‘मंगलयान-२’ ऑर्बिटर मुहिम होगी – इस्रो के प्रमुख के.सिवन

नई दिल्ली – नासा की मंगल मुहिम के तहत भेजा गया ‘रोवर’ हाल ही में मंगल ग्रह की सतह पर उतरा। इसी समय भारत ने अपने दूसरे ‘मंगलयान’ मुहिम का ऐलान किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इस्रो) के प्रमुख के.सिवन ने शनिवार के दिन एक साक्षात्कार के दौरान यह स्पष्ट किया कि, भारत भी दूसरे ‘मंगलयान’ मुहिम पर काम करेगा और यह मुहिम सिर्फ ‘ऑर्बिटर’ मुहिम होगी। भारत के इस दूसरे मंगलयान मुहिम का समय अभी तय नहीं हुआ है, यह बात भी सिवन ने कही।

mangalyaan-orbitor‘इस्रो’ फिलहाल ‘चंद्रयान-३’ मुहिम पर ध्यान दे रहा है। कोरोना के संकट के कारण इस मुहिम को देर हुई है। वर्ष २०१९ में भारत की ‘चंद्रयान-२’ मुहिम को पूरी सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। इस मुहिम के दौरान भारतीय ‘ऑर्बिटर’ चांद की कक्षा में भ्रमण करते समय अच्छी तरह से काम कर रहा था, फिर भी इस मुहिम के तहत चांद की सतह पर उतारे गए ‘विक्रम लैण्डर’ और ‘प्रग्यान रोवर’ का संपर्क खंड़ित हुआ था। इस वजह से चांद के दक्षिणी ओर स्थित अंधेरे वाली सतह पर ‘रोवर’ उतारकर ज़रूरी जानकारी प्राप्त करने की मुहिम असफल हुई थी।

लेकिन, उसी समय ‘इस्रो’ ने ‘चंद्रयान-३’ का ऐलान किया था। इस मुहिम में चांद की सतह पर ‘रोवर’ उतारने का प्रमुख कार्य फिर से किया जा रहा है। लेकिन, यह मुहिम वर्ष २०२२ में होगी, ऐसा वृत्त है। इसी बीच अमरीका की नासा ने हाल ही में मंगल ग्रह की सतह पर अपना ‘रोवर’ उतारा है। इस पृष्ठभूमि पर क्या ‘इस्रो’ भी मंगल ग्रह पर ‘रोवर’ उतारेगी? यह सवाल इस्रो के प्रमुख के.सिवन को पुछा गया। इस पर जवाब देते समय इस्रो के दूसरे ‘मंगल अभियान’ का ऐलान किया। लेकिन, ‘चंद्रयान-३’ के बाद ही यह मुहिम होगी। साथ ही ‘मंगलयान-२’ सिर्फ ऑर्बिटर मुहिम होगी। मंगल ग्रह की कक्षा में ‘ऑर्बिटर’ भेजा जाएगा और यह ‘ऑर्बिटर’ मंगल के फेरे लगाकर जानकारी प्राप्त करेगा, यह बयान सिवन ने किया।

इससे पहले वर्ष २०१३ में भारत ने पहला ‘मंगल’ अभियान शुरू किया था। सितंबर २०१४ में यह मंगलयान मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँचा था। इस मंगलयान के ऑर्बिटर को मात्र छह महीने कार्यरत रखने के नज़रिये से तैयार किया गया था। लेकिन अब सात वर्ष बाद भी यह ‘ऑर्बिटर’ बिल्कुल अच्छी तरह से कार्य कर रहा है। मात्र ४५० करोड़ रुपये खर्च का भारत का यह मंगल अभियान विश्‍व में सबसे कम खर्च की मंगल मुहिम साबित हुई थी। इस वजह से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की ओर देखने का विश्‍व का नज़रिया बदला था। पूरे विश्‍व को भारत की इस सफलता का संज्ञान लेना पड़ा था।

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