भारत के ‘नाविक’ को संयुक्त राष्ट्र के ‘आयएमओ’ की मंज़ुरी – वैश्‍विक स्वीकृति प्राप्त ‘नेव्हिगेशन’ यंत्रणा करनेवाला भारत चौथा देश बना

नई दिल्ली – भारत की ‘अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था’ (इस्रो) ने विकसित की हुई ‘रिजनल नेव्हिगेशन सैटेलाईट सिस्टिम’ (इरनास) को आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मंज़ुरी प्राप्त हुई है। ‘इरनास’ सैटेलाइटस्‌ प्रक्षेपित करके भारत ने ‘जीपीएस’ और ‘ग्लोनास’ की धर्ती पर अपनी ‘नाविक’ यंत्रणा तैयार की है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के ‘इंटरनैशनल मेरीटाईम ऑर्गनायझेशन’ (आयएमओ) ने जागतिक रेड़ियो नेव्हिगेशन यंत्रणा के तौर पर ‘नाविक’ को मंज़ुरी दी है। इस वजह से अब समुद्री जहाज़, ‘जीपीएस’ की तरह ही भारत की ‘नाविक’ यंत्रणा का भी इस्तेमाल कर सकेंगे।

india-un-imoइससे भारत ने सफलता की नयीं बुलन्दियों को छू लिया है। भारत की ‘इस्रो’ ने विकसित की हुई ‘नाविक’ यंत्रणा को अब जागतिक स्तर पर स्वीकृति प्राप्त हुई है। ‘आयएमओ’ की समुद्री सुरक्षा समिती की बैठक ४ से ११ नवंबर के दौरान हुई। इस बैठक में ‘नाविक’ को जागतिक रेड़ियो नेव्हिगेशन यंत्रणा के तौर पर मंज़ुरी प्रदान की गई।

भारत की ‘नाविक’ यंत्रणा के लिए सात सैटेलाईटस्‌ की चेन तैयार की गई है और इसकी सहायता से भारत ने अपनी खुद की ‘जीपीएस’ यंत्रणा विकसित की है। कारगिल युद्ध शुरू होने के बाद, भारत ने अमरीका से ‘जीपीएस’ की सहायता प्रदान करने की माँग की थी। लेकिन, उस समय अमरीका ने यह सहायता प्रदान करने से इन्कार किया था। उसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी ही अपनी खुद की यंत्रणा विकसित करने का संकल्प किया और ‘इरनास’ सैटेलाईटस्‌ के निर्माण का काम शुरू किया गया। कड़ी मेहनत के बाद इन वैज्ञानिकों ने ‘जीपीएस’ से भी अधिक सटिक जानकारी प्रदान करनेवाली ‘ड्युअल फ्रिक्वेंसी बैण्ड’ पर आधारित ‘नाविक’ यंत्रणा का निर्माण किया है। वर्ष २०१८ में ‘नाविक’ के लिए आखिरी ‘इरनास’ सैटेलाईट अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने इस यंत्रणा को ‘नाविक’ नाम दिया था।

india-un-imo‘इरनास’ के ज़रिये भारतीय सीमा से हिंद महासागर क्षेत्र में १,५०० से १,६०० किलोमीटर दूरी के क्षेत्र की सटिक जानकारी तुरंत प्राप्त हो सकेगी। साथ ही, आवाजाही के लिए भी यह यंत्रणा अहम साबित हो रही है। अब भारतीय वैज्ञानिक इस यंत्रणा का दायरा बढ़ाने के काम में जुटे हैं। इसके लिए आनेवाले दिनों में अधिक सैटेलाईट अंतरिक्ष में छोड़े जाएँगे। अमरीका की ‘जीपीएस’ की तरह रशिया ने ‘ग्लोनास’ यंत्रणा का निर्माण किया है और इस यंत्रणा को ‘आयएमओ’ की मंज़ुरी प्राप्त हुई है। भारत अब इन देशों में शामिल हुआ है। हिंद महासागर क्षेत्र में बड़ी मात्रा में व्यापारी मालढ़ुलाई होती है। ये जहाज़ अब ‘आयएमओ’ की मंज़ुरी प्राप्त होने के कारण भारत की ‘नाविक’ यंत्रणा का भी इस्तेमाल कर सकेंगे।

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