डॉ. कल्पना चावला

१९७१ में प्रथम अंतरिक्षयान प्रक्षेपित किया गया, इसके पश्चात् आनेवाले कुछ दशकों में इस क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति हुई है। इस तेजी से विकसित हो रहे वैज्ञानिक क्षेत्र में कल्पना चावला जैसी भारतीय वैज्ञानिक महिला ने अतुलनीय साहस भरा कार्य किया है।

डॉ. कल्पना चावला संशोधक कैसे? यह एक प्रश्न किसी के भी मन में उठ सकने की संभावना है। परन्तु उनका नाम अंतरराष्ट्रीय स्तरों के संशोधकों की सूची में दर्ज हैं। अंतरिक्ष उडान के संदर्भ में कल्पना चावला का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सही मायने में यदि देखा जाय तो पुरुष वैज्ञानिकों की तुलना में महिला वैज्ञानिकों की संख्या कम है। फिर भी जो गिनी-चुनी भारतीय महिलाएं हैं, उनमें डॉ. कल्पना चावला इस अंतरिक्षयात्री के रूप में काम करनेवाली महिला वैज्ञानिक का नाम हमेशा याद रहेगा। इस दृष्टि से वे काफी सौभाग्यशाली थीं, स्वयं किए हुए संशोधन की सच्चाई की पड़ताल करने का सुअवसर प्राप्त हुआ, इस एक महान महिला संशोधिका को।

पंजाब राज्य के कर्नाल नामक स्थान पर १७ मार्च १९६२ के दिन उनका जन्म हुआ। कर्नाल में प्राथमिक शिक्षा एवं चंदीगढ़ पंजाब के इंजीनियरिंग कॉलेज़ से ‘ऍरोनॉटिकल इंजीनियरिंग’ की उपाधि उन्होंने प्राप्त की। १९८२ के बाद उन्होंने अमरीका के टेक्सास महाविद्यालय से एरोस्पेस इंजीनियरिंग इस विषय में एम.एस. की उपाधि प्राप्त की। १९८८ में कोलोरॅडो महाविद्यालय से कल्पना चावला ने एरोस्पेस इंजीनियरिंग इस विषय में उपाधि प्राप्त की।

कल्पना चावला के पिता १९४७ में विभाजन के पश्चात भारत में आये। कर्नाल का घर छोड़कर यह परिवार दिल्ली में बस गया। उनके पिता का रबर टायर्स एवं पट्टे बनाने का व्यवसाय था, परन्तु कल्पना के मन में बचपन से ही दुनिया से कुछ अलग करने का विचार था। बचपन से ही उनके मन में अंतरिक्ष उडान के क्षेत्र में करियर करने की इच्छा थी और उसी समय से ही वह यान कैसे बनाये जाते हैं, अंतरिक्ष में उनका प्रक्षेपण कैसे किया जाता है, यान की रचना एवं उसके अवकाश में जाते समय विशेष तौर पर कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ घटित होती हैं, इन विषयों से संबंधित जानकारी हासिल करती रहीं। कल्पना कहती थीं कि उद्योगपति जे. आर. डी. टाटा एवं उनके विमान उडान का कौशल यह मेरी प्रमुख प्रेरणा थी। १९८८ से उन्होंने अमरीका के ‘नासा’ (नेशनल एरोनॉटिक्स अँड स्पेस ऍडमिनिस्ट्रेशन) के संशोधन विभाग में काम करना शुरु कर दिया। संशोधन यह उनके कार्य का मुख्य तत्त्व रहा। अंतरिक्ष यान में होनेवाले संगणक के उपयोग से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रयोग भी उन्होंने करके देखे। १९९३ में ‘ओवर सेट मेथडस्‌ इन कॅलिफोर्निया’ इस कंपनी में व्हाईस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत हो गईं। ‘एरोडायनॅमिक्स’ (डायनॅमिक्स अर्थात गतिशास्त्र जो घन, द्रव, अर्धद्रव एवं हवा इनके लिए थोड़ा भिन्न है) इन विषयों में किए गए सुधारों का उपयोग करके अंतरिक्ष के यान की कार्यक्षमता, अचूकता, वेग आदि विषयों के संदर्भ में उनपर होनेवाली जिम्मेदारी को उन्होंने बाखूबी निभायी।

अमरीका के ह्युस्टन में कल्पना चावला को विमानोड्डाण का प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ। १९८३ में जीन पेरी हॅरिसन विमानोड्डाण के प्रशिक्षक एवं वैमानिक शास्त्र के संदर्भ में लेख लिखनेवाले लेखक के साथ वे विवाहबद्ध हो गईं। उनके मार्गदर्शन के अंतर्गत वे एक अच्छी वैमानिक भी बन गईं। ‘स्पेस शटल कोलंबिया’ एस. टी. एस. ८७ इस अंतरिक्षयान मुहिम में एक महत्त्वपूर्ण अंतरिक्षयात्री के तौर पर उनपर अनेकों तकनीकी जिम्मेंदारियां सौंप दी गईं थीं। पांच वर्षों की अवधि में ‘नासा’ ने कल्पना को दो बार अंतरिक्ष उड्डाण में सहभागी होने की अनुमति दी थी। एस. टी. एस. १०७ नामक इस यान से संबंधित कल्पना चावला सहित अन्य अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी एवं अंतरिक्ष विज्ञान संबंधित लगभग ८० सफल प्रयोग किए। परन्तु इसी अंतरिक्ष संशोधन मुहिम में कल्पना का एवं अन्य छह लोगों का दु:खद अंत हो गया। (०१-०२-२००३)

२००४ से कर्नाटक सरकार की ओर से किसी एक युवा संशोधिका को ‘वैज्ञानिक कल्पना चावला पुरस्कार’ दिया जाता है। फरवरी २००३ में भारत के प्रधानमंत्री की ओर से ‘मेटसॅट’ ‘METSAT’ नामक इस उपग्रह को कल्पना-१, कल्पना-२ ये नाम दिए गए हैं। अमरीका के साथ साथ भारत की अनेक शैक्षणिक संस्थाओं के सभाग्रहों को, छात्रावासों आदि को कल्पना चावला का नाम दिया गया है। अमरीका की सात शिखर वाली पर्वतमाला को इन सात अंतरिक्ष यात्रियों का नाम दिया गया। आय.आय.टी. (खरगपूर) नामक इस संस्था ने ‘कल्पना चावला स्पेस टेक्नॉलॉजी विभाग’ उनके स्मरणार्थ शुरू किया गया।

कल्पना चावला ने अनगिनत भारतीय युवाओं, खास कर युवा महिला वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष संशोधन के लिए प्रेरणा प्रदान करने का काम किया है। ऐसे विशेष व्यक्ति को हम ‘दीपस्तंभ’ अथवा ‘ऊर्जा-स्त्रोत’ कह सकते हैं।

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