ग्रेगॉर मेंडेल

Gregor-Pg10
ग्रेगॉर मेंडेल

सभी स्तरों पर बढती हुई गति से एवं विभिन्न शाखाओं में होनेवाले बदलाव अधिकाधिक जिज्ञासा निर्माण कर रहे हैं। केवल प्रकृति की देन पर संतुष्ट होकर जीवन वयतीत करने के बजाए जिज्ञासा के बल पर विश्‍व के अधिक संशोधनों के दालान खोलनेवाले महान वैज्ञानिक थे ग्रेगॉर मेंडेल।

ग्रेगॉर मेंडेलजी का जन्म आज के ज़ेक रिपब्लिक स्थित मॉरव्हिआ प्रांत के हेंसिस में २२ जुलाई १८२२ को हुआ। स्थानिक स्कूली शिक्षा पाने के बाद ओलोमॉक स्थित संस्था में उन्होंने तत्त्वज्ञान विषयक अध्ययन किया। मेंडेल के पिताजी मटर की खेती करनेवाले किसान थे और साथ ही साथ वे फलों के बागान भी लगाते थे। मां-बाप की इकलौती संतान ग्रेगॉर को बचपन से ही पौधे लगाकर उनकी प्रति सुधारने की शिक्षा मिलती गई। सन १८४३ में उन्होंने ऑगस्टिअन आश्रम में थिऑलॉजी (ईश्‍वर को जानने का विज्ञान) का अध्ययन किया। अगस्त १८४७ में उन्हें धर्मोपदेशक के तौर पर नियुक्त किया गया।

ऑगस्टिअन आश्रम में विभिन्न शाखाओं एवं क्षेत्रों के लोग वैज्ञानिक प्रयोगों में गढे रहते थे। वहां के ग्रंथसंग्रहालय में सन १५०० पहले मुद्रणकला के प्रारंभिक दौर में छपी हुई कई पुस्तकें एवं पुरानी लिखावटें उपलब्ध थीं। शुष्क वनस्पतियों का संग्रह, वनस्पती उद्यान एवं खनिजविज्ञान से जुडी हुई चीजों का संग्रह भी था। उस माहौल के परिणामस्वरूप मेंडेलजी के ध्यान में यह बात आई कि यहां पर वे अध्यापन का कार्य अच्छी तरह से हो सकता है। सन १८५१-१८५३ मेंडेलाजी ने व्हिएन्ना में व्यतीत किए।

१८५६ के दौरान व्हिएन्न से लौटने पर उन्होंने संशोधन पर अपना ध्यान केंद्रित किया। जन्मदाता की खूबियां उनकी संतान में किस तरह से उतरती हैं, एक ही माता-पिता के बच्चे एकसे क्यों नहीं होते इस तरह के संबंधित कई सवालों का अध्ययन मेंडेलजी ने आरम्भ किया। इससे पहले उन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की गई थी, मगर किसी के लिए भी आनुवंशिकता के तर्क पर आधारित एवं निश्‍चित जवाब देना संभव नहीं हो पाया था।

ग्रेगॉर मेंडेलजी की धारणा थी कि जन्मदाता के गुण संतान में कुछ निश्‍चित नियमों के अनुसार उतरते होंगे। उन्होंने प्रयोगों के लिए मटर का पेड चुना। मटर के फूल में कुदरती स्वयंउत्पत्ति होती है और सालोंसाल स्वयंउत्पत्ति की वजह से मटर की उपजातियां आनुवांशिकरूप से शुद्ध होती हैं। मटर की दूसरी विशेष्ता यह है कि, नित्य स्वयंउत्पत्ति होती है फिर भी प्रयोगद्वारा उस में परउत्पत्ति की जा सकती है। मेंडेलजी की संशोधक बुद्धी, जानकारी का विश्‍लेषण करने की क्षमता एवं नियोजन के हुनर इन प्रयोगों में उपयुक्त हुए।

सन १८५७ से १८६३ के दौरान उन्होंने मटर के कुल २८,००० पेडों का निरिक्षण किया। मटर के बीजों की शुद्धी की जांच उन्होंने २ साल की। प्रथम उन्होंने मटर की लंबाई का आनुवंशिक तौर पर जांचा। एक ही समय पर एक गुण का अनुग्रहण कुछ पीढियों तक कैसे होता यह देखने पर दो या तीन गुणों के अनुग्रहण का (गुण एक पीढी से दूसरी पीढी में उतरने की प्रक्रिया, वंशगति) प्रश्‍न उन्होंने लिया। इसकी वजह से जो कामयाबी पहले के संशोधकों नहीं मिली थी वह कामयाबी मेंडेलजी को मिली। आनुवंशिकता एक एक कारक होता है और उनका अलग अस्तित्व होता है। दो कारक मिलकर उनका अलग अस्तित्व लोप नहीं होता यह बात मेंडेलजी ने साबित की। उन्होंने यह अनुग्रहण का विविक्त सिद्धांत रखा। अब कारकों ‘जीन’ नाम से जाना जाने लगा। मेंडेलजी ने जो नियम सिद्ध किए उन्हें ‘मेंडेल के नियम’ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद आनुवंशिकविज्ञान में बहुतसारी प्रगति हुई हो फिर भी यह नियम इस विज्ञान की नींव साबित हुए।

pea-pods

सन १८६२ में ग्रेगॉर मेंडेलजी ने शास्त्रीय विचारों का आदानप्रदान करने के लिए ‘नैचरल सायन्स सोसायटी’ की स्थापना की। मेंडेलजी ने अपने संशोधन पर निबंध की पढाई सन १८६५ में की। ‘नैचरल सायन्स सोसायटी’ की ओर से मेंडेलजी के संशोधन की जानकारी छापकर युरोप-अमेरीका के १३३ विज्ञानिक संस्थाओं को भेजी गई। मगर मेंडेलजी की मृत्यु के बाद लगभग १६ साल अर्थात सन १९०० तक उस पर ध्यान नहीं दिया गया। सन १९०० में कॉरेन्स, व्रिज और शेरमॅक इन वनस्पतीवैज्ञानिकों ने मेंडेलजी के संशोधन पर गौर किया। मेंडेलजी ने तत्कालीन वनस्पतीवैज्ञानिक कलिनिगेली के सुझावानुसार ‘हिरैशियम’ नामक वनस्पती पर आनुवंशिकता के संबंध में प्रयोग किया, तथा मधुमखी पर भी ऐसा ही प्रयोग किया मगर उन्हें इस में कामयाबी नहीं मिली।

१८६८ के बाद मेंडेलजी प्रशासकीय जिम्मेदारी की वजह से संशोधन की ओर अधिक ध्याने नहीं दे पाए। मेंडेल मूलत: वैज्ञानिक नहीं थे फिर भी खोज में वे निश्‍चितरूप से समय से तेज थे। आनुवंशिकता की वैज्ञानिक उपपत्ति साबित करके आधुनिक अनुवंशविज्ञान (जेनेटिक्स) की नींव डालने का महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने किया। सन १८३८ में सेंट थॉमस के मठाधिपति बनने के बाद मेंडेलजी का खोजकार्य लगभग मंद पड गया। इकीसवीं शताब्दी के विज्ञाने के रूप में जाने जानेवाले ‘जेनेटिक्स’ का लगभग सवसौ साल पहले नींव डालनेवाले इस महान तपस्वी का निधन ६ जनवरी १८८४ को बैर्ना में हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.