चीन और पाकिस्तान भी तालिबान पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं

बीजिंग/इस्लामाबाद – चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने तालिबान को स्वीकृति देने की तैयारी रखने की खबरें प्राप्त हो रही हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और अन्य नेता एवं चरमपंथी तो अफ़गानिस्तान में तालिबान को प्राप्त हुई कामयाबी का जोरदार स्वागत कर रहे हैं। इसके बावजूद यह दोनों देश तालिबान की ओर अभी भी आशंका से देखते दिखाई दे रहे हैं। इसी कारण अफ़गानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल हमारे खिलाफ आतंकी गतिविधियों के लिए होने नहीं देना चाहिये, यह इशारा चीन ने तालिबान को दिया है। तभी, पाकिस्तान ने तालिबान की हुकूमत को इतनी जल्दी मंजूरी ना देने का ऐलान किया है।

china-pak-not-trust-talibanवर्ष १९९६ में अफ़गानिस्तान में तालिबान की क्रूर हुकूमत स्थापित होने के बाद इसे स्वीकृति देनेवाले देशों में पाकिस्तान सबसे आगे था। इस बार भी तालिबान ने अफ़गानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्ज़ा करने के बाद पाकिस्तान में जल्लोष का माहौल  हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इम्रान खान ने तो तालिबान ने विदेशियों की गुलामी के जंजीरें तोड़कर अफ़गानिस्तान को मुक्त किया है, यह दावे भी किए थे। इस पर पाकिस्तान में ही आलोचना हुई थी और इम्रान खान के इस गैरज़िम्मेदाराना बर्ताव की पाकिस्तान को कीमत चुकानी पड़ेगी, ऐसे इशारे ज्येष्ठ पत्रकारों ने दिए हैं।

इसके बाद सावधान हुई पाकिस्तान सरकार ने तालिबान की हुकूमत को इतनी जल्द स्वीकृति नहीं दी जाएगी, यह ऐलान किया। पहले इस क्षेत्र के मित्रदेशों से चर्चा करके बाद में ही पाकिस्तान की सरकार तालिबान को स्वीकृति देने का निर्णय करेगी, ऐसा बयान पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसरण मंत्री फवाद चौधरी ने किया है। तालिबान को स्वीकृति देने के मुद्दे पर पाकिस्तान की सरकार एवं राजनीतिक दायरे में तीव्र मतभेद सामने आ रहे हैं। विपक्षी ‘पाकिस्तान पिपल्स पार्टी’ के नेता बिलावल भुत्तो ने आतंकवाद के मुद्दे पर दोगली भूमिका अपना नहीं सकते, यह अहसास पाकिस्तान की सरकार को कराया है।

तालिबान की हुकूमत को स्वीकृति दी तो पाकिस्तान को तालिबान की ही शाखा समझे जा रहे ‘तेहरिक ए तालिबान’ से इन्कार करना मुमकिन नहीं होगा, इस बात का अहसास विश्‍लेषक करा रहे हैं। इस वजह से तालिबान की हुकूमत को स्वीकृति के लिए  जल्दबाज़ी करने के बजाए पाकिस्तान अन्य देशों से बातचीत करने के बाद ही इस पर निर्णय करने की बात कह रहा है। साथ ही तालिबान के आतंकी हम पर पलट सकते हैं, यह ड़र और आशंका भी पाकिस्तान की इस सावधानी के पीछे है। वहीं, चीन ‘ईस्ट तुर्कीस्तान इस्लामिक मुवमेंट’ (ईटीआयएम) संगठन को तालिबान ठिकाने लगाए, यह उम्मीद जता रहा हैं। इस संगठन के सदस्य अफ़गानिस्तान में होने का दावा किया जा रहा है। इसका दाखिला देकर चीन तालिबान से इस बात की गारंटी माँग रहा है कि, अफ़गानिस्तान की ज़मीन हमारे खिलाफ आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होगी।

चीन और पकिस्तान तालिबान पर दिखा रहे यह अविश्‍वास यानी हमारे तालिबान से ताल्लुकात नहीं हैं यह दिखाने की कोशिश है, या वास्तव में इन दोनों देशों को तालिबान पर भरोसा नहीं हैं, यह बात अभी स्पष्ट नहीं हुई है। लेकिन, तालिबान विश्‍वास करने लायक संगठन ही नहीं है, इसमें कई गुट काम करते हैं, इस ओर अभ्यासक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। इस वजह से तालिबान का कोई भी गुट चीन और पाकिस्तान की योजनाओं को सुरंग लगा सकता है। इसी कारण तालिबान को गुप्त रूप से सहायता कर रहे पाकिस्तान और चीन को भी तालिबान से सावधान रहने की ज़रूरत महसूस हो रही है।

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