हैदराबाद भाग-१

स्कूल में पढते समय इतिहास में विभिन्न क़िलों तथा राज्यों का वर्णन पढा था। आज कल सब जगह छोटे बडे शहर बनते हुए दिखायी दे रहे हैं, लेकिन इतिहास में यानी पुराने समय में एक बडा राज्य होता था, उस राज्य पर शासन करनेवाला कोई राजा होता था और अधिकतर राजाओं के अधिपत्य में एकाद क़िला तो होता ही था। इस तरह स्कूली इतिहास क़िलों एवं राज्यों के साथ जुड़ा हुआ था। इन क़िलों के नाम की सूचि भी विशेषतापूर्ण रहती थी और इतने समय के बाद भी कुछ क़िलें उनके विशेषतापूर्ण नामों के कारण याद हैं। उनमें से ही एक है – ‘गोलकोंड़ा’। गोलकोंड़ा इस क़िले का नाम अब तक याद रहने का महत्त्वपूर्ण कारण है, यहाँ की आसपास की खानों में अनमोल हीरें मिलते थे और उन हीरों में से एक यादग़ार नाम है ‘कोहिनूर’।

अब आप यह सोच रहे होंगे कि हम जा कहाँ रहे हैं? लेख के शीर्षक से आप जान ही गये होंगे कि हम ‘हैदराबाद’जा रहे हैं। फिर बीच में ही यह गोलकोंड़ा, हीरों की खानें, कोहिनूर यह सब कहाँ से आ गया?

जी हाँ, हम जा तो रहे हैं, हैदराबाद, लेकिन गोलकोंड़े की याद आने की वजह यही है कि यह गोलकोंड़ा क़िला हैदराबाद से महज़ ११ किलोमीटर्स की दूरी पर है।

देखिए, बातें करते करते हैदराबाद कब आ गया, इस बात का पता भी नहीं चला। चलिए, तो फिर नये जोश के साथ इस नये शहर की सैर करने निकलते हैं।

‘हैदराबाद’, आन्ध्रप्रदेश की राजधानी। आज हैदराबाद और उसी के पड़ोस में बसा हुआ ‘सिकंदराबाद’ ये दोनों शहर ‘ट्विन सिटीज़’ (जुड़वा शहर) के रूप में जाने जाते हैं।

जिस तरह पुराने समय में गोलकोंड़ा के हीरें मशहूर थे, उसी तरह हैदराबाद मोतियों (पर्ल्स) के लिए मशहूर है। हैदराबाद और मोतियों का इतना गहरा रिश्ता है कि हैदराबाद शहर ‘सिटी ऑफ पर्ल्स’ के नाम से जाना जाता है।

जिस तरह हैदराबाद मोतियों के लिए मशहूर है, उसी प्रकार वह खास प्रकार के खानपान के लिए, कई कलात्मक ऐतिहासिक वास्तुओं के लिए, सुसज्जित फिल्म स्टुडियो के लिए भी मशहूर है और साथ ही आज का हैदराबाद जाना जाता है, आय.टी. (इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी) इंडस्ट्रीज़ और बायोफार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्रीज के लिए।

अभी अभी तो हमारा इस शहर के साथ थोड़ासा परिचय हुआ है। तो चलिए, इसे पूरी तरह जानने के लिए क्यों न इस शहर की सैर की जाये!

अरे, देखिए तो, वहाँ दूर एक नदी दिखायी दे रही है। पुराने समय में मानवों के समूह जब गाँव बसाने लगे, तब भी और उसके बाद भी जलस्रोत के आसपास बसने को प्राधानिकता दी जाती थी। इसी वजह से आज भी हमें कई छोटे बड़े शहरों एवं गाँवों के आसपास जल का स्रोत दिखायी देता है।

देखिए, बातें करते करते नदी की बात तो भूल ही गये। इस नदी का नाम है, ‘मुसी नदी’।

इसी नदी के तट पर सोलहवीं सदी के अन्त में ‘हैदराबाद’ शहर बसाया गया।

कृष्णा नदी की एक शाखा रहनेवाली इस मुसी नदी का उद्‌गम ‘अनन्तगिरि’ की पहाड़ियों में होता है। अनन्तगिरि की पहाड़ियाँ हैदराबाद से लगभग ९० किलोमीटर्स की दूरी पर हैं। यहाँ पर उद्‌गमित होने के बाद बहते बहते वह ठेंठ हैदराबाद शहर में दाखिल होती है। इस मुसी नदी के एक तट पर पुराना हैदराबाद बसा हुआ है, वहीं दुसरे तट पर नया हैदराबाद शहर है। पुराना और नया शहर एक-दूसरे के साथ कई पुलों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

नये और पुराने हैदराबाद शहर को जोड़नेवाला ‘पुराना पूल’ यह इस नदी पर बनाया गया सब से पुराना पुल है। सोलहवीं सदी में गोलकोंड़ा के शासकोंद्वारा यह पुल बनाया गया है, ऐसा कहा जाता है।

साथ ही पुराने और नये शहर को जोड़नेवाले कई पुल इस नदी पर बनाये गये हैं।

इस मुसी नदी का पुराना नाम ‘मुचकुन्द नदी’ था, ऐसा माना जाता है। इस नदी में सितंबर १९०८ में बहुत बड़ी बाढ आयी थी, यह इतिहास से ज्ञात होता है। उस समय बाढ के जल का स्तर एक जगह ११ फीट तक गया था, ऐसा भी पढने में आता है। ऐसी इस मुसी नदी पर हैदराबाद के पुराने शासकोंद्वारा अपनी जनता की रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए आवश्यक रहनेवाले जल की ज़रुरत को पूरा करने के उद्देश्य से दो तालाब भी बनाये गये। लेकिन जैसे जैसे यहाँ की आबादी बढने लगी, वैसे इन दो तालाबों का जल पर्याप्त नहीं हो रहा था। आज भी ये तालाब हैदराबाद शहर के पर्यटन आकर्षण केन्द्र के रूप में मशहूर हैं।

