भारत-चीन संबंधो के सामने जिनपिंग के राष्ट्राध्यक्ष पद की चुनौती – चीन के विश्लेषक का दावा

बीजिंग: शी जिनपिंग इन के राष्ट्राध्यक्ष पद के कार्यकाल की अवधि की मर्यादा हटाने के बाद, उनके राजनैतिक परिणामों की चर्चा चीन के विश्लेषक करने लगे हैं| चीन के इस निर्णय का चीन-भारत संबंधों पर परिणाम होगा, ऐसा दावा विश्लेषकों ने किया है| राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) परियोजना के लिए पहल की है और यह योजना उनका उद्देश्य माना जाता है और भारत का इस योजना को विरोध होकर, यह विरोध भारत और चीन के संबंधों के आड़ आ सकता है, ऐसा विश्लेषकों का कहना है|

‘चायना इंस्टिट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस’ के संचालक होने वाले हु शिशेंग ने भारत और चीन के संबंधों के सामने बड़ी चुनौती होने का कड़ा मत व्यक्त किया है| चीन के कम्युनिस्ट सल्तनत में हर राष्ट्राध्यक्ष को केवल दो सत्र के कालखंड की मर्यादा दी थी| डेंग शिओपिंग इनके हाथ चीन के सभी अधिकार होते हुए भी उन्होंने काल मर्यादा का बंधन लाया था| पर शी जिनपिंग इनके राष्ट्राध्यक्ष पद के कार्यकाल के दूसरे सत्र में चीन के कम्युनिस्ट पक्ष ने यह बंधन हटाया है| इसकी वजह से जिनपिंग के होने तक वह चीन के राष्ट्राध्यक्ष रहेंगे, यह बहुत बड़ा निर्णय होकर उसके दूरगामी परिणाम दिखाई देंगे ऐसा दावा चीन के विश्लेषक करने लगे हैं|

विशेषरूप से भारत के साथ चीन के संबंधों पर उसका बड़ा परिणाम होगा, क्योंकि राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने ‘ओबीओआर’ परियोजना के लिए पहल की है और यह प्रकल्प सफल हो इसके लिए विशेष प्रयत्न किए जा रहे हैं| इसकी वजह से इस प्रकार को विरोध करने वाले भारत के साथ चीन के संबंध अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं, ऐसे संकेत शिशेंग ने दिये है| चीन का यह महत्वाकांक्षी प्रकल्प पाकिस्तान व्याप्त कश्मीर से जा रहा है और यह अपना सार्वभौम भूभाग होने का भारत का दावा है| इसकी वजह से अपने सार्वभौमत्व को चुनौती देने वाले इस प्रकल्प को भारत से कड़ा विरोध है और यह प्रकल्प सफल करने का उद्देश्य सामने रखने वाले चीन के राष्ट्राध्यक्ष को भारत का विरोध मंजूर नहीं होगा, इसपर शिशेंग ने ध्यान केंद्रित किया है|

ओबीओआर यह इस क्षेत्र के देशों को जोड़ने वाली योजना होकर उसका राजनैतिक हेतु से विरोध ना किया जाए, ऐसा चीन ने भारत को आवाहन किया है| तथा इस प्रकार की वजह से चीन की कश्मीर के बारे में भूमिका नहीं बदलेगी, ऐसा आश्वासन भी चीन भारत को दे रहा है| इसके बाद भी भारत ने चीन के इस प्रकल्प के बारे में अपनी भूमिका नहीं बदली है| भारत के शामिल होने तक यह प्रकल्प सफल नहीं होगा, ऐसा विशेषज्ञों का कहना है|

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