जॉर्ज ईस्टमन (१८५४-१९३२)

George-Eastman

क्या आप फोटो खींच सकते हैं? नहीं। क्या? तो आइए मैं आपको एक आसान तरीका बताता हूं। कांच का एक बडा चौरस टुकडा ले लीजिए और उसे धोकर उस पर आयोडाइड, ब्रोमाइड में से कोई संयुक्त लेप लगाइए। उस पर सिलवर नायट्रेट की परत चढाइए। और हां, एक महत्वपूर्ण बात तो रह ही गई। यह सारी प्रक्रिया किसी अंधेरी जगह पर ही करनी चाहिए। वह गीली कांच एक लकडी की चौखट में बंद करके कैमेरे में लगाने पर आप फोटो खींचने के लिए बिलकुल तैयार हो जाएंगे।

आपको यह प्रक्रिया मुश्किल लगती है। होगी, मगर डेढ सौ साल पहले कोई फोटो खींचनी होती थी तब यह सारी प्रक्रिया करनी पडती थी। अब आपको पढने में भी बोरियत हो रही है, तो उस वक्त फोटो निकालते हुए कितनी बोरियत होती होगी। अब तो हम आसानी से एक बटन दबाकर डिजीटल कैमेरे से फोटो निकालते हैं। मगर फोटो निकालने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए वास्तव में कोशिश की अमरीकी संशोधक जॉर्ज ईस्टमन ने।

जॉर्ज ईस्टमन का जन्म न्यूयॉर्क के वॉटरव्हील में १२ जुलाई १८५४ को हुआ। बचपन में ही पिता के देहान्त के कारण जॉर्ज को प्रथम बैंक में पट्टेवाले की नौकरी करनी पडी, तत्पश्‍चात वे क्लार्क बने। कुछ अरसे बाद ५००० डॉलर इकठ्ठे करने के बाद फोटो निकालने के लिए चीजें खरीदकर जॉर्ज मेकैनिक टापू पर गए। ब्रिटिश जर्नल ऑफ फोटोग्राफी में छपी जानकारी के आधार पर जॉर्ज स्वयं प्रयोग करने लगे। उन्हें इन प्रयोगों के लिए जब समय की कमी महसूस हुई तो उन्होंने नौकरी भी छोड दी।

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तेईस साल की उम्र में जॉर्ज ने भागीदारी में फोटो के लिए सूखी कांच बनाने का व्यवसाय शुरु किया और इस प्रक्रिया का पेटंट भी हासिल किया। बाद में पूंजी जमा करने के लिए जॉर्ज ने इंग्लंड का अपना पेटंट बेचकर अमेरिका में कारखाना खोला। सन १८८४ में उन्हे लगा कि इस कांच के लिए दूसरा विकल्प ढूंढने की जरुरत है। अथक कोशिशों के बाद वजन में हलकी, कागज में लिपटी नेगेटिव्ह फिल्म बनाने में उन्हें कामयाबी मिली। मगर इस खोज को उम्मीद के अनुसार लोकप्रियता नहीं मिली। तब जॉर्ज ने अपना ध्यान कैमेरे की तरफ मोड दिया। थोडी ही अवधि में उन्होंने आसानी से इस्तेमाल किया जानेवाला कैमेरा बनाने में कामयाबी हासिल की। जॉर्ज ने हेनररी स्ट्रॉंग नामक उद्योगपति की सहायता से शुरु की हुई कम्पनी के माध्यम से सन १८८८ में ‘कोडैक’ नामक प्रोडक्टलाईन अंतर्गत ब्राऊनी नामक कैमेरा बाजार में उतारा। ‘यू प्रेस द बटन, वुई डू द रेस्ट’ इस कैचलाईन से प्रसिद्धी पाए हुए इस कैमेरा ने मार्केट में बहुत कामयाबी हासिल की। उसी समय मनचाही फिल्म बनाने की जॉर्ज की कोशिशें भी सफल हुईं। सोल्यूबल और नॉन सोल्यूबल जिलेटिन का इस्तेमाल करके एक अच्छी फोटो फिल्म बनाने में जॉर्ज ईस्टमन कामयाब हुए।

आसानी से काम करनेवाला कैमेरा और उमदा फोटो फिल्म इन उत्पादनों के दम पर अल्प अवधि में ही ईस्टमन-कोडैक का सारे विश्‍व में नाम हो गया। कोडैक नाम भी जॉर्ज के ही दिमाग की उपज है। उन्हें ‘के’ अक्षर के प्रति बहुत आकर्षण था। इसलिए कैमेरा का उत्पादन शुरु करते समय ‘के’ अक्षर से शुरु होनेवाला और ‘के’ अक्षर पर खत्म होनेवाला नाम ही वे देना चाहते थे। उन्होंने खुद अनेक कोशिशें करके अंत में ‘कोडैक’ नाम निश्‍चित किया। कैमेरा और फिल्म की तरह ही जॉर्ज ने उद्योगजगत को ‘ग्राहककेंद्रित बाजार’ इस नई संकल्पना की भी पहचान कराई।

आज बहुतसारी आय.टी. कंपनियों में ‘डिव्हीडंड ऍण्ड वेजेस’ इस योजना पर अमल किया जाता है। इसकी शुरुआत जॉर्ज ईस्टमन ने ही की थी। उदार एवं स्वभाव से प्रेमी ईस्टमन ने हमेशा ‘कर्मचारी’ को सबसे महत्वपूर्ण अंग माना। कैमेरा के जनक माने जानेवाले इस संशोधक को फोटो की और संगीत की बडी चाह थी। निरंतर कार्यरत रहने की आदतवाले इस उमदा व्यक्तित्व को जीवन के अंतिम पलों में बीमारी ने बिस्तर से बांध दिया। इस से निराश होकर ईस्टमन ने १४ मार्च १९३२ को अपना अंत कर लिया।

आज तीन साल के बालक से लेकर ७५ साल के बुजुर्ग तक कोई भी आसानी से फोटो क्लिक कर सकता है। इस बात का श्रेय निश्‍चिरूप से जॉर्ज ईस्टमन को ही जाता है।

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