तिब्बतियों पर अत्याचार करनेवाले चीन के विरोध में अमरीका की तरह ही क़ानून बनायें – अमरीका के राजनीतिक अधिकारियों का जनतंत्रवादी देशों को आवाहन

वॉशिंग्टन – चीन के राजनीतिक अधिकारी दूसरे देशों में मुक्त रूप से संचार कर सकते हैं। फिर वही अधिकार चीन अन्य देशों के राजनीतिक अधिकारियों को कैसे नकार सकता है? ऐसा सवाल कर अमरीका के राजनीतिक अधिकारियों ने यह माँग की है कि चीन ने तिब्बत में अमरीका और अन्य देशों के राजनीतिक अधिकारियों को प्रवेश देना ही चाहिए। उसी समय, तिब्बत के बौद्धधर्मिय निवासी, झिंजियांग के इस्लामधर्मिय निवासी और चीन के ख्रिस्तधर्मिय निवासियों को इस देश में अत्याचार सहने पड़ रहे होने की कड़ी आलोचना अमरीका के राजनीतिक अधिकारियों ने की है। ऐसे चीन को रोकने के लिए अन्य देश अमरीका की तरह ही क़ानून बनायें, ऐसा आवाहन इन राजनीतिक अधिकारियों ने किया है।

जनतंत्रवादी

अमरीका ने तिब्बत के लिए नियुक्त किये हुए विशेष राजनीतिक अधिकारी रॉबर्ट ए. डेस्ट्रो ने एक व्हर्चुअल कार्यक्रम में, चीन तिब्बत पर ढा रहे अत्याचारों का पहाड़ा पढ़ा। अमरीका के राजनीतिक अधिकारियों को तिब्बत में प्रवेश नकारा गया था। उसके बाद अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनविरोधी क़ानून पारित कर चीन को झटका दिया था। अमरिकी अधिकारियों को तिब्बत में प्रवेश नकारनेवाले चीन के अधिकारियों को लक्ष्य करके, उन्हें अमरीका में प्रवेश नकारनेवाला यह क़ानून पास कर राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प ने चीन को फ़टकार लगाई थी।

अन्य जनतंत्रवादी मित्रदेश भी अमरीका का अनुकरण करके, चीन को रोकने के लिए ऐसे क़ानून बनायें, ऐसी माँग डेस्ट्रो ने की। चीन अपने देश के धार्मिक अल्पसंख्यांकों का गला घोंट रहा है। तिब्बटी भाषा, संस्कृती इनका संहार करने की भयंकर नीति पर चीन अमल कर रहा है। इतना ही नहीं, बल्कि तिब्बती बौद्धधर्मियांचे प्रमुख होनेवाले दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार भी चीन चाहता है। तिब्बत की विशेषतापूर्ण धार्मिक संस्कृती को अपनी कम्युनिस्ट पार्टी के दायरे में बंदिस्त करके उसे नष्ट करने के लिए चीन आक्रामक कदम उठा रहा है, ऐसी तीख़ी आलोचना डेस्ट्रो ने की।

चीन का यह दमनतंत्र केबल तिब्बतियों पर ही की जा रही है ऐसा नहीं, बल्कि अन्य समुदाय भी चीन की इस अन्यायकारी नीति के शिक़ार बर रहे होने का आरोप डेस्ट्रो ने किया। उघूरवंशिय इस्लामधर्मियों पर चीन बेतहाशा अत्याचार कर रहा है। इस समुदाय को धार्मिक स्वतंत्रता नकारी जा रही है। साथ ही, चीन के ख्रिस्तधर्मिय निवासियों को भी अन्याय सहना पड़ रहा है। क्योंकि चीन खुद के लिए अनुकूल होनेवाली नीति ख्रिस्तधर्मियों के चर्च पर थोंप रहा है, ऐसा दोषारोपण डेस्ट्रो ने किया।

चीन पर राज करनेवाली कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा अन्य किसी पर भी रखी हुई श्रद्धा अपने लिए घातक है, ऐसा चीन की हुक़ूमत को लगता है। इसी कारण धर्मश्रद्धा पर चीन आघात करते जा रहा है, ऐसी आरोपों की बौछार रॉबर्ट ए. डेस्ट्रो ने की। उसी समय, अन्य जनतंत्रवादी देश इस मोरचे पर एकजूट होकर चीन को रोकें, इस बात की आवश्यकता भी डेस्ट्रो ने ज़ोर देकर रखी। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का विरोध करनेवालों की तथा कोरोनावायरस के बारे में चीन ने छुपाई जानकारी सामने लानेवालों की चीन में भयंकर हालत हुई थी, इसकी भी याद डेस्ट्रो ने करा दी।

पिछले कुछ महीनों से चीन की तिब्बतविषयक नीतियों पर अमरीका ने कठोर प्रहार किये हैं। तिब्बत और तैवान को लेकर अत्यधिक संवेदनशील होनेवाला चीन इस कारण अधिक से अधिक असुरक्षित बनता चला जा रहा है। मुख्य बात यानी तिब्बत की मसला आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थित न हों, इसके लिए चीन आक्रामक दाँवपेंचों का इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन तिब्बती बौद्धधर्मियों के प्रमुख नेता होनेवाले दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने के बारे में चीन जो आक्रामकता दिखा रहा है, वह आन्तर्राष्ट्रीय आलोचना का विषय बन चुकी है।

इसके विरोध में दुनियाभर के तिब्बतियों ने आवाज़ उठाई है। उसी समय, तिब्बत से भी चीन के दमनतंत्र के विरोध में गतिविधियाँ की जा रहीं हैं। लेकिन यहाँ की ख़बरें दुनिया के सामने ना आयें, इसलिए चीन अपनी सारी ताक़त का इस्तेमाल अमानुषता से कर रहा होने के कारण, यहाँ चीन कर रहें अत्याचारों की ख़बरें दुनिया के सामने नहीं आ सकीं हैं।

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