राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवल अफ़गानिस्तान के दौरे पर

काबूल – भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल दो दिनों के अफ़गानिस्तान के अघोषित दौरे पर आये हैं। फिलहाल अफ़गानिस्तान में जारी गतिविधियों की पृष्ठभूमि पर डोवल का यह दौरा बहुत ही अहम साबित होता है। डोवल ने अफ़गानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष अश्रफ गनी और प्रमुख नेता डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला से भेंट की। साथ ही, अफ़गानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्लाह मोहीब से भी डोवल की चर्चा संपन्न हुई। दोनों देशों के समान सामरिक हितसंबंधों पर इस मुलाक़ात में चर्चा हुई, ऐसा अफ़गानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के इस अफ़गानिस्तान दौरे का विवरण अभी तक भारत से सामने नहीं आया है। लेकिन अमरीका-तालिबान में हुआ शांति समझौता ख़तरे में पड़ गया है, ऐसे में डोवल का यह अफ़गानिस्तान दौरा ग़ौरतलब साबित होता है। पिछले कुछ हफ़्तों में तालिबान ने अफ़गानिस्तान में हिंसाचार का सिलसिला शुरू किया होकर, अफगानी लष्कर के साथ तालिबान का संघर्ष अधिक से अधिक रक्तरंजित बनता चला जा रहा है। ऐसे दौर में अमरिकी लष्कर ने तालिबान पर हवाई हमलें करके अफगानी लष्कर की सहायता की थी। अमरीका के ये हवाई हमलें यानी दोहा में हुए शांति समझौते का उल्लंघन साबित होता है, ऐसा आरोप तालिबान ने किया है। वहीं, तालिबान हिंसक हरक़तें नहीं रोक रहा है, इसलिए अफगानी जवान तथा जनता की रक्षा की ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए अमरीका ने ये हवाई हमलें किये थे, ऐसा खुलासा अमरीका द्वारा किया जा रहा है। आनेवाले समय में भी तालिबान पर ऐसे हमलें जारी रहेंगे, ऐसा अमरीका ने जताया है।

इससे कतार के दोहा में अमरीका और तालिबान में संपन्न हुआ शांतिसमझौता ख़तरे में पड़ गया है। तालिबान स्पष्ट रूप से वैसी चेतावनियाँ दे रहा है। साथ ही, अफ़गानिस्तान की सरकार और तालिबान के बीच सुलह होने की संभावना भी इससे मिट गयी दिखायी देती है। इस कारण अफ़गानिस्तान में हुए शांति समझौते का श्रेय लेकर खुद की पीठ थपथपानेवाले पाकिस्तान की हालत मुश्किल बनी है। भारत ने इससे पहले ही यह उम्मीद ज़ाहिर की थी कि अफ़गानिस्तान की शांति प्रक्रिया अफगानियों का सहभाग होनेवाली, उसका नेतृत्व और नियंत्रण अफगानियों के पास ही होनेवाली होनी चाहिए। संक्षेप में, अफ़गानिस्तान की शांतिप्रक्रिया में पाकिस्तान की दख़लअन्दाज़ी फलदायी साबित नहीं होगी, ऐसा भारत ने अलग शब्दों में जताया था। भारत की यह चिन्ता सार्थक साबित हुई होकर, तालिबान के साथ हुआ यह शांतिसमझौता टूटने की स्थिति में दिखायी दे रहा है।

जल्द ही अमरीका अफ़गानिस्तान में होनेवाली अपनी सेना को वापस बुलानेवाली होकर, उसके परिणाम अफ़गानिस्तान में दिखायी देंगे और तालिबान जल्द ही अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करेगा, ऐसी चिंता व्यक्त की जाती है। इस पृष्ठभूमि पर, भारत ने अफ़गानिस्तान को लष्करी सहयोग की आपूर्ति करने का प्रस्ताव दिया होने के दावें कुछ विदेशी न्यूज़ एजन्सियों ने किये थे; वहीं, अफ़गानिस्तान की सरकार, तालिबान का मुकाबला करने के लिए भारत से लष्करी सहायता की उम्मीद कर रहा है, ऐसीं ख़बरें भी सामने आ रहीं हैं।

लेकिन भारत अफ़गानिस्तान में अपनी सेना तैनात नहीं करेगा, ऐसा लष्करप्रमुख जनरल नरवणे ने एक ही दिन पहले दृढ़तापूर्वक कहा था। ऐसी स्थिति में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अफ़गानिस्तान दौरे में, इस विषय पर महत्त्वपूर्ण चर्चा हुई होने की गहरी संभावना जतायी जाती है। भारत और अफ़गानिस्तान का सहयोग यह अपने हितसंबंधों के लिए ख़तरा है, ऐसा माननेवाले पाकिस्तान को इससे बहुत बड़ा झटका लग सकता है।

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