भारत को अमरीका से ‘एनएसजी’ सिलसिले में, ‘पॅरिस जलवायु परिवर्तन समझौते’ को मंजुरी देने से पहले आश्‍वासन चाहिए

नवी दिल्ली/वॉशिंग्टन, दि. १० (वृत्तसंस्था) – भारत की ‘एनएसजी’ सदस्यता के लिए अमरीका वचनबद्ध है, ऐसा दावा अमरीका के विदेशमंत्रालय ने किया| पिछले कुछ हफ़्तों से, अमरीका इस संदर्भ में भारत को लगातार आश्‍वस्त करने की कोशिश कर रहा है| लेकिन ‘एनएसजी’ की सदस्यता के बारे में अमरीका की ओर से ठोस आश्‍वासन मिले बग़ैर, पॅरिस में संपन्न हुए जागतिक जलवायु परिवर्तन समझौते को भारत मंज़ुरी नहीं देगा, ऐसी भूमिका भारत ने अपनायी है| बिना ‘एनएसजी’ की सदस्यता मिले, भारत को प्रदूषणमुक्त ऊर्जा का विकल्प पूर्ण रूप से हासिल नहीं होगा| इसलिए अमरिका ने भारत की ‘एनएसजी’ सदस्यता के लिए और भी कोशिश करने की ज़रूरत है, ऐसी उम्मीद भारत ने व्यक्त की है|

‘एनएसजी’‘जी-२०’ सम्मेलन के लिए चीन के दौरे पर आए अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा ने, पॅरिस में हुए जलवायु परिवर्तन समझौते को चीन की मंज़ुरी प्राप्त करवा ली थी| राष्ट्राध्यक्ष ओबामा के कार्यकाल में यह बड़ी क़ामयाबी मानी जा रही है| इसके बाद भारत की ओर से भी ‘पॅरीस समझौते’ को मंज़ुरी प्राप्त कराने की कोशिश ओबामा प्रशासन कर रहा है| इस संदर्भ में अमरीका के नेताओं ने भारत के साथ विस्तृत चर्चा की है, ऐसा कहा जा रहा है| दोनों देशों के बीच की चर्चाओं में यह मुद्दा अमरीका की ओर से लगातार उठाया जा रहा है| इस संदर्भ में आग्रही भूमिका अपनानेवाले अमरीका के सामने भारत ने स्पष्ट रूप से अपनी माँग रखी है, ऐसी जानकारी विदेशमंत्रालय के सूत्रों ने दी|

जब तक अमरीका भारत को ‘एनएसजी’ सदस्यता के बारे में ठोस आश्‍वासन नहीं देता, तब तक भारत ‘पॅरिस समझौते’ को मंज़ुरी नहीं देगा, ऐसा भारत ने स्पष्ट किया है| इस पृष्ठभूमि पर, भारत की ‘एनएसजी’ सदस्यता के लिए अमरीका वचनबद्ध है और इसके लिए लगातार कोशिशें की जा रही हैं, ऐसा भरोसा अमरीका की ओर से दिलाया जा रहा है| शुक्रवार को भी अमरिकी विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ‘एलिझाबेथ ट्रुडीयू’ ने नये सिरे से अपने देश की भूमिका स्पष्ट की| चीन ही भारत की सदस्यता का विरोध करनेवाला अकेला बड़ा देश है| चीन का विरोध कम होता है, तो भारत को विरोध करनेवाले अन्य देशों का समर्थन मिलना आसान होगा, ऐसा ट्रुडीयू ने कहा| इस संदर्भ मे अमरीका चीन के साथ चर्चा कर रहा है, ऐसा ट्रुडीयू  ने कहा| लेकिन इस बारे में अधिक जानकारी ट्रुडीयू ने नहीं दी|

दक्षिण कोरिया में हुई ‘एनएसजी’ की बैठक में, भारत की सदस्यता को चीन तथा अन्य देशों ने विरोध दर्शाया था| चीन ने, ‘सदस्यता की प्रक्रिया’ की वजह बताते हुए भारत की सदस्यता का विरोध किया था| अन्य कुछ देशों ने भी चीन का साथ दिया था| लेकिन वहाँ पर अमरीका ने यदि अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया होता, तो ‘एनएसजी’ की उस बैठक में ही भारत को सदस्यता हासिल हो सकती थी, ऐसा दावा कुछ भारतीय नेताओं ने किया है| भारत और अमरीका के बीच हुए नागरी परमाणु करार को ‘एनएसजी’ की ओर से विशेष मंज़ुरी दिलाने के लिए, अमरीका ने सन २००८ में चीन पर दबाव बढाया था| उस समय चीन को मंज़ुरी देनी पड़ी थी| वैसे ही, इस समय भी अमरीका यही तरीक़ा अपना सकता था| लेकिन अमरीका को इतनी आसानी से भारत को ‘एनएसजी’ सदस्यता नहीं देनी है, ऐसा इल्ज़ाम कुछ भारतीय नेताओं द्वारा लगाया जा रहा है|

इस पृष्ठभूमि पर, भारत ने पॅरिस के समझौते को मंज़ुरी देने के लिए अमरीका के सामने रखी, ‘एनएसजी’ सदस्यता दिलाने की शर्त औचित्यपूर्ण लग रही है|

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