क्रान्तिगाथा-४९

‘गदर पार्टी’ के द्वारा एक समाचार पत्र भी प्रकाशित किया जाता था। इसका नाम भी ‘गदर’ ही था और वह हफ़्ते में एक बार (विकली) प्रकाशित किया जाता था। पंजाबी और उर्दू इन भाषाओं में प्रकाशित होनेवाले इस समाचार पत्र का पहला अंक १ नवंबर १९१३ के दिन सॅनफान्सिस्को से प्रकाशित किया गया।

‘गदर पार्टी’ के समाचार पत्र में जाहिर है कि भारत के आजादी के अनुकूल विषयों पर ही लेखन होता था। ‘गदर पार्टी’ का मूल उद्देश अँग्रेज़ सरकार से विद्रोह और उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता न करना यही था।

‘गदर’ समाचार पत्र के अंक भारत में आनेवाले ‘गदर पार्टी’ के सदस्यों के साथ भेजे जाते थे; क्योंकि गदर पार्टी के सदस्यों में से कई सदस्य अमरिका और कॅनडा में पढाई के लिए गये हुए छात्र थे। लेकिन दुर्भाग्यवश अँग्रेज़ों को इसकी भनक लगते ही अन्य भारतीय समाचार पत्रों की तरह इस पर भी बंदी लायी गयी। भले ही ‘गदर पार्टी’ की स्थापना अमरिका और कॅनडास्थित भारतीयों द्वारा की गयी हो; मगर अब उसने अन्य देशों में भी अपना जाल बुनना शुरू किया था और थोडे ही समय में मेक्सिको, जापान, सिंगापूर, थायलंड आदि देशों में ‘गदर पार्टी’ के कई सदस्य थे। गदर पार्टी के सदस्यों में लाला हरदयाळ, लाला ठाकुरदास धुरी, पण्डित जगतराम के साथ विष्णु गणेश पिंगळे, तारकनाथ दास, कर्तारसिंग सरभ, हरनामसिंग सैनी, पांडुरंग खानखोजे ऐसे कई नाम थे। साथ ही इन सदस्यों को रासबिहारी बोस, भाई परमानन्द जैसे कई लोगों का सहकार्य प्राप्त हो रहा था।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़ भारत में पहले ‘अमृतसर’ और बाद में ‘लाहोर’ से इसका कार्य चलता था। ‘गदर पार्टी’ के सदस्यों ने भारत में स्थित अँग्रेज़ों की सेना की छावनी में घुसकर वहाँ विद्रोह करवाने की एक योजना बनायी थी। इस योजना के अनुसार अमरिका से गदर पार्टी के कई सदस्य इसके लिए मदद करने निकल पडे थे। उन्होंने गुप्त रूप से भारत में प्रवेश भी किया। १८५७ में हुए विद्रोह की तरह विद्रोह करवाने की यह योजना थी। उसके अनुसार ब्रिटिश सेना में रहनेवाले भारतीय सैनिक अँग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह करनेवाले थे। एक साथ कई जगहों पर स्थित छावनीयों में यह विद्रोह होनेवाला था।

दुर्भाग्यवश ‘गदर पार्टी’ के भारत में विद्रोह करवाने की योजना की भनक अँग्रेज़ सरकार को लग गयी। इसके परिणामवश ‘गदर पार्टी’ के सदस्यों ने पूर्वनियोजित दिन में बदलाव भी किया। इसके बावजूद भी इस पार्टी के सदस्यों को गिरफ़्तार करने में अँग्रेज़ सरकार कामयाब रही। फिर उन पर मुकदमे चलाये गये। उसमें से एक मुकदमा ‘लाहोर कॉन्स्पिरसी केस’ के नाम से विख्यात है। इन क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहनेवाले लोगों को फिर फाँसी, उम्रकैद से लेकर ८ महिने से ४ साल तक कैद इस प्रकार की सजाएँ सुनायी गयी।

‘गदर पार्टी’ के सदस्यों में से एक रहनेवाले दरअसल गदर पार्टी की संकल्पना और स्थापना में जिनका अहम योगदान था, वे थे लाला हरदयाल। इनका जन्म अक्तूबर १८८४ में दिल्ली में हुआ। बचपन में ही उनके माता-पिता ने उनमें वीरता बढाने की दृष्टी से प्रयास किये थे। लाला हरदयाळ को यकीनन ही ‘संस्कृत’ भाषा से का़ङ्गी लगाव था, इसीके परिणामस्वरूप उन्होंने अपनी उच्चशिक्षा भी ‘संस्कृत’ भाषा में ही पूरी की। भारत में पदवी प्राप्त करने के बाद उन्हें ‘संस्कृत’ विषय के अध्ययन के लिए स्कॉलरशिप मिली और १९०५ में वे अगली पढाई के लिए लंडन रवाना हुए। अत्यंत बुद्धिमान ऐसे लाला हरदयाल लंडन में शामजी कृष्ण वर्मा और उनके सहकर्मियों के संपर्क में आ गये।

विदेश में ही अपने भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए कुछ करने के विचार उन्हें कुछ करने के लिए प्रेरित कर रहे थे। उन्होंने छात्रावस्था में ही ‘यंग मॅन इण्डिया असोसिएशन’ की स्थापना की थी। १९०८ में भारत लौटने के बाद वे स्वतन्त्रताप्राप्ति के कार्यों में जुट गये; लेकिन अँग्रेज़ सरकार द्वारा देशभक्तों को बंदी बनाये जाते हुए देखकर ज्येष्ठ देशभक्तों की सलाह से वे फिरसे भारत से बाहर गये। विभिन्न देशों में जाकर आखिर वे अमरिका पहुँचे। यहाँ पर ‘गदर पार्टी’ की स्थापना के साथ ही लाला हरदयालजी का कार्य तेजी से शुरू हुआ। भारत से बाहर रहकर भी वहाँ की भारतीय जनता में और भारत में स्थित भारतीय लोगों में क्रान्ति की ज्वाला को अधिक से अधिक तेज करने का काम उन्होंने किया। इसमें उनके द्वारा किये गये विभिन्न प्रकार के लेखन ने महत्त्वपूर्ण मदद की।

लाला हरदयाल पर भारतीय दर्शनशास्त्र का बहुत प्रभाव था। विश्‍व के जिन देशों में वे गये, वहाँ पर बोली जानेवाली भाषाएँ उन्होंने अल्प समय में ही सीख ली; इस प्रकार वे कुल १३ भाषाएँ बोलना जानते थे, ऐसा कहा जाता है। भारत के बाहर रहकर वहाँ से उनके द्वारा भारत की स्वतन्त्रता के लिए की जानेवाली कोशिशों के कारण उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिशें भी अँग्रेज़ सरकार द्वारा की गयी। आखिरकार १९३८ में अँग्रेज़ सरकार ने उन्हें भारत लौटने की अनुमति दे दी। उसके अनुसार उनकी तैय्यारियाँ भी शुरू हुई, दुर्भाग्यवश मार्च १९३८ में अमरिका में उनका देहान्त हो गया।

गदर पार्टी ने भारत की स्वतन्त्रता के लिए वैचारिक परिवर्तन के साथ साथ सशस्त्र क्रांती पर भी जोर दिया था, यह तो हमने देखा ही। सारांश अपनी मातृभूमी की स्वतन्त्रता के लिए गदर पार्टी के सदस्यों ने शस्त्रों के साथ कलम भी हाथ में उठायी थी।

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