गणपतराव पाटील

बढ़ता हुआ तापमान, बारिश की अनियमितता, आवागमन की समस्यायें, पथरीली ज़मीन, रेत के समान क्षारीय मिट्टी इस प्रकार की अनेक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए आधुनिक एवं प्रयोगशील पद्धति से खेती करने के लिए यदि प्रयास किया जाये तो विदेशों में होनेवाली के खेती के समान हमारे यहाँ की खेती भी विकसित हो सकती है।

जगसिंगपुर के गणपतराव आप्पासाहब पाटील के मन में भी कृषिविकास की लगन थी। उन्हें ‘श्रीवर्धन ग्रीन हाऊस’ इस पचपन एकड़ ज़मीन पर बसे कृषिविज्ञान के अजूबे के जनक माना जाता है और इसी कारण वे देश-विदेश में सुविख्यात हैं। उनके पिता ने शहर में जाकर नौकरी करने की अपेक्षा गाँव में रहकर ही नवीन प्रयोग करते हुए खेत-खलिहानों को विकसित करने की सलाह दी। १९६९ में वे उन्हें नैनिताल के पतंगनगर महाविद्यालय, दिल्ली के ‘आय.आर.ए.आय. इन्स्टिट्यूट’ दिखाने ले गए। वहाँ पर होने वाले प्रयोग, कृषिसंशोधन से गणपतराव काफी प्रभावित हुए। दिल्ली में भी हायब्रीड़ के संशोधन साथ ही केरल के हरे-भरे खेतों का सौंदर्य देख उन्होंने स्वयं भी खेती के प्रति कुछ अनोखा प्रयोग करके कृषि का चित्र बदलने का निर्धार किया।

सर्वप्रथम उन्होंने पारंपरिक पद्धति से खेतों में बड़ी-बड़ी क्यारियाँ बनाकर उनमें अनार, आम, चिकू, अंगूर आदि फलों के साथ-साथ सोयाबिन, धान, गेहूँ, नारियल आदि के बागान- फसलो, आदि का कारोबार शुरु कर दिया। यहॉँ पर उन्होंने एक एकड़ ज़मीन में सत्तर टन टॉमेटो की पैदावार की, वहीं साठ एकड़ ज़मीन में साठ टन उत्तम दर्जे के अंगूर का उत्पादन कर ‘रिकॉर्ड’ कायम कर दिया। इसके साथ ही वे अनेक प्रकार की फसलों में भी हर साल नये-नये रिकॉर्ड कायम करते रहे। एक प्रयोगशील कृषक के रूप में राज्य में उनकी अपनी एक पहचान बन गई। फाय फाऊंडेशन के द्वारा विज्ञाननिष्ठ कृषक, झुआरी अँग्रो केमिकल्स की ओर से कृषिसम्राट एवं महाराष्ट्र शासन के द्वारा कृषिनिष्ठ कृषक इस प्रकार के अनेकों सम्मानों से उन्हें सम्मानित किया गया। नवनिर्मिति की क्षमता, स्वयं के अनुभव एवं उदंड उत्साह इन सब के जोर पर १९९८ में उन्होंने ग्रीन हाऊस प्रकल्प की शुरुआत की। नियंत्रित प्रकार की खेती यानी ग्रीन हाऊस। कृषिक्षेत्र को प्लास्टिक अथवा पॉलिथिन के कपड़े से आच्छादित कर फसलों की माँग के अनुसार नियंत्रित कर, ठिंबक सिंचन अथवा तुषार सिंचन के अनुसार पानी की आपूर्ति की जाती है। इस विधि के अनुसार निसर्ग पर निर्भर रहना टाला जाता है।

