क्रान्तिगाथा-६९

जालियनवाला बाग में घटित इस घटना का भारत में हर एक स्तर पर निषेध ही किया गया।

इस हत्याकांड का निषेध करने के लिए रविन्द्रनाथ टागोर ने अँग्रेज़ सरकार के द्वारा उन्हें प्रदान किया गया सर्वोच्च सम्मान (उपाधि) लौटा दी। लेकिन इस घटना से भारतीयों के मन में मातृभूमि को आज़ाद करने के ध्येय की चिंगारी और भी भड़क उठी। इस घटना के परिणाम स्वरूप पंजाब में अब भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम का चक्र तेज़ी से घूमने लगा।

जनरल डायर के शैतानी कुकर्म जालियनवाला बाग की घटना के बाद भी बंद नहीं हुए थे। इस घटना के विरोध में लोगों ने १४ अप्रैल १९१९ के दिन अपने दैनंदिन व्यवहार बंद रखें। लेकिन यह बात जनरल डायर को रास नहीं आयी। उसने हुक़्म दिया कि यदि लोग उसके आदेशों का पालन नहीं करेंगे और अपनी दुकानें आदि नहीं खोलेंगे, अपने दैनंदिन कार्य नहीं शुरू करेंगे, तो उन लोगों पर फिर से गोलियाँ चलायी जायेगी। उसने सख्ती से धमकाया कि नागरिकों को उसके हुक़्म की तामील करनी ही चाहिए।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़इसके बाद भी उसके कुकर्मों ने मानवता की सारी हदें पार कर दीं। जालियनवाला बाग की घटना घटित होने से पहले एक अँग्रेज़ी अध्यापिका पर जहाँ हमला हुआ था, उस रास्ते पर से हर एक भारतीय घुटनों के बल पर या पेट के बल पर रेंगते हुए चले, यह आदेश जनरल डायर ने दिया। उस रास्ते पर से सुबह ६ बजे से लेकर रात ८ बजे तक गुज़रनेवाले प्रत्येक भारतीय के लिए इस आदेश का पालन करना उसने बन्धनकारक कर दिया। रात के समय कर्फ्यु लगा हुआ होने के कारण इस आदेश का पालन करने का सवाल ही नहीं उठता था।

जनरल डायर का समर्थन करनेवाले कुछ लोगों ने उसे ‘भारत का पालनहार’ ऐसी उपाधि भी प्रदान कर दी। जनरल डायर के चरित्र से यह ज्ञात होता है कि जब वह इंग्लैंड़ लौटा, तब उसे २६००० पौंड़ स्टर्लिंग इतनी बड़ी रकम इनाम के रूप में दी गयी। उस समय के हिसाब से यह बहुत बड़ी रकम थी। सबसे अहम बात यह है कि इंग्लैंड़ के एक प्रमुख समाचार पत्र ने उसके लिये यह रकम जमा की थी। भारत में भी एक अँग्रेज़ के द्वारा इसी तरह की कोशिश की गयी और जनरल डायर को कुछ पैसे जमा करके इनाम के स्वरूप में दिये गये।

अपने एक शब्द से/हुक़्म से शैतानी हत्याकांड कराने वाले का इस तरह समर्थन करनेवालों की अक़्ल देखकर यक़ीनन ही हम स्तिमित हो जाते हैं।

आख़िर जनरल डायर अपने अन्तिम दिनों में पॅरालिसिस से व्याधिग्रस्त हो गया और इसी दर्दनाक हालत में १९२७ में उसकी मृत्यु हुई।

उसके लिए बहुत बड़ी रकम इकठ्ठा करनेवाले इंग्लैंड़ के एक मशहूर समाचार पत्र ने उसकी मौत के बाद भी गौरवपूर्ण शब्दों में उसका उल्लेख करके उसकी यादों को उजागर किया।

जालियनवाला बाग में हुए अमानुष हत्याकांड के दो दिन बाद ही पंजाब इलाके में एक स्थान पर इस घटना का निषेध करने के लिए लोगों द्वारा प्रदर्शन किये गये। अपने भाईयों – बहनों को इस तरह अमानवीय रूप से और कू्ररतापूर्वक मारा गया। इस घटना का निषेध तो भारतीय करेंगे ही; लेकिन भारत में स्थित ब्रिटिश सरकार को यह बात भी रास नहीं आयी। उन्होंने इन प्रदर्शनकारियों को वहाँ से दूर भगाने के लिए फिर एक बार बल का प्रयोग किया। इस बार पुलिस और हवाई जहाजों की सहायता से इन प्रदर्शनकारियों को दूर भगाने में अँग्रेज़ सरकार कामयाब हुई। लेकिन इस बलप्रयोग में फिर एक बार कुछ भारतीय लोग मारे गये और जख्मी हुए। करीब १२ लोग मारे गये और करीब २७ लोग जख्मी हुए।

जालियनवाला बाग में हुए इस हत्याकांड की स्मृति भारतीयों के मन में इसके बाद तो थी ही; या यूँ कह सकते है कि यह घटना भारतीयों के मन में और सीने में एक ताजे घाव की तरह थी।

इस हत्याकांड को अंजाम देने में प्रमुख रूप से सहभाग होनेवाले जनरल डायर की मृत्यु हो चुकी थी। लेकिन उसका समर्थन करनेवाला उस समय के पंजाब के ब्रिटिश लेफ्टनंट गव्हर्नर मायकल ओडवायर की जब मृत्यु हुई, तब फिर से भारतीयों के मन में इस घटना की स्मृति जागृत हुई।

जनरल डायर जितना ही मायकल ओडवायर के प्रति भी लोगों के मन में गुस्सा था। लेकिन २१ सालों के बाद उसका अंत हुआ।

मायकल ओडवायर की मृत्यु १९४० में हुई। १३ मार्च १९४० के दिन मायकल ओडायर का इस पृथ्वी पर से अस्तित्व नष्ट हुआ और इस घटना में एक भारतीय क्रांतिवीर का सक्रिय सहभाग था।

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