स्थायी सदस्यता के लिए भारत को और कितनी प्रतिक्षा करनी होगी? – भारत के प्रधानमंत्री ने किया संयुक्त राष्ट्रसंघ से सवाल

नई दिल्ली – तीसरा विश्‍वयुद्ध शुरू हुआ नहीं है, ऐसा कहा जा रहा है। लेकिन, विश्‍वभर में कई ज़गहों पर युद्ध शुरू हुआ हैं। कई देशों में अंदरुनि संघर्ष भड़क उठा है। इससे बड़ा खूनखराबा भी हुआ है। इस दौरान कई लोग मारे गए हैं। यह सभी रोकने में संयुक्त राष्ट्रसंघ नाकामयाब साबित हुआ है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के खिलाफ़ प्रभावी उपाय करने का कार्य भी संयुक्त राष्ट्रसंघ को करना संभव नहीं हुआ है। ऐसी सभी नाकामयाबियों पर उंगली रखकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुधारों की आवश्‍यकता बड़ी स्पष्टता के साथ रखी। साथ ही विश्‍व का सबसे बड़े जनतांत्रिक देश भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पाने के लिए और कितनी प्रतिक्षा करनी पडेगी? यह सवाल भी प्रधानमंत्री मोदी ने किया।

स्थायी सदस्यता

संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना को ७५ वर्ष पूरे हो चुके हैं और इसके लिए भारतवासियों की ओर से प्रधानमंत्री ने राष्ट्रसंघ का अभिनंदन किया। भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ का सबसे अधिक सम्मान करनेवाला देश है और यह चित्र सभी देशों में दिखाई नहीं देता। ऐसा होते हुए विश्‍व का सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायि सदस्यता नहीं दी जा रही है। इसके लिए आवश्‍यक सुधार करना ही समय की ज़रूरत है। वरना सुधार की ताकत ही हम गंवा बैठेंगे, यह बात प्रधानमंत्री ने सुनाई। शनिवार के दिन प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड किया हुआ भाषण संयुक्त राष्ट्रसंघ की आम सभा में प्रसारित किया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के लिए भारत ने दिए योगदान की यादें ताज़ा की।

भारत ने कई शतकों से अर्थकारण का नेतृत्व किया है। वहीं कुछ शतकों में गुलामगिरी का भद्दा अनुभव भी किया। इन दोनों स्थिति में ताकत होते हुए भी भारत ने किसी को परेशान नही किया और असाहय्य होते हुए भी भारत किसी का भी भार नही हुआ। भारत की प्राचिन परंपरा और मुल्य व्यवस्था के तत्वों पर संयुक्त राष्ट्रसंघ का निर्माण हुआ उससे संगत ही हैं। ऐसा होते हुए भी राष्ट्रसंघ की निर्णय प्रक्रिया में भारत को शामिल ना करना यह दुर्दैवी बात हैं, ऐसी नाराज़गी प्रधानमंत्री ने व्यक्त की। इसकी वज़ह से राष्ट्रसंघ का ही बड़ा नुकसान हुआ हैं। वष १९४५ का विश्‍व और मौजूदा विश्‍व में बड़ा फरक हैं, इस बात का अहसास रखकर ज़रूरी सुधार करने के अलावा राष्ट्रसंघ के सामने अन्य कोई विकल्प नही हैं, यह बात भी प्रधानमंत्री ने ड़टकर रखी।

स्थायी सदस्यता

भारत शांति का पुरस्कर्ता हैं फिर भी मानवता के शत्रु बनें आतंकवाद, हथियारों की अवैध तस्करी, नशिलें पदार्थों का व्यापार और ब्लैक मनी के हस्तांतरण के खिलाफ़ आवाज़ उठाने से भारत ज़रा भी नहीं हिचकिचाएगा, यह बात भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कही। १ जनवरी, २०२१ से भारत सुरक्षा परिषद के अस्थायि सदस्य के तौर पर कार्यभार स्वीकारेगा, इसके लिए भारत को मत देनेवाले सभी देशों के प्रति प्रधानमंत्री ने आभार व्यक्त किया। साथ ही इन देशों ने दिखाया विश्‍वास सार्थ साबित करने का वादा भी उन्होंने किया। भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की ५० शांति मुहिमों में अपने सैनिक रवाना किए और इन मुहिमों में भारत ने अपने काफ़ी सैनिक भी खोए हैं, देश का यह योगदान भी प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया। साथ ही कोरोना की महामारी के दौर में भारत ने १५० देशों को दवाईयों की आपूर्ति की। कोरोना की महामारी फैलने के बाद के दिनों में आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना पर काम हो रहा है और इसका बड़ा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को प्राप्त होगा, यह विश्‍वास प्रधानमंत्री ने व्यक्त किया।

अपने इस वर्च्युअल भाषण में प्रधानमंत्री ने सुरक्षा परिषद की स्थायि सदस्यता अपना अधिकार होने की बात चुनिंदा शब्दों में कही। साथ ही भारत की इस माँग की ओर संयुक्त राष्ट्रसंघ ज्यादा समय तक अनदेखा नहीं कर सकेगा, इस बात का अहसास भी प्रधानमंत्री ने दिलाया है।

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