हरितक्रांति डॉ. एम्. एस्. स्वामीनाथन्

वैज्ञानिकों ने हमारी भारतमाता को सुजलाम्-सुफलाम् बनाने के लिए अविरत प्रयास तो किए ही हैं, साथ ही सामान्य भारतवासियों के रोज़मर्रा के जीवन को सुखी एवं समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है। डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के समान महान संशोधनकर्ता इस देश में भूख की समस्या हमेशा के लिए दूर हो जाने के लिए हरितक्रांति ले आये।

‘हैं’ की अपेक्षा ‘नहीं’ का प्रमाण देश में कई गुना अधिक था और इसके परिणाम के फलस्वरूप अनेकों स्तर पर होनेवाली कमी भी। पिछले कुछ वर्षों में इस देश में अनाज के संबंध में कमी नहीं होगी, इस बात का ध्यान रखते हुए अनमोल कार्य कर दिखलानेवाले महान वैज्ञानिक हैं, डॉ. स्वामीनाथन्!

डॉ. स्वामीनाथन् ने अधिक फसल देनेवाली गेहूँ की नयी प्रजाति विकसित करके सामान्य जनता के लिए काफ़ी बड़े पैमाने पर गेहूँ उपलब्ध हो सकेगा, इस दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण प्रयास कर उसमें सफलता भी प्राप्त की। डॉ. स्वामीनाथन् और उस समय के केन्द्रीय कृषिमंत्री इनके प्रयासों से यह कार्य पूरा हो सका। डॉ. स्वामीनाथन् जैसा महान कृषि-वैज्ञानिक सैंकड़ों वर्षों में एकाद बार ही जन्म लेता है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।

७ अगस्त १९२५ के दिन कुंभकोणम् (तामिलनाडू) में जन्म लेनेवाले स्वामीनाथन् के पिता व्यावसायिक शल्यचिकित्सक थे। एर्नाकुलम् के महाविद्यालय से झूऑलॉजी विषयसहित उपाधिप्राप्त शिक्षा उन्होंने पूर्ण की। अहिंसा, स्वदेशी, स्वावलंबन जैसे गांधीवादी विचारधारा के वे समर्थक थे। अपने देश को जिस चीज की ज़रूरत है उसे जानकर उन्होंने अपनी अगली शिक्षा कृषिसंबंधित विषयों में पूरी की। १९५२ में इंग्लैंड के केंब्रिज महाविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। आज तक स्वामीनाथन् को दुनियाभर के कुल मिलाकर ५८ महाविद्यालयों ने डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है। १९४९ से उनके संशोधन कार्यक्षेत्र का आरंभ हुआ। प्रथम कुछ वर्षों में उन्होंने धान, गेहूँ, आलू एवं जूट इन फसलों से संबंधित उपयुक्त संशोधन किए। अमरीका के जाने-माने कृषि विशेषज्ञ डॉ. नॉरमन बोरलॉग द्वारा विकसित किए गए गेहूँ का इस देश में बुआई-जुताई का यशस्वी प्रयोग उन्होंने कर दिखलाया। किसान एवं खेतों में काम करनेवाले मज़दूर किसान इनमें होनेवाले आनुभविक ज्ञान का उन्होंने सम्मान किया। खेतों में स्वयं काम करनेवालों को खेती के बारे में अच्छे-बुरे की बारीकी से जानकारी होती है, ऐसा उनका मानना था। आरंभ में कुछ लोगों ने कहा था कि ‘भारतीय किसान परंपरागत रूढीवादी विचारधारा में विश्‍वास रखता है, वह नये बीजों का स्वीकार नहीं करेगा।’ परन्तु स्वामीनाथन् ने भारत के कृषिमंत्रियों से मुलाकात कर यह कहा कि ‘यह तो किसानों पर ही छोड़ दिया जाये कि वे इस नयी पद्धति के गेहूँ का उत्पादन करें या न करें।’

संपूर्ण उत्तर भारत में इस नये प्रकार के गेहूँ की बुआई-जुताई करके देखा गया। रिझल्ट अति उत्तम प्रकार का आया। गेहूँ के उत्पादन का रेकॉर्ड बना दिया गया। अच्छी सफलता मिली। ‘मेक्सिकन डॉर्फ’ जाति के बीजों के साथ ही भारतीय बीजों की जाति विकसित करने में डॉ. स्वामीनाथन् को सफलता मिली। केवल भारत के ही नहीं, बल्कि एशियाई देशों के किसानों ने भी इस प्रयोग को सफल कर दिखलाया। डॉ. बोरलाग को नोबल पुरस्कार दिया गया, उस समय उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इस पुरस्कार के पीछे डॉ. स्वामीनाथन् का कार्य काफी महत्त्वपूर्ण है और यह भी कहा कि ‘यदि यह संशोधन नहीं किया गया होता तो भारत एवं एशिया खंड में हरितक्रांति नहीं आती। यह इस हरितक्रांति का ही गौरव है।’

२००४ में आनेवाली त्सुनामी की पुनरावृत्ति को यदि टालना है तो खारफुटी (मॅनग्रोव्ह) की पैदावार अत्यन्त आवश्यक है, यह इशारा भी उन्होंने दिया। रॉयल सोसायटी ऑफ लंडन की सदस्यता के साथ ही डॉ. स्वामीनाथन् को अमरीका, रूस, चायना आदि की सायन्स संस्थाओं की सदस्यता प्राप्त हुई है। महात्मा गांधी और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ साथ ‘महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व’ यह कहकर उनका उल्लेख १९९९ में ‘टाईम्स’ नामक मासिक पत्रिका में किया गया है। एशियाई देशों के कुल २० विशेष व्यक्तियों में उनके नाम का भी समावेश किया गया है। ‘महात्मा गांधी एवं महान संशोधनकर्ता जॉर्ज वॉशिंग्टन कॉर्व्हर इन दोनों के कार्यों का आदर्श डॉ. स्वामीनाथन् के कार्य में दिखाई देता है’, यह प्रसंगात्मक उद्गार भी डॉ. स्वामीनाथन् के विदेशी स्वागत सत्कार के समय प्रकट हुए हैं। आज तक डॉ. स्वामीनाथन् ने २५४ संशोधनात्मक निबंध प्रसिद्ध किए हैं। कृषि, हरितक्रांति, गेहूँ की क्रांति, किसानों का अधिकार, पर्यावरण भूखमरी से मुक्ति इस प्रकार के विविध विषयों पर भी उन्होंने किताबें लिखी हैं।

पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण, अल्बर्ट आईनस्टाईन जागतिक विज्ञान पुरस्कार टायलर अ‍ॅवॉर्ड (पर्यावरण संबंधी) होंडा अ‍ॅवॉर्ड, वर्ल्ड फुड अ‍ॅवॉर्ड (१९८७), मेगॅसेसे अ‍ॅवॉर्ड (१९७९), इंदिरा गांधी प्राइझ फॉर पीस (२०००), डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर अ‍ॅवॉर्ड (१९६१) इस तरह के अनेकों पुरस्कार अ‍ॅवॉर्ड से डॉ. स्वामीनाथन् को देश-विदेशों में गौरवान्वित किया गया है। बड़ी आबादी वाले देशों की अन्नसंबंधित ज़रूरत और भूख ही समस्या का हल ढूँढ़ निकालने के कारण इस संशोधनकर्ता को प्राप्त होनेवाले करोड़ों लोगों के आशीर्वाद निश्‍चित रूप से बहुमूल्य हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.