चिनी ‘एफपीआय’ पर नियंत्रण के लिए भारत की तैयारी

नई दिल्ली,  (वृत्तसंस्था) – कोरोनावायरस की महामारी के कारण निर्माण हुई परिस्थिति का गैरफ़ायदा उठाकर चीन को, भारतीय कंपनियों का अधिग्रहण करने का मौका ना मिलें इसलिए पिछले महीने में भारत सरकार ने ठेंठ विदेशी निवेश (एफडीआय) के नियम में बदलाव किए थे। अब ‘फॉरेन डायरेक्ट पोर्टफोलिओ इंन्व्हेस्टमेन्ट’ (एफपीआय) के माध्यम से चीन ऐसीं ही कोशिशें ना करें, इसलिए ‘एफपीआय’ नियम भी सख़्त करने की तैयारी सरकार कर रही है। चीन की १६ और हाँगकाँग की १११ वित्तसंस्थाएँ भारत में ‘एफपीआय’ के तौर पर पंजीकृत होकर, उनके भारत में होनेवाले निवेश पर सरकार कड़ी नज़र रखे है। इस ‘एफपीआय’ के चोररास्ते से भारतीय कंपनियों पर कब्ज़ा करने की कोशिशें नाक़ाम करने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाये जा रहे हैं।

किसी भी देश में विदेशी निवेश दो मार्गों से आता है। एक ठेंठ विदेशी निवेश (एफडीआय) और दूसरा विदेशी पोर्टफोलिओ निवेश ( एफपीआय)। ‘एफडीआय’ के तहत विदेशी कंपनियाँ किसी परियोजना में अथवा कंपनी में ठेंठ निवेश करती हैं और उसमें से कुछ हिस्सा ख़रीदतीं हैं। ऐसा निवेश दीर्घकालीन होता है। साथ ही, उस उस देश के एवं क्षेत्र के नियमों के अनुसार विदेशी कंपनियाँ कितना हिस्सा रख सकतीं हैं, यह तय होता है। भारत में कुछ क्षेत्रों में १०० प्रतिशत निवेश की भी अनुमति है; वहीं, कुछ क्षेत्रों में ४९ प्रतिशत निवेश को मंज़ुरी है। साथ ही, इस निवेश को अचानक निकाला जा नहीं सकता।

वहीं, ‘एफपीआय’ यह भी हालाँकि विदेशी निवेश का मार्ग है, फिर भी ‘एफपीआय’ किसी कंपनी में १० प्रतिशत से अधिक निवेश नहीं कर सकते। साथ ही, यह निवेश शेअर्स और बॉण्ड के रूप में होता है। ‘एफपीआय’ अपने निवेश को नफा और नुकसान देखकर अचानक निकाल सकते हैं। इस कारण इस निवेश का बड़ा असर कैपिटल मार्केट पर दिखायी देता है।

सरकार ने अप्रैल महीने में, पड़ोसी देशों से आनेवाले ‘एफडीआय’ के लिए ‘ऑटोमेटिक रूट’ बंद करके, हर निवेश के लिए सरकार की पूर्वअनुमति बंधनकारक की थी। ये बदलाव केवल चीन को मद्देनज़र रखते हुए किये गए थे, यह स्पष्ट है। संक्षेप में, भारतीय कंपनियों का अधिग्रहण करने की चीन की चाल नाक़ाम करने के लिए सरकार ने यह निर्णय किया था।

लेकिन ‘एफडीआय’ के नियम सख़्त किये जाने के बाद, ‘एफपीआय’ मार्ग से होनेवाले निवेश का गैरफायदा चिनी कंपनियाँ उठा सकतीं हैं, ऐसा सरकार को शक़ है। ‘एफडीआय’ के ज़रिये भारतीय कंपनियों को अधिग्रहित करने में असफल रहे विदेशी निवेशकार ‘एफपीआय’ का इस्तेमाल करके ऐसा अधिग्रहण ना करें, इसलिए सरकार ‘एफपीआय’ के नियम सख़्त करने का विचार कर रही है। १० प्रतिशत से अधिक चिनी निवेश होनेवालीं अथवा चीन की मालिक़ियत होनेवालीं कंपनियाँ, भारत सरकार की मंज़ुरी के बिना अधिग्रहण ना करें, ऐसी सरकार की कोशिश है।

इसके लिए वित्तमंत्रालय और ”डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री अँड इंटर्नल ट्रेड” (डीपीपीआयआयटी) यह कंपनी क़ानून में होनेवाली ‘बेनिफिशियल ओनरशिप’ की व्याख्या बदलने की तैयारी में हैं। हाल की ‘बेनिफिशियल ओनरशिप’ की व्याख्या के कारण, ‘एफडीआय’ करनेवालीं कंपनियों को अथवा वित्तसंस्थाओं को बहुत प्रकारों से छूट मिलती है। साथ ही, भारतीय शेअर मर्केट पर नियंत्रण रखनेवाली ‘सेबी’, चिनी ‘एफपीआय’ के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा कर रही है। इस जानकारी का इस्तेमाल चिनी ‘एफपीआय’ के मौक़ापरस्त निवेश पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए हो सकता है, ऐसी भी ख़बर है।

कोरोनावायरस के कारण कई कंपनियों की आर्थिक संरचना ढ़ह रही है। कई कंपनियों के शेअर्स में गिरावट हुई है। चीन द्वारा इस मौके का फ़ायदा उठाया जायेगा और चिनी कंपनियाँ देशी कंपनियों को अधिग्रहित करेंगी, ऐसा डर विभिन्न देशों के विश्लेषकों ने ज़ाहिर की थी। इसलिए ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, स्पेन, इटली और अन्य कुछ देशों ने ‘एफडीआय’ नियम सख़्त किये थे। भारत में भी ‘एचडीएफसी’ के १.७५ करोड़ शेअर्स ‘पीपल्स बँक ऑफ चायना’ ने खरीदने के बाद, सरकार ने एफडीआय नियमों में बदलाव करने का निर्णय किया था। चीन की बँक ने इन शेअर्स की खरीद करने से पहले ‘एचडीएफसी’ के शेअर्स ३५ प्रतिशत से फिसले थे। इससे चीन की मौक़ापरस्त नीति अधिक स्पष्ट रूप में सामने आयी थी।

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