खगोलशास्त्र में अनमोल योगदान डॉ. गोविन्द स्वरूप

प्राचीन काल से ही हमारे देश में खगोलशास्त्र (अ‍ॅस्ट्रॉलॉजी) का अध्ययन किया जाता है। आधुनिक भारत में इस क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य करके आंतरराष्ट्रीय कीर्ति प्राप्त करनेवाले वैज्ञानिक डॉ. गोविंद स्वरूप का उल्लेख करना आवश्यक है।

मूलत: खगोलशास्त्र यह कुछ पेचीदा सा विषय लगता है, फिर भी यह काफी दिलचस्प है। ग्रहगोल, तारे, नक्षत्र इनकी गति का पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों पर होनेवाला परिणाम और इससे संबंधित ज्ञान हासिल करना, निरीक्षण दर्ज करना यह एक आनंददायी कार्य है। आज के समय में डॉ. जयंत नारलीकर की तरह डॉ. गोविन्द स्वरूप भी सामान्य मनुष्यों के मन में खगोलशास्त्र के प्रति आकर्षण निर्माण हो इस हेतु से प्रयास कर रहे हैं।

भारत के उत्तर प्रदेश में ठाकूरद्वार नामक स्थान पर २९ मार्च १९२९ के दिन डॉ. गोविन्द स्वरूप का जन्म हुआ। अलहाबाद महाविद्यालय से उन्होंने अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण की। अनेक मान्यवर संशोधकों की तरह ही डॉ. गोविन्द स्वरूप भी पदार्थ विज्ञान के विद्यार्थी हैं। अमरीका के स्टॅनफर्ड विश्‍वविद्यालय द्वारा रेडिओ अ‍ॅस्ट्रॉलॉजी इस विषय में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर उन्होंने दिल्ली के नॅशनल फिजिकल लॅबोरेटरी में रिसर्च समिति के सचिव पद का काम स्वीकारा। इसके पश्‍चात् ऑस्ट्रेलिया में सिडनी के सी.एस.आय.ओ. संस्था मे भी उन्होंने संशोधन किया साथ ही अमरीका के हॉवर्ड महाविद्यालय में रिसर्च असोशिएट के रूप में तीन वर्ष काम किया। ऐसे संशोधनों के विविध अनुभवों के पश्‍चात् उन्होंने मुंबई के ‘टाटा फंडामेंटल रिसर्च इन्स्टिट्यूट’ में प्राध्यापक का कार्यभार अनेक वर्षों तक संभाला।

पिछले कुछ वर्ष दुर्बिन की सहायता से अंतरिक्ष में होनेवाली हलचलों का महत्त्वपूर्ण यथार्थ चित्रित दर्ज करने में सहायता प्राप्त हुई। लगभग ३५ से ४० वर्षों पूर्व तामिलनाडू के उटकमंड नामक स्थान पर इस प्रकार के दुर्बिणोम की निर्मिति का प्रयास डॉ. गोविंद स्वरूप के मार्गदर्शन के अन्तर्गत हुआ। ५३० मीटर बाय ३० मीटर इस प्रकार की काफ़ी बड़ी दूरबीन का निर्माण होने के कारण ग्रहगोल की गति, ग्रहण के समय की उनकी स्थिति, विभिन्न प्रकार की एवं महत्त्वपूर्ण अँगल्स द्वारा देखने की सुविधा हो गई। यह दूरबीन १९७० में कार्यरत हुई।

इसके पश्‍चात् अब पूना के करीब नारायण गाँव में दूरबीन का निर्माण किया गया। १९९७ में निर्माण की गयी यह दूरबीन आधुनिक यंत्रों पर आधारित है। इस दूरबीन के प्रकल्प के प्रमुख के रूप में डॉ. गोविंद स्वरूप की नियुक्ति की गई। यह दूरबीन यह एक प्रकार का रेडियो टेलिस्कोप है। ‘जायंट मीटरवेव्ह रेडिओ टेलिस्कोप’ (जी.एम.आर.टी.) नामक यह दूरबीन दुनिया भर में सबसे बड़ी दूरबीन है और अंतरिक्ष निरीक्षण के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही मौसम की जानकारी, उपग्रहों का अंतरिक्ष में उडान इन सबके लिए यह एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। दुर्बिन का सुयोग्य रूप में उपयोग करने के लिए ३०-३५ डिश एँटिनाओं का उपयोग किया गया। चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण, नक्षत्र-तारों की गति आदि निरीक्षण इस प्रकार की जायंट दूरबीन की सहायता से करने के पश्‍चात् कुछ निष्कर्ष निकालना यह काम काफ़ी आसान एवं अधिकाधिक अचूक होता जा रहा है।

डॉ. गोविंद स्वरूप के इस संशोधन कार्य के कारण वे जागतिक स्तर पर जाने-पहचाने जाने लगे। ‘इंडियन फिजिक्स असोसिएशन’ ने उन्हें बिरला गौरव पुरस्कार साथ ही एफ.आय.ई. फाऊंडेशन की ओर से भी उन्हें पुरस्कार प्रदान किया गया। पद्मश्री यह भारत सरकार के नागरी सम्मान सहित विज्ञान के क्षेत्र में बहुसम्माननीय माना जानेवाले ‘एस.एस.भटनागर’ पुरस्कार से भी उन्हें गौरवान्वित किया गया। उच्च स्तर की शिक्षा हासिल करने हेतु प्रदान की जानेवाली नेहरू फेलोशिप भी उन्हें प्राप्त हो चुकी है। २००७ में ग्रोट रेबर पदक से (Grote Reber Medal) उनका गौरव किया गया। अनेक छात्रों को पी.एच.डी. के लिए उनके मार्गदर्शन का लाभ हुआ है। उनकी ‘क्वासार’ एवं ‘हिस्ट्री ऑफ ओरिएंटल अ‍ॅस्ट्रॉनॉमी’ इन पुस्तकों ने भी इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्धि हासिल की।

ग्रह, नक्षत्र, सितारे, सूर्य, चंद्र, आकाश, अंतरिक्ष ये सभी जैसे-जैसे अधिकाधिक प्रमाण में जन सामान्य की समझ में आने लगेंगे वैसे-वैसे ही इस देश से गलत धारणाएँ दूर होकर वैज्ञानिक दृष्टि का प्रचार समाज में होने में काफ़ी मदद होगी।

हर किसी को जायंट दूरबीन की सहायता से देखना संभव ना भी हो, मग़र फिर भी टेलीव्हिजन के छोटे कृत्रिम परदे का मोह छोड़कर, इस इतने विशाल आकाश के पर्दे पर दिखाई देनेवाले रंगबिरंगी धवल ऐसे तेजोमय दीपों के साथ बनाया गया करीबी शौक तो अवश्य ही हमें दिलासा देनेवाला साबित होगा और इसी लिए यह आल्हाददायी भी साबित होगा।

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