औद्योगिक क्रांति के मार्गदर्शक जेम्स वॅट (१७३६ – १८१९)

छोटे बच्चे के हाथ में यदि कोई खिलौना दे दिया जाए तो वह उसके साथ खेलने की अपेक्षा उसे खोलने में अथवा उसकी तोड़-फोड़ करने में अधिक दिलचस्पी रखता है। अक़सर उसके द्वारा की गयी इस तोड़-फोड़ को बचपन के ही खेल का एक पहलू मानकर नज़र अंदाज कर दिया जाता है। मगर बचपन की यह तोड़-फोड़ कुछ बच्चे बड़े हो जाने पर कुतुहल पूर्वक अथवा अपने अध्ययन का ही एक हिस्सा कहकर आगे बढ़ती रहती है। इसी अध्ययन अथवा कुतूहल की भावना से आगे चलकर कुछ संशोधकों का निर्माण होता है जो इस दुनिया में काफ़ी बड़ा बदलाव ले आते हैं। अठारहवी सदी में इसी प्रकर की घटना से प्रगति की दिशा में आगे बढ़ने वाले और यूरोप में औद्योगिक क्रांति के मार्गदर्शक माने जाने वाले श्रेष्ठ तंत्रज्ञ का नाम है ‘जेम्स वॅट’।

james_watt

जेम्स वॅट का नाम लेते ही इस से मुख पर एक नाम उभर आता है और वह ही भाप का इंजन। बरतन में गरम करने के लिए रखा गया पानी तथा भाप के कारण उस बरतन के ऊपर रखा गया बरतन डगमगाने लगा। यह थी बचपन में पढ़ी गई पुस्तक में दी गई घटना इसी के ही आधार पर ही जेम्स वॅट ने भाप का इंजन बनाने की बात मन में ठान ली थी। मगर प्रत्यक्ष में यदि इनके जीवन चरित्र का अध्ययन किया जाये तो यह बात तो बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि उन्होंने स्वयं केवल एक संशोधक अथवा तंत्रज्ञ के रूप में दी जानेवाली औद्योगिक क्रांति के जनक की उपाधि को ठुकरा दिया था।

स्कॉटलैंड के ग्लासको के करेब बसे ग्रीनॉक नामक गाँव में १९ जनवरी १७३६ में जेम्स वॅट का जन्म हुआ था। उनके पिताजी का जहाज से संबंधित व्यवसाय था। जेम्स की माँ उस समय की एक घरेलू मग़र सुशिक्षित महिला थीं। बचपन से ही कमजोर होने के कारण जेम्स की पढ़ाई कुछ अधिक नहीं हुई थी। मग़र उनकी माँ ने उन्हें घर पर ही पढ़ना-लिखाना शुरु कर दिया।

पिता का व्यवसाय यंत्रों से संबंधित होने के कारण जेम्स के मन में भी यंत्रों के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा। इससे हुआ यह कि जेम्स ने आगे चलकर रूढ़ शिक्षा छोड़कर औद्योगिक प्रशिक्षण की ओर अपना ध्यान केन्द्रित कर दिया। परन्तु उनकी कमज़ोर शारिरीक अवस्था के कारण ही साल भर के ही उन्हें अपने इस प्रशिक्षण कार्य को स्थगित करना पड़ा। सात वर्ष पूर्ण न कर पाने के कारण ‘ग्लॅसगो गिल्ड ऑफ हैमरमेन’ नामक इस नियंत्रक संस्था ने उनकी इस यांत्रिक व्यवसाय संबंधित अर्जी को नामंजूर कर दिया।

मगर यंत्र का लगाव होने के कारण जेम्स ने अपनी कोशिशें शुरु ही रखी थीं। सौभाग्यवश ग्लासगो महाविद्यालय के एक प्राध्यापक के कानों तक यह बात जा पहुँची। जेम्स के कौशल एवं यंत्रों के प्रति होनेवाले विशेष लगाव को नज़र में रखते हुए जेम्स को ग्लासगो महाविद्यालय की यांत्रिक शाला में काम करने की अनुमति प्रदान कर दी गई। जेम्स ने यंत्रशाला में तैयार यंत्रों की मरम्मत आदि करने का काम करना, एक संशोधक की दृष्टि से उसकी ज़रूरत के अनुसार नये उपकरण आदि बनाकर देना इस प्रकार का काम करना आरंभ कर दिया।

ग्लासगो महाविद्यालय के एक प्राध्यापक रॉबिन्सन ने १७६३-६४ के दरमियान ‘न्युकोम्ब’ कंपनी का एक भाप पर चलनेवाले इंजन मरम्मत के लिए आया। न्युकोम्ब यह उस समय की भाप का इंजन बनानेवाली अग्रगण्य कंपनी के रूप में जानी-पहचानी जाती थी। जेम्स के पास मरम्मत के लिए आया हुई न्युकोम्ब का इंजन कोयले की खान में इकठ्ठा हो जानेवाले पानी को बाहर निकालने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। इस इंजन में भाप का उचित प्रकार से उपयोग न करने के कारण काफ़ी बड़े पैमाने पर उष्णता एवं भाप यूँ ही बेकार चला जाता था। भाप की शक्ति का उपयोग करने की बजाय वातावरण के दबाव से इंजन में डंडा (पिस्टन) ढ़केला जाता था।

