तक अभी पहुँचे नही हैं। इस कारण इस क्षेत्र के ग्रामस्थों ने नेपाल टेलिकॉम कंपनियों के सीमकार्ड का इस्तेमाल करना शुरू किया था। यह समस्या ध्यान में रखकर पिथौरागड प्रशासन ने सैटेलाईट फोन देने का निर्णय किया है। लेकिन, इस निर्णय के पीछे नेपाल ने बनाया सीमाविवाद होने की बात स्पष्ट हैं।
नेपाल की इस भूमिका के कारण दोनों देशों के संबंधों पर असर हुआ है। भारत-नेपाल सीमा खुली हैं और अबतक दोनों देशों के सरहदी क्षेत्र के नागरिक मिलजुलकर रह रहे थे। लेकिन, अब स्थिति में बदलाव होता दिख रहा है। पिथौरागड के सीमा क्षेत्र के जिन गांवों को सैटेलाईट फोन दिए जा रहे हैं, वहाँ से चीन की सीमा भी करीब ही है। इस कारण भारत ने एक ही समय पर चीन और नेपाल को इससे चेतावनी दी है।

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