ग्लायडर किंग- ओट्टो लिलिएन्थाल

‘विमान यानी हवाई जहाज़ के संशोधन के साथ साथ विमान बनाने की कुशलता भी महत्त्वपूर्ण है और उतना ही महत्त्व है, विमान चलाने के हुनर का।’ ये उद्गार हैं, खोजकर्ता ‘ओट्टो लिलिएन्थाल’ के। मानवी उड़ान का सफल प्रयोग करने का सर्वप्रथम सम्मान ओट्टो लिलिएन्थाल नामक संशोधनकर्ता को प्राप्त हुआ है।

मानवी उड़ान

ओट्टो के द्वारा की गयी प्रथम उड़ान के छायाचित्र जर्मनी के सभी समाचारपत्रों में, मासिक पत्रिकाओं में रेखांकित हुए थे। ‘पक्षी के समान मानव भी उड़ान भर सकता है, यह क्या एक काल्पनिक घटना नहीं है? क्या यह वैज्ञानिक दृष्टिकोन से संबंधित न होनेवाली घटना नहीं है?’ इस आशय के वक्तव्य उन छायाचित्रों के नीचे दिए गए थे। परन्तु बचपन से ही पक्षियों के समान हवा में उड़ान भरनी ही है, इसी एक ध्येय की सनक में ओट्टो ने अंतत: अपने इस स्वप्न को सत्य में उतार ही दिखाया।

ओट्टो ने केवल ५ वर्षों के अंतर्गत १८ विविध प्रकार के मॉडेल्स बनाये। इनमें से पंद्रह मॉडल्स में पंखे का एक ही सेट था और पंखे के दो सेट वाले ३ मॉडेल्स थे। ये सभी मॉडेल्स एक ग्लायडर थे। इन सभी मॉडेल्स में किसी भी प्रकार का अ‍ॅक्टीव्ह कन्ट्रोल नहीं बिठाया गया था। चालक को अपने शरीर के वजन का उपयोग दिशा बदलने के लिए करना पड़ता था।

मानवी उड़ान

ओट्टो ने १८९४ में ‘नॉर्मल ग्लायडर’ के शृंखला की निर्मिति की। ऐसी निर्मिति करनेवाले ओट्टो प्रथम संशोधनकर्ता साबित हुए। ओट्टो ने ग्लायडर के लिए विमान में उपयोग में लाये जा सकनेवाले तत्त्वों का उपयोग किया था। इनकी सहायता से ही ओट्टो ने हवा के तेज़ झोके के साथ ऊपर जाने का और जमीन पर ही कुशलता पूर्वक उडते रहने का कार्य कर दिखाया।

ओट्टो द्वारा बनाये गए प्रथम ग्लायडर को पूँछ नहीं लगायी गई थी। साथ ही उस ग्लाडर के पंख भी पक्षियों के पंखों की अपेक्षा थोड़े से ही बड़े थे। इस ग्लायडर का परीक्षण ओट्टो ने एक विशेष ऊँचाई पर तख्ती बाँधकर उसके ऊपर से किया था। परन्तु जल्द ही ओट्टो का प्रयोग अधिकाधिक संस्कारित एवं योजनाबद्ध तरीके से सफल संपूर्ण साबित हुआ। ओट्टो को बार-बार ग्लायडर का परीक्षण करना पड़ रहा था। इस परीक्षण के लिए ओट्टो ने बर्लिन शहर के पास कृत्रिम टिला बना रखा था।

मानवी उड़ान

इससे वायु की दिशा चाहे कोई भी हो फिर भी हवा के साथ-साथ ग्लायडर सहित उड़ान भरना काफी आसान रहा। एक बार ओट्टो एक हँग ग्लायडर का परीक्षण कर रहे थे उसी समय जोरदार हवा चलने लगी। पल भर की असावधानी के कारण उनका ग्लायडर पर होनेवाला नियंत्रण ढ़ीला पड़ गया और ग्लायडर एक कोने में जाकर गिर पड़ा। पंद्रह मीटर की ऊँचाई से नीचे गिर जाने के कारण ओट्टो की रीढ़ की हड्डी टूट गई और काफ़ी ज़खमी हो जाने के कारण ओट्टो लिलिएन्थाल नामक इस महान संशोधनकर्ता की प्राणज्योति हमेशा-हमेशा के लिए बुझ गई। इसके पश्‍चात् कुछ ही वर्षों में राईट ब्रदर्स ने इस क्षेत्र में विशेष रुचि लेकर आधुनिक विमान की खोज की। इस समय राईट बंधू को ओट्टो द्वारा किए गए संशोधन का काफी बड़े पैमाने पर फायदा हुआ।

ध्येय की सनक में काफी सारे व्यक्तियों की मृत्यु भी उनके ही ध्येय से संबंधित थी, ऐसा प्रतीत होता है। खूँखार जलचरों का भय सामान्य मानवों में बना ही रहता है। परन्तु स्टीव्ह आयर्विन ने इन प्राणियों की जान बचाने का मानों प्रण ही कर रखा था और इस ध्येयपूर्ति हेतु उन्होंने अपने प्राण भी गंवा दिए।

ओट्टो की भी मृत्यु उड़ान का परीक्षण करते समय ही हुई थी। अन्य लोगों की नज़र में वह शोकाकुल कर देनेवाली एक दुखदायी घटना थी। लेकिन ओट्टो अपने जीवन एवं मृत्यु के प्रति भी अत्यन्त संतुष्ट थे। ओट्टो के शब्दों में उनके मृत्यु के संबंध में यदि कुछ कहना ही है तो ‘त्याग तो करना ही पड़ता है’। यही उनका अंतिम उद्गार साबित हुआ और यही उद्गार उड़ान भरने के क्षेत्र में आनेवाले अनेक वर्षों के सफलता की ‘मास्टर की’ साबित हुई।

Leave a Reply

Your email address will not be published.