गुवाहाटी भाग-३

असम की मशहूर चाय पीने के बाद तरोताज़ा होकर आइए चलते हैं इस शहर की सैर करने।

मन्दिरों का शहर कहे जानेवाले गुवाहाटी शहर में कई मन्दिर हैं। ब्रह्मपुत्र का साथ रहनेवाले इस गुवाहाटी शहर में कुछ छोटी पहाड़ियाँ भी हैं।

इस ब्रह्मपुत्र के तट पर प्राचीन समय में यह नगर बस गया और समय के विभिन्न पड़ावों पर विभिन्न राजवंश के राजाओं ने यहाँ पर विभिन्न मन्दिरों का निर्माण किया। जिस समय इन मन्दिरों का निर्माण किया गया, उस समय की वास्तुशैली का प्रभाव इन मन्दिरों की बनावट में साफ़ दिखायी देता है।

आज गुवाहाटी में जो मन्दिर हैं, उनमें से अधिकतर मन्दिरों का निर्माण सतरहवीं सदी में किया गया है। विशेषज्ञों की राय में आज के असम में विद्यमान अधिकांश मन्दिरों का निर्माण अहोम राजवंश के शासनकाल में किया गया। इससे पहले भी यहाँ पर कई मन्दिर बनाये गये थे, लेकिन वक़्त की धारा में, शक्तिशाली भूकम्पों और जलवायु के असर के कारण इन मन्दिरों को काफ़ी नुकसान हुआ और उनका पुनर्निर्माण करना पड़ा। आज के असम के मन्दिरों को बनाने में साधारणतः पत्थरों और ईंटों का इस्तेमाल किया गया है।

प्राचीन समय से अस्तित्व में रहनेवाली इस भूमि पर वसिष्ठ ऋषि के नाम से जाना जानेवाला एक ‘वसिष्ठ मन्दिर’ है। कहा जाता है कि आज का गुवाहाटी शहर जहाँ पर बसा है, वहाँ से कुछ ही दूरी पर प्राचीन समय में वसिष्ठ ऋषि का आश्रम हुआ करता था। आज की गुवाहाटी में स्थित यह वसिष्ठ मन्दिर एक अहोम राजा के समय बनाया गया था और उस राजा ने इस मंदिर के लिए बहुत बड़ा ज़मीन का हिस्सा दान में दिया था, ऐसा भी कहा जाता है। इस मन्दिर के उपास्य देवता हैं, शिवजी। एक झरने के तट पर बसा यह मन्दिर यात्रियों को यक़ीनन ही कई सदियाँ पीछे अतीत में ले जाता है और इसकी वजह है, मन्दिर के चारों ओर रहनेवाला घना जंगल। आज के सीमेंट के जंगल युग में जीनेवालों को यहाँ कुदरत की छाँव में ताज़ी हवा लेने का मौका तो मिलता है!

सदियों से अव्याहत रूप में बह रही ब्रह्मपुत्र की धारा में कुछ टापुओं का निर्माण हुआ है, यह हम जान ही चुके हैं। गुवाहाटी में ही ब्रह्मपुत्र के प्रवाह में एक ऐसा ही टापू दिखायी देता है। इस टापू पर एक छोटी पहाड़ी भी है। उस पहाड़ी को ‘भस्मांचल’ या ‘भस्मकुट’ कहा जाता है।

इस पहाड़ी पर ही बसा है, ‘उमानन्द मन्दिर’। इस शिवमन्दिर के साथ कईं कहानियाँ जुड़ी हुईं हैं। इन आख्यायिकाओं के अनुसार शिवजीने यहाँ पर तपस्या की थी। उस तपस्या में बाधा डालनेवाले का यहाँ पर भस्म हुआ और इसी वजह से इस पहाड़ी को ‘भस्मांचल’ कहा जाने लगा।