आरंभिक समय में चार एकड़ ज़मीन के ग्रीन हाऊस में रंगीन ढ़ोबली मिरची, जर्बेरा एवं कार्नेशन लगाकर फसलें तैयार की गईं। अतिरिक्त पानी और बंजर ज़मीन की बजाय तथा गमलों में मिट्टी के स्थान पर कोकोआटा अर्थात नारियल के छिलके का चूर्ण बनाकर उसका उपयोग कर गुलाब की खेती का अभिनव प्रयोग भारत में उन्होंने सर्वप्रथम किया। उत्तम दर्जे के गुलाब खिलने लगने पर उनका निर्यात करने के लिए उसी कोटी के गुलाब लगाने की तैयारी की गई। ग्रीन हाऊस के क्षेत्र का विस्तार हुआ। मजदूरों को प्रशिक्षित किया गया। विशेषज्ञों की नियुक्ति की गई, महिला कामगारों को विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया गया। देशी-विदेशी व्यापारियों के लिए योग्य सुविधाए उपलब्ध करवाकर जयसिंगपुर के नज़दीकी कोंडिग्रे गाँव से आने वाले फूलों को सीधे मुंबई हवाई अड्डे तक पहुंचाने का लक्ष्य बनाकर फूलों की खूशबू जर्मनी, हॉलैंड, इटली, जापान आदि जैसे प्रगत देशों में जा पहुँची। सत्तर हजार से अधिक गुलाब के फूलों का उत्पादन गणपतराव के आधुनिक खेतों में होता था। साथ ही उनके दर्जे के मामले में देखा जाये तो उनका माल कभी वापस नहीं आता था, यह बात उनके लिए काफी गौरवप्रद हुआ करती थी।

हॉलैंड के प्रिसमन कंपनी की ओर से गणपतराव पाटील के ग्रीन हाऊस में गुलाबों के कुछ पौधे विकसित करने के लिए भेजे गए। उनमें से उन्होंने गुलाबी रंगों की किनार होने वाले, हरे रंगों की छटा होने वाले सफेद गुलाब इस तरह के विभिन्न प्रकार के गुलाबों के फूल विकसित किए और इस प्रकार की नयी प्रजाति के गुलाब ‘श्रीवर्धन’ इस नाम से जाने जाते हैं।

इस्रायल में की जानेवाली खेती काफी अच्छी है यह मानकर भारत के अनेक धनवान कृषक एवं बागानों के मालिक वहाँ हो आये।, परन्तु गणपतराव पाटील ने किसी भी प्रगत देश के कृषिविज्ञान की अपेक्षा बेहतर कार्य कर दिखलाया है और इसी ख्याति के कारण विदेशों के कृषक गणपतराव के यशस्वी प्रयोग देखने के लिए यहाँ आते रहते हैं।

ग्रीन हाऊस की खेती देश का एक सामान्य कृषक भी कर सकता है ऐसा गणपतराव पाटील का मानना है। वे कहते हैं कि दस गुंठा खेती के लिए एक लाख रूपयों का निवेश करना ज़रूरी है। उत्पन्न के लिए एक साल रुकना पड़ेगा, परन्तु एक बार यदि उत्पन्न शु्रू हो गया तो शासन की ओर से सबसिडी मिलती है। तात्पर्य यह है कि मेहनत तो करनी ही पडेगी परन्तु थोड़ा धीरज रखना होगा, तब जाकर असंभव एवं असाध्य ऐसा कुछ भी नहीं है।

गणपतराव पाटील के अनुसार भारत को इस क्षेत्र में आगे कदम उठाना चाहिए क्योंकि भारत में हिमालय से सटे क्षेत्र को छोडकर सहसा बर्फ कहीं पर भी नहीं गिरती है, इसी लिए ग्रीन हाऊस की बजाय पॉलिथिन का उपयोग किया जा सकता है। हवा की अनुकूलता बनी रहने के कारण हिटर्स लगाने की ज़रूरत नहीं रहती, इससे यह खर्च भी बच जाता है। महाराष्ट्र में आज-कल बड़े-बड़े ग्रीन हाऊस की निर्मिति की जा रही है और यह गणपतराव पाटील द्वारा प्राप्त यश के पीछे छिपी प्रेरणा है।

अकाल की स्थिति, आतिवृष्टि, भींगकर खराब हो चुकी फसलें, मौसम की अनिश्चितता के कारण किसानों पर बढ रहा तनाव यह सब एक ओर सच्चाई है, वहीं दूसरी ओर गुलाब, सेवंती, मोगरा, जरबोरा, कार्नेशन, अन्थेरियम इस प्रकार के फूलों की क्यारियाँ, सुगंध, स्प्रिंकल के घुमते हुए फव्वारे, अनुशासित प्रशस्त ग्रीन हाऊसेस। ग्लोबलायजेशन के दौर में शासन, समाज एवं कृषकों द्वारा इस प्रकार के विकल्पों का उपयोग कर लेने पर महाराष्ट्र में कृषि का चित्र और भी अधिक सधन एवं सन्तोषदायक साबित होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published.