क्रान्तिगाथा- ४२

इन क्रान्तिकारी संगठनों का कार्य बहुत ही गुप्त रूप से चलता था। इन संगठनों से जुड़े क्रान्तिवीर बहादुर और मौत से न डरनेवाले थे। क्योंकि वे जानते थे कि यह बलिदान अपनी मातृभूमि को विदेशियों की ग़ुलामी में से मुक्त करने के लिए स्वतन्त्रतायज्ञ में दी गयी आहुति है। अपनी मातृभूमि के लिए जान की भी परवाह न करनेवाले क्रान्तिवीरों को बनाने में भारत के अनेक मातृभूमिभक्त व्यक्तित्वों का प्रमुख योगदान था। सशस्त्र क्रान्ति के लिए गुप्तता बरतना यह जितना महत्त्वपूर्ण था, उतनाही ज़रूरी था, क्रान्तिवीरों को शस्त्र-अस्त्र चलाने का प्रशिक्षण देना।

कभी पिस्तौल तक भी न देखे हुए व्यक्तिको पिस्तौल चलाने के लिए प्रशिक्षित करना यह एक बड़ी चुनौती ही थी। लेकिन मातृभूमि के प्रेम से इस सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से कार्य करनेवालों ने इस शिवधनुष्य को सफलता से उठाया।

इन क्रान्तिवीरों के मन तो बलवान थे ही, साथ ही अपने शरीर को भी बलवान बनाने के लिए उन्होंने ‘बल-उपासना’ को भी अपनाया था।

और १९०९ में एक ऐसी घटना घटी, जिससे महज़ भारत के ही नहीं, बल्कि ब्रिटन स्थित अँग्रेज़ भी हिल गये।

विदेशियों की ग़ुलामी

भारतीयों की मातृभूमिभक्ति यह अँग्रेज़ों की दृष्टि से एक बड़ा गुनाह था। इस गुनाह के लिए अँग्रेज़ अलग अलग सज़ाएँ भी देते थे। आज़ादी की जंग में किसी के शामिल होने का शक तक यदि अँग्रेज़ों को होता था, तो उसे ग़िरफ्तार कर लिया जाता था। पूछताछ की जाती थी। कइयों को जेल में डालना, उनपर अत्याचार करना इस तरह की बातें तो अँग्रेज़ों के द्वारा सरासर की ही जा रही थीं। ‘आज़ादी की जंग लड़ना’ इस बात को गुनाह क़रार देकर अँग्रेज़ उन क्रान्तिकारियों को सज़ा सुनाते थे। यह सज़ा कभी काले पानी की होती थी तो कभी आजीवन कारावास की। वहीं किसी क्रान्तिकारी के किसी अँग्रेज़ अफसर के वध में शामिल होने का संदेह भी यदि अँग्रेज़ों को होता था, तो उससे कड़ी पूछताछ की जाती थी और उसे जल्द से जल्द सजा सुनायी जाती थी; वहीं, यदि किसी क्रान्तिकारी का उसमें सहभाग सिद्ध हो जाता था, तब उसे केवल ‘सज़ा ए मौत’ ही सुनायी जाती थी और उसे जल्द से जल्द अंजाम दिया जाता था।

अब तक ऐसे अनेक भारतीय क्रान्तिकारियों को उनकी अपनी मातृभूमि में यानी भारत में ही अँग्रेज़ों के द्वारा फाँसी की सज़ा सुनायी गयी थी और उसपर अमल भी किया गया था।

इंग्लैंड में पढ़ने गये जो भारतीय छात्र श्यामजी कृष्ण वर्माजी के संपर्क में आते थे, वे इन सब बातों से चीढ़ जाते थे। अपनी मातृभूमि पर और अपने देशवासियों पर हो रहे अत्याचार वे सह नहीं सकते थे।

अब तक उन्हें प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार खुदीराम बोस, कन्हाईलाल दत्त, सतिंदर पाल आदि को फाँसी दी गयी थी।

१ जुलाई १९०९ की शाम। ‘इंडियन नॅशनल असोसिएशन’ का वार्षिक उत्सव लंदन में मनाया जा रहा था। इस उपलक्ष्य में लंदन स्थित अनेक भारतीय एवं अँग्रेज़ इकठ्ठा हुए थे।

तभी कर्ज़न वायली नाम का एक अँग्रेज़ अफसर समारोह स्थल पर अपनी पत्नी के साथ आ गया। यह कर्ज़न वायली, उस वक़्त भारत के सचिव रहनेवाले अँग्रेज़ अफसर का सहायक सेना अधिकारी था। कर्ज़न वायली समारोह स्थल पर आ गया और साथ ही सुनायी दी, पिस्तौल में से चलायी गयीं गोलियों की आवाज़। १-२ नहीं बल्कि ६-७ गोलियाँ चलायी गयी थीं। जी हाँ, ये गोलियाँ कर्ज़न वायली पर ही चलायी गयी थीं और गोलियों ने अपना निशाना अचूकता से साध लिया था। कर्ज़न वायली गोलियाँ लगकर ढ़ेर हो चुका था। साथ ही एक भारतीय डॉक्टर को भी अपनी जान गँवानी पड़ी थी।

और जिसने अपनी रिव्हॉल्वर से गोलियाँ चलायी थीं, उसकी तरफ़ सबका ध्यान गया और वह युवक उसी रिव्हॉल्वर से खुदपर गोलियाँ चलाने ही वाला था कि उसे पकड़ लिया गया।

अब तक भारत की भूमि पर भारतीय क्रान्तिक्रारी अँग्रेज़ अफसरों पर हमला करते थे, लेकिन ब्रिटन की सरज़मीन पर अँग्रेज़ अफसर पर हमला करनेवाला वह युवक कौन था?

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