काठमांडू से बिहार के रक्सौल तक के रेल मार्ग को नेपाल की मंजूरी – चीन को झटका

नई दिल्ली – तिब्बत से काठमांडू तक रेल नेटवर्क का निर्माण करने के लिए चीन बीते कुछ वर्षों से लगातार कोशिश कर रहा है। लेकिन, नेपाल ने भारत का प्रस्ताव मंजूर किया है। काठमांडू से बिहार के रक्सौल तक के रेल मार्ग का निर्माण करने के लिए नेपाल की सरकार की मंजूरी प्राप्त हुई है और इस मार्ग का ‘डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट’ (डीपीआर) तैयार करने के लिए कहा गया है। इस विषय में नेपाल के परिवहन मंत्रालय ने भारते को पत्र लिखा है, यह वृत्त भी सामने आया है। चीन ने नेपाल में रेलमार्ग का निर्माण करने पर चीन इस मार्ग का इस्तेमाल युद्ध के दौरान भी करने का खतरा था। इस पृष्ठभूमि पर चीन को बड़ा झटका लगा है।

kathmandu-biharदो वर्ष पहले काठमांडू में हुई बिमस्टेक देशों की परिषद के दौरान भारत और नेपाल के काठमांडू से रक्सौल तक रेल मार्ग का निर्माण करने के लिए आवश्‍यक अध्ययन पूरा करने के लिए सामंजस्य समझौता किया गया था। लेकिन, इसके बाद इस विषय पर ज्यादा कुछ नहीं हो सका था। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली के कार्यकाल में भारत और नेपाल के संबंध अधिक बिगड़ते रहे। नेपाल ने भारत के क्षेत्र पर अपना दावा जताने के बाद बीते आठ महीनों में इन देशों के संबंधों में काफी तनाव निर्माण हुआ था। लेकिन, नेपाल की ज़मीन पर चीन ने किया हुआ कब्ज़ा और के.पी.ओली के खिलाफ भड़के माहौल के बाद नेपाल ने भारत के साथ पहले जैसे संबंध स्थापित करने के लिए पहल की थी।

भारत के ‘रॉ’ प्रमुख से प्रधानमंत्री के.पी.ओली ने भेंट की थी। साथ ही भारत के सेनाप्रमुख को नेपाल का मानद जनरल पद बहाल करके सम्मानित किया गया था। इसके साथ ही भारत के विदेश सचिव ने भी हाल ही में नेपाल की यात्रा की थी। जल्द ही नेपाल के विदेशमंत्री भी भारत यात्रा के लिए आ रहे हैं। इस पृष्ठभूमि पर काठमांडू से रक्सौल तक रेल मार्ग विकसित करने को नेपाल सरकार की मंजूरी प्राप्त होने का वृत्त आया है।

बिहार का रक्सौल शहर दोनों देशों की सीमा पर स्थित बिरजुंग के करीब बसा है। रक्सौल रेल मार्ग से दिल्ली और कोलकाता से जुड़ा होने से यह नया मार्ग बड़ा अहम साबित होगा। 136 किलोमीटर के इस रेल मार्ग का 42 किलोमीटर का मार्ग सुरंगी मार्ग रहेगा। साथ ही इस मार्ग पर ब्रॉडगेज ट्रैन दौड़ेगी एवं इस मार्ग पर रेल की पटरी की चौड़ाई 1,676 एमएम रहेगी। वहीं, चीन ने नेपाल को 1,453 एमएम के ‘स्टैंड़र्ड गेज’ का रेल मार्ग विकसित करने का प्रस्ताव दिया था, यह जानकारी भी सामने आ रही है। इस रेलमार्ग का निर्माण करने की ज़िम्मेदारी ‘कोकण रेल’ को दी गई है। इस मार्ग के लिए ‘कोकण रेल’ ने ‘डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट’ (डीपीआर) तैयार करने की अनुमति भी कुछ महीने पहले ही माँगी थी। लेकिन, दोनों देशों के संबंध सुधार के साथ पहले के स्तर पर जा रहे हैं, तभी यह अनुमति प्रदान की गई है। नेपाल के परिवहन मंत्रालय के सचिव रबिंद्रनाथ श्रेष्ठ ने इस मार्ग को मंजूरी प्रदान करने की जानकारी साझा की।

चीन भी नेपाल के पहाड़ी इलाकों को काठमांडू के साथ जोड़नेवाले रेलमार्ग का नेटवर्क स्थापित करने के लिए उत्सुक था। इसके लिए वर्ष 2008 में पुष्ट कमल दहाल (प्रचंड) के प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल में चीन ने तिब्बत के कीरोंग से काठमांडू तक रेल मार्ग विकसित करने का प्रस्ताव रखा था। वर्ष 2015 में हुए मधेसियों के प्रदर्शनों के दौरान भारत ने सुरक्षा का कारण बताकर नेपाल को आवश्‍यक सामानों की आपूर्ति करना बंद किया था। इसके बाद नेपाल ने भी काठमांडू से तिब्बत तक के रेलमार्ग का निर्माण करने में उत्सुकता दिखाई थी। इस मार्ग के लिए दोनों देशों ने चर्चा भी की थी। लेकिन, वह सभी चर्चाएं नाकाम साबित हुईं। अब नेपाल ने भारत का प्रस्ताव पारित करके चीन की महत्वाकांक्षा मिट्टी में मिलाई है।

चीन यदि काठमांडू तक रेल मार्ग विकसित करने में सफल होता तो वर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा साबित हुआ होता। इस मार्ग के साथ ही चीन को अपनी सेना और लष्करी सामान भारतीय सीमा तक रफ्तार से पहुँचाना संभव हुआ होता। लेकिन, अब यह खतरा टल चुका है, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना है।

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