जोहान्स गटेनबर्ग

Johannes Gutenbergमानव संस्कृति के कई हुनर हैं| इन में से एक है लेखनकला, जो कि एक महत्वपूर्ण हुनर है| जीवन में प्राप्त की हुई जानकारी, संपादित अनुभव, विचारों को अन्य लोगों तक पहुंचाने के लिए लेखनकला का उपयोग होता है| तकरीबन जिस दौर में समाज के लिए उपयुक्त संशोधन होते रहे उसी दौर में मुद्रण तंत्र की भी खोज होने की वजह से ज्ञानप्रसार में बडी आसानी हुई|

जर्मन संशोधक जोहान्स गटेनबर्ग को आधुनिक मुद्रणकला का जनक माना जाता है| कहा जाता है कि, चिनी संशोधक पी-चेंग ने यह इस कला की खोज की थी, मगर वे गुजर गए और उनके निधन के बाद उनका टाईप अज्ञात ही रहा| तत्पश्‍चात जोहान्स गटेनबर्ग द्वारा खोजा हुआ मुद्रण टाईप इस्तेमाल के योग्य माना गया और मुद्रणकला में एक क्रांति छा गई|

जोहान्स गटेनबर्ग का जन्म सन १३९५ में जर्मनी के मैनिज शहर में एक प्रतिष्ठित घराने में हुआ| बेसब्र स्वभाववाले जोहान्स एक सुनार संघटना के सदस्य थे| मैनिज की सत्ता एवं उस संघटना में विवाद निर्माण हो गया, जिसकी वजह से जोहान्स  मैनिंज छोडकर चले गए| ट्रासबर्ग में वे गुप्तरूप से संशोधन करने लगे|

छपाई संशोधन के कार्य में गटेनबर्ग के दो भागीदार थे| उन भागीदारों के रिश्तेदारों ने किसी कारणवश उन पर मुकदमा थौंप दिया था| जब उन भागीदारों ने उस मुकदमें में गटेनबर्ग को भी घसीटा तो उनकी छपाई संशोधन की पोल खुल गई| गटेनबर्ग ढांचा बनाने का कार्य किया करते थे|

तत्पश्‍चात गटेनबर्ग ने छपाई के लिए सुलभ यंत्रणा बनाई, तथा कीले जोडने का तंत्र भी विकसित किया| मुद्रा, मातृकाएं एवं सीसे का संयुक्त उपयोग करके टिकाऊ खुले अक्षर बडी संख्या में बनाना और प्रत्येक अक्षर दिखने में एकसा होना यह युरोप में मुद्रणलेखा की जरुरत थी| यह जरुरत गटेनबर्ग ने पूरी की| इस के लिए जरुरी विशेष यंत्र का निर्माण भी गटेनबर्ग ने किया| इन सभी घटनाओं की वजह से छपाई के कार्य को गति मिली और इस की सुन्दरता भी बढी|

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स्वभाव से संशोधक लोग व्यवहार में कमजोर होते हैं, इस बात को गटेनबर्ग ने भी अनुभव किया| सन १४४४ में वे अपनी जन्मभूमि मैनिज गए और उन्होंने तय किया कि वे अपने नए छपाईतंत्र का उपयोग करके पैसा कमाएंगे| इस कार्य के लिए उन्होंने कर्ज भी लिया| नतीजा यह हुआ कि नुकसान की वजह से उनका छपाईखाना भी कर्जदार के सुपुर्द करना पडा| गटेनबर्ग का कार्य पूरा होनेवाला था, मगर उस से उन्हें समृद्धी नहीं मिलनी थी| उनके नसीब में वित्त हानी ही लिखी थी|

सन १४५६ में गटेनबर्ग को उनकी अद्वितीय कारीगरी का श्रेय मिला और ‘आधुनिक छपाई तंत्र का प्रणेता’ के रूप में विश्‍व ने उन्हें पहचाना| Johannes Gutenberg - Printerसन १४६० में उन्होंने ‘कैथोलिकॉन’ नामक बहुत सुन्दर ग्रंथ लिखा| इस ग्रंथ को कलात्मकता का उत्तमा नमूना माना जाता है|

गटेनबर्ग का आखरी समय बहुत कष्टदाई साबित हुआ| मैनिज के आर्चबिशप से मिलनेवाले निवृत्ति वेतन पर उन्हें निर्भर करना पडा| व्यवहार को न समझ पाने की वजह से उनकी व्यावसायिक सङ्गलता उन से छीनी गई| ऐसी कठिन स्थिति में सन १४६८ में उनका निधन हो गया| एक निरंतर कार्यशील व्यक्तित्व शांत हो गया| एक लगन के बिना पर जीवन व्यतीत करनेवाले गटेनबर्ग का व्यावहारिक जग में शोकान्त हो गया|

इस के बाद के दौर में छपाई यंत्रणा में उपयुक्ततानुसार विभिन्न बदलाव हुए| बीसवीं शताब्दी के अन्त में कम्प्युटरी क्रांति की वजह से छपाई तंत्र ने अपना रंगरूप ही बदल लिया| ऐसा होते हुए भी मुद्रणकला के जनक  के रूप में गटेनबर्ग को ही पहचाना जाता है|

भारत में पहली बार मुद्रण तंत्र का इस्तेमाल सन १५५६ में किया गया|

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