इस छोटे से टापू को ‘पिकॉक आयलंड़’ भी कहा जाता है। उन्नीसवीं या बीसवीं सदी में उसे यह नाम मिला। कहा जाता है कि जहाँ आबादी बस रही है ऐसा यह सब से छोटा टापू है। ज़ाहिर है कि यहाँ जाने के लिए नौका से ब्रह्मपुत्र की धारा को पार करना पड़ता है।

सतरहवीं सदी के उत्तरार्ध में एक अहोम राजा ने अपने शासनकाल में इस मन्दिर का निर्माण करवाया। इस मन्दिर में हमें असम की शिल्पकला की झलक देखने मिलती है। हालाँकि शिवजी यहाँ के प्रमुख आराध्य हैं, लेकिन साथ ही अन्य देवता भी यहाँ पर विराजमान हैं।

सन १८९७ में यहाँ पर हुए एक शक्तिशाली भूकम्प के कारण इस मन्दिर का काफ़ी नुक़सान हुआ। आगे चलकर बीसवीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया।

पुराने समय में इस प्रदेश को ‘प्राग्-ज्योतिषपुर’ कहा जाता था। इसका अर्थ यह भी किया जाता है कि यह ज्योतिष की शिक्षा देनेवाला पूर्वीय नगर है।

गुवाहाटी में ‘चित्रांचल’ नाम की पहाड़ी पर नवग्रहों का एक मन्दिर है। पुराने समय में यह ज्योतिष की शिक्षा देनेवाला पूर्वीय प्रदेश का एक प्रमुख केंद्र था।

गुवाहाटी से कुछ ही दूरी पर रहनेवाले हाजो में एक खास मन्दिर है। ‘हयग्रीव’ या ‘हयग्रीव माधव’ का यह मन्दिर है। विष्णु के ‘हयग्रीव’ इस रूप की यहाँ पर आराधना की जाती है। जिस पहाड़ी पर यह मन्दिर है, उस पहाड़ी को ‘मणिकूट पहाड़ी’ कहा जाता है। आज के मन्दिर का निर्माण सोलहवीं सदी में किया गया।

इस इयग्रीव मन्दिर के साथ कई आख्यायिकाएँ जुड़ी हुई हैं। शिखर, महामण्डप, अर्धमण्डप और गर्भगृह इस तरह की रचना रहनेवाले इस मन्दिर में विष्णु के दस अवतारों की शिल्पाकृतियाँ हैं। साथ ही असम की एक खासियत रहनेवाले हाथी भी यहाँ की शिल्पाकृतियों में दिखायी देते हैं।

पुराणकथाओं के अनुसार यहाँ पर राज करनेवाले मग़रूर नरकासुर का वध श्रीकृष्ण ने किया। श्रीकृष्ण जब नरकासुर का वध करने यहाँ पर आये थे, तब उनके साथ अश्‍वदल (घुड़सवारों का दल) भी था। जिस जगह श्रीकृष्ण ने अपने इस अश्‍वदल के साथ डेरा डाला था, वहाँ आज है, ‘अश्‍वक्रान्त’ नाम से जाना जानेवाला मन्दिर।

अनन्तशयनी विष्णु यानी शेषशायी विष्णु यहाँ के आराध्य देवता हैं।

गुवाहाटी में ही शक्तिपीठों में से एक माना जानेवाला ‘कामाख्या’ का मन्दिर भी है। वह नीलांचल पर्वत पर बसा है। साथ ही गुवाहाटी और उसके आसपास के इला़के में उग्रतारा मन्दिर, महाभैरव मन्दिर, मदन कामदेव मन्दिर, रुद्रेश्‍वर मन्दिर, दोल गोविन्द मन्दिर, दीर्घेश्‍वरी मन्दिर ये मन्दिर भी हैं।

अब मन्दिरों की संख्या को देखने के बाद इस शहर को ‘मन्दिरों का शहर’ क्यों कहा जाता है, यह हमारी समझ में आ जाता है।