जेम्स वॅट ने इंजन के मूल कमी को दूर करने के लिए अपने कौशल को दाँव पर लगा दिया। भाप की उष्णता शक्ति को यूँ ही बेकार नहीं जाने देना है तो भाप से ही उसके पिस्टन धकेलने पर उस हिस्से की भाप दूसरी ओर ले जाकर उसे ठंड़ा करना चाहिए। इससे होगा यह कि उसे पुन: गर्म करने पर भाप की शक्ति बेकार नहीं होने पायेगी, यह बात वॅट की समझ में आ चुकी थी। न्युकोम्ब के भाप के इंजन में भी इसी तत्त्व का उपयोग करके जेम्स ने उसकी मरम्मत करके उसे ठीक कर दिया। इसी इंजन के ही आधार पर भाप की शक्ति का उपयोग करके और भी अधिक कार्यक्षम इंजन बनाने की प्रेरणा उन्हें प्राप्त हुई।

लेकिन उस समय मशीन के पिस्टन एवं सिलिंडर बनाना यह कोई आसान काम नहीं था । लोहे का काम करनेवाले कारीगर आज के दौर के समान कुशल नहीं थे। वे केवल सीधा-सादा लुहार का काम करना जानते थे। मशीन के लिए आवश्यक रहने वाली आवश्यक कुशलता उनके पास नहीं थी। मगर फिर भी जेम्स वॅट ने उनके अपने स्वंय के कल्पनानुसार भाप के इंजन की रूपरेखा तैयार कर ली और उसी रूपरेखा के ही अनुसार स्वयं परिश्रम करके स्वतंत्र रूप में सुधार करके भाप का इंजन तैयार किया।

इसका पेटंट प्राप्त करने की पद्धति कुछ पेंचीदा थी। लोकसभा तक इसके कागज़ाद देने पड़ते थे। इन सभी झंझटों की वजह से वॅट को काफ़ी पैसा भी खर्च करना पड़ा। आठ वर्षों तक वॅट को सर्व्हे का ही काम करना पड़ा। मगर बर्मिंगहैम के करीब होनेवाले मैथ्यु बोल्टन नामक कारखाने के मालिक ने जेम्स वॅट की सहायता करने की उत्सुकता दर्शायी। इसके पश्‍चात् बोल्टन वॅट नामक की स्थापना करके नये भाप के इंजनों की निर्मिती शुरु हुई। इस कंपनी ने १७७६ में प्रथम विकसित इंजन तैयार किया। इसके पश्‍चात् भी अधिकाधिक सुधार सहित इंजनों की निर्मिति करने में जेम्स वॅट व्यस्त रहे।

वॅट ने और भी अधिक सुधार उसमें किया। विशेष तौर पर गति पर नियंत्रण रखने के लिए केंद्रोत्सर प्रेरणा से काम करनेवाले नियंत्रक (सेंट्रीफ्युगल गर्व्हनर) इस इंजन में लगाया गया। वॅट द्वारा निर्मित किए गए भाप के इंजन का उपयोग सर्वत्र होने लगा। जेम्स वॅट ने अनेक प्रकार के नये यंत्र, उपकरण विकसित किए। दूरबीन की सहायता से अंतर का नाप-तोल करना, अक्षरों की नकल करना, तेल के दीपक में सुधार लाना इस प्रकार के अनेक वस्तुओं में भी उन्होंने यांत्रिक ज्ञान के आधार पर अनेक सुधार किए। कपड़े निचोड़ने के उपकरण जैसे अनेक छोटे-बड़े भाप पर चलनेवाले उपकरण उन्होंने बनाये। यूरोप की औद्योगिक क्रांति के दौरान इन सुधारों के मार्गदर्शन में उनका काफ़ी महत्त्वपूर्ण योगदान साबित हुआ। वॅट के कार्य से प्रेरणा लेकर अनेक संशोधनकर्ताओं ने उसी प्रकार के यांत्रिक ज्ञान से यांत्रिक सुधार लानेवाले कारखानों की स्थापना करके औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा दिया।

आरंभिक काल में ‘ग्लॅसगो गिल्ड ऑफ हैमरमेन’ जैसी संस्था की ओर से सदस्यत्व देने से इंकार किये गए जेम्स वॅट को आगे चलकर ‘रॉयल सोसायटी ऑफ एडिनबर्ग’ एवं ‘रॉयल सोसायटी ऑफ लंडन’ का माननीय सदस्यत्व प्रदान किया गया था। हर एक काम पूरा कर लेने पर ‘क्या इस में और भी कुछ सुधार करना संभव है’ इस तरह की थी वॅट की वृत्ति और यह आदत जीवन की अंतिम घड़ी तक उन में कायम रही। इसी प्रवृत्ति के साथ कार्य करते हुए उम्र के ८३ वे वर्ष हेथफिल्ड नामक स्थान पर २५ अगस्त, १८१९ में जेम्स वॅट ने इस दुनिया से अंतिम विदाई ले ली।

Leave a Reply

Your email address will not be published.