तो ऐसा यह मुसी नदी के तट पर बसा हुआ हैदराबाद। कई शहरों एवं गाँवों के नामों के बारे में कई बार अनेक लोककथाएँ, किंवदन्तियाँ मशहूर रहती हैं और हैदराबाद के मामले में भी यह सच है।

हैदराबाद के क़िसी शासक को किसी नृत्यांगना से प्यार हो गया और उन दोनों की शादी भी हो गयी। शादी के बाद उसने इस रानी का नाम रखा- हैदर बेग़म और आगे चलकर उसीके नाम से इस शहर को नाम दिया गया- हैदराबाद। कुछ लोगों की राय में इस शासक की जो पत्नी बनी, वह नृत्यांगना नहीं, बल्कि एक किसान की बेटी थी।

अन्य एक लोककथा के अनुसार किसी ‘हैदर’ नाम के शासक के नाम से इस शहर का नाम ‘हैदराबाद’ रखा गया।

इस हैदराबाद शहर की स्थापना लगभग ४००-५०० वर्ष पूर्व हुई, ऐसा कहा जाता है। पुराने समय में यह सारा इलाक़ा गोलकोंड़ा के अधिपत्य में ही आता था, ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। इस शहर में एवं इसके आसपास के इला़के में की गयी खुदाई से यह ज्ञात होता है कि लोहयुग (आयर्न एज) में यहाँ पर आबादी बसा करती थी। इस खुदाई से यह ज्ञात हुआ है कि इसा के ५०० वर्ष पूर्व यहाँ पर आबादी बसा करती थी।

जब आज का हैदराबाद और उसके आसपास का इलाक़ा ‘गोलकोंड़ा’ के नाम से जाना जाता था, तब आठवीं सदी से लेकर दसवीं सदी तक यहाँ पर चालुक्य राजवंश का शासन था। ११वीं सदी में जब चालुक्य राजवंश चार शाखाओं में बँट गया, तब गोलकोंड़ा काकतियों के अधिकार में आ गया। इस काकतीय राजवंश की यहाँ पर लगभग तीन सदियों तक सत्ता रही और हालाँकि गोलकोंड़ा पर उनका शासन था, मग़र उनकी राजधानी थी, ‘वारंगल’।

हैदराबाद की स्थापना होने से पहले गोलकोंड़ा अस्तित्व में था और इसीलिए गोलक़ोंडा के शासकों का यहाँ पर भी शासन रहता था।

हैदराबाद के शासकों में अहम ज़िक्र होता है निज़ाम का। अठरहवीं सदी से लेकर भारत को आज़ादी मिलने तक हैदराबाद पर निज़ाम की हुकूमत थी।

हैदराबाद को जब रियासत का दर्जा दिया गया, तब उस समय भारत में रहनेवाली रियासतों में से यह सब से अमीर रियासत थी, ऐसा कहा जाता है।

अरे, जिस गोलकोंड़ा का ज़िक्र करके हम हैदराबाद आ गये, उस गोलक़ोंडा के बारे में तो कुछ जानकारी प्राप्त ही नहीं की।

हैदराबाद से ११ किलोमीटर्स की दूरी पर बसा है गोलक़ोंड़ा। किसी ज़माने में यह एक वैभवशाली शहर था, लेकिन आज तो बस उसके अवशेष ही दिखायी देते हैं।

‘गोलकोंड़ा’ इस शब्द का अर्थ ‘ग्वाले की पहाड़ी’ ऐसा है। काकतीय राजवंश के शासकों ने इस नगरी का निर्माण करना शुरू कर दिया। वक़्त था तेरहवीं सदी का। काकतीय वंश के राजा ने तेरहवीं सदी में यहाँ पर मिट्टी का एक क़िला बनाया।

किसी ग्वाले को यहाँ की पहाड़ी भगवान की एक मूर्ति मिल गयी और इसी वजह से इस जगह का नाम ‘ग्वाले की पहाड़ी’ पड़ गया।

काकतीय राजाद्वारा बनाये गये मिट्टी के क़िले को आगे चलकर अच्छी तरह मज़बूत बनाया गया। उस समय गोलकोंड़ा हीरों के व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गया। गोलकोंड़ा के शासकों के संग्रह में कई हीरें थे और उनमें से बेहतरीन एवं अनमोल हीरे थे, ‘कोहिनूर’, ‘होप डायमंड’ जैसे हीरें।

गोलकोंड़ा के पास में ही रहनेवाले ‘कोल्लुर’ और ‘परितल’ की खानों में मिलनेवाले अनमोल हीरों को गोलकोंड़ा ले जाकर उन्हें पहलूदार बनाया जाता था, यह भी पढ़ने में आया।

अब इतनी देर तक घूमकर हम थोड़े बहुत थक तो गये ही हैं। लेकिन गोलकोंड़ा क़िले को बिना देखे ही आगे बढना मुनासिब नहीं हैं। इसलिए आइए, फिलहाल गोलकोंड़ा में ही डेरा डालते हैं।

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