भारत-ईरान-उज़्बेकिस्तान की त्रिपक्षीय बैठक के बाद भारत-ईरान संबंध सामान्य होने के संकेत

नई दिल्ली – भारत-उज़्बेकिस्तान के व्यापारी यातायात के लिए ईरान के छाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल करने के मुद्दे पर तीनों देशों की सचिव स्तर की बैठक सोमवार के दिन हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष शावकत मिज़ियोयेव ने ११ दिसंबर के दिन फोन पर बातचीत की थी। इसके मात्र कुछ दिनों में भारत-ईरान-उज़्बेकिस्तान की त्रिपक्षीय चर्चा हुई है। इस वजह से भारत-उज़्बेकिस्तान व्यापार को गति मिलेगी। साथ ही भारत-ईरान संबंध भी सामान्य होने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। यह दोनों देशों के लिए सुचिन्ह होने का दावा विश्‍लेषक कर रहे हैं।

अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं। इस वजह से ईरान से ईंधन खरीदनेवाले सभी देशों के सामने बड़ी मुश्‍किलें खड़ी हुई थीं। इन प्रतिबंधों की वजह से भारत ने भी ईरान से ईंधन खरीदना बंद किया था। इस पर ईरान से तीव्र प्रतिक्रिया भी उमडी थी और भारत जैसा देश अमरीका के दबाव में आना खेद की बात है, यह प्रतिक्रिया ईरान ने व्यक्त की थी। साथ ही ईरान के छाबहार बंदरगाह के प्रकल्प से भारत को बाहर निकाला गया है, ऐसी खबरें भी प्रसिद्ध हुई थीं।

अमरीका और इस्रायल के साथ ईरान का तनाव बढ़ा है और ऐसे में चीन ने ईरान में करीबन 400 अरब डॉलर्स निवेश करने का ऐलान किया था। इस वजह से भारत का ईरान पर बना प्रभाव खत्म होगा और चीन एवं पाकिस्तान ईरान का भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकेंगे, ऐसे दावे करना कुछ लोगों ने शुरू किया था। लेकिन, ऐसी स्थिति में भी भारत ने ईरान के साथ संबंध सुधारने की कोशिश जारी रखी थी। सितंबर में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ‘एससीओ’ की बैठक के लिए रशिया पहुँचे थे। वहां से लौटते समय उन्होंने ईरान की यात्रा भी की। इसके ज़रिये भारत ने अपनी विदेश नीति में ईरान की होनेवाली अहमियत रेखांकित की, ऐसी चर्चाएं होने लगी थी।

ज्यो बायडेन अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी जल्द ही स्वीकारेंगे, यह बात अभी स्पष्ट हुई है। अपने चुनावी प्रचार में बायडेन ने राष्ट्राध्यक्ष होने पर ट्रम्प ने ईरान के साथ तोड़ा हुआ परमाणु समझौता नए से करने का ऐलान किया था। यह बात भारत-ईरान संबंधों को लाभ पहुँचानेवाली साबित हो सकती है। इस पृष्ठभूमि पर भारत जल्द ही ईरान से ईंधन खरीद सकेगा, यह संकेत भी दिए जा रहे हैं। खास तौर पर ईरान के छाबहार बंदरगाह के प्रकल्प से भारत को बाहर निकलने का सवाल ही नहीं बनता, यह दावा भी कुछ विश्‍लेषकों ने किया है।

ईरान में चीन कर रहे 400 अरब डॉलर्स निवेश का भारत-ईरान संबंधों पर विपरित असर नहीं पड़ेगा क्योंकि, चीन का यह निवेश अगले 25 वर्षों में होगा। पूरी तरह से चीन पर निर्भर रनेवाली विदेशनीति निर्धारित करना अपने हित में नहीं है, इस बात का अहसास ईरान को है। इसी कारण परंपरागत मित्रदेश भारत के साथ जारी संबंध ईरान कभी भी दांव पर नहीं लगाएगा, बल्कि इन संबंधों का इस्तेमाल अपनी नीति को संतुलित रखने के लिए करेगा, यह अनुमान कुछ विश्‍लेषकों ने व्यक्त किया है। इस वजह से अगले दिनों में भारत-ईरान सहयोग बढ़ेगा और ट्रम्प के कार्यकाल में हुआ नुकसान दूर करने के लिए दोनों देश तेज़ कदम उठाएंगे, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना है।

ईरान से ईंधन की आपूर्ति सुनिश्‍चित होने के बाद इससे भारत की ईंधन सुरक्षा को बड़ा लाभ होगा। साथ ही भारतीय उत्पादों के लिए ईरान का बाज़ार भी खुल जाएगा और ईरान के छाबहार बंदरगाह की वजह से अफ़गानिस्तान के रास्ते मध्य-एशियाई देशों के साथ भारत का व्यापार शुरू हो सकेगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा लाभ मिल सकता है। इस वजह से भारत के ईरान के साथ संबंध बड़ी अहमियत रखते हैं और यह संबंध सामान्य होना भारत के लिए बड़ी सकारात्मक बात साबित होगी।

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