लेकिन ‘मन्दिरों का शहर’ कहे जानेवाले इस शहर में सिर्फ़ मन्दिर ही नहीं हैं, बल्कि संग्रहालय, बग़ीचें भी हैं।

यहाँ के संग्रहालय में पुराने समय के राजाओंद्वारा इस्तेमाल की गयी वस्तुओं को जतन किया गया है। साथ ही इस प्रदेश में की गयी खुदाइयों में प्राप्त हुईं कई वस्तुओं को भी संग्रहालय में रखा गया है।

नृत्य यह मानव का आनन्द को अभिव्यक्त करने का एवं प्राप्त करने का साधन है। असम के कुदरती सुन्दरता से भरपूर रहनेवाले प्रदेश के लोगों का नृत्यप्रेमी रहना स्वाभाविक है। यहाँ का प्रमुख त्योहार है, ‘बिहू’। बिहू त्योहार के समय किये जानेवाले नृत्य को भी ‘बिहू’ कहा जाता है। यहाँ के सांस्कृतिक जीवन से परिचित होना हो, तो यहाँ के एक बग़ीचे की सैर करनी चाहिए।

गुवाहाटी शहर के इस बग़ीचे में हम स्थानीय नृत्यों से परिचित होते हैं, यहाँ पर बनाये गये पुतलों के माध्यम से। विभिन्न प्रकार के नृत्यों का आविष्करण दर्शानेवालें कुल ४५ पुतलें इस बग़ीचे में हैं। वे हमें असम के लोकजीवन एवं सांस्कृतिक जीवन से परिचित कराते हैं।

बिहू नृत्य के साथ साथ भूरताल नृत्य, ओजपाली नृत्य, झुमुर नृत्य इस तरह के विभिन्न नृत्यों से हम यहाँ परिचित हो सकते हैं।

इस प्रदेश को हरियाली का वरदान प्राप्त हुआ है और स्वाभाविक है कि ऐसे इस गुवाहाटी शहर में चिड़ियाघर तो होगा ही।

सारांश, किसी राज्य का परिचय करानेवालीं जो बातें रहनी चाहिए, वे सभी बातें गुवाहाटी शहर में हैं।

वैसे देखा जाये तो हमारे भारत का यह ईशान्यी प्रदेश काफ़ी पहाड़ियों भरा है। सेव्हन सिस्टर्स इस नाम से जाने जानेवाले सातों राज्य पहाड़ियों-खाइयों-घाटियोंसे समृद्ध हैं। ईशान्य प्रदेश का प्रवेशद्वार कहा जानेवाला गुवाहाटी शहर शिक्षा, उद्योग आदि सभी दृष्टि से अग्रसर रहनेवाला शहर है। साथ ही आधुनिक तकनीक को भी इस शहर ने अपना लिया है।

यहाँ की भूमि में ईंधन राशि भी भरपूर है और इसीलिए ईंधन क्षेत्र में यानी ऊर्जा क्षेत्र में भी गुवाहाटी अग्रसर है। और जी हाँ, चाय के बारे में तो क्या कहने! यहाँ की मशहूर चाय, उसकी बिक्री में यह शहर इतना अग्रसर है कि यहाँ का ‘टी ऑक्शन सेंटर’ दुनिया के ऐसे बड़े सेंटर्स में से एक माना जाता है।

चलिए, तो मन्दिरों के शहर से हमारा परिचय तो हो गया। लेकिन अब एक सवाल मन में उठ रहा है कि क्या इतनी दूर तक सफ़र करके जाना चाहिए? लेकिन दिल ने कहा कि अब इतनी दूर तक असम में आ ही गये हैं, तो आगे जाने में भला हर्ज़ ही क्या है? लेकिन फिर मन कहता है कि क्या यहाँ से इतना दूर जाना ज़रूरी है? तो फिर इस क़श्मक़श में क्या करना चाहिए यह तय करेंगे, एक हफ़्ते भर के विश्राम में ही